Surguja Lok Sabha elections 2024: सरगुजा लोकसभा चुनाव 2024: सरगुजा लोकसभा क्षेत्र, इतिहास, प्रत्‍याशी, चुनाव परिणाम

Surguja Lok Sabha elections 2024: छत्‍तीसगढ़ की सरगुजा लोकसभा सीट वर्तमान समय में आदिवासी (एसटी) आरक्षित सीट है। इस सीट का चुनावी इतिहास काफी लंबा है। 1952 और 1957 के आम चुनाव में यहां से 2-2 सांसद चुने गए। सरगुजा के महाराज इस सीट से पहले सांसद चुने गए थे वे निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे।

Update: 2024-04-10 07:42 GMT

Surguja Lok Sabha elections 2024: एनपीजी न्‍यूज डेस्‍क

सरगुजा संसदीय सीट आजादी के बाद 1951 में हुए पहले चुनाव में ही अस्तित्‍व में आ गया था। पहले 2 चुनाव में यहां से 2-2 सांसद चुने गए। महाराजा चंडिकेश्वर शरण सिंह जूदेव और बाबूनाथ सिंह यहां इस सीट से पहली बार संसद पहुंचे। महाराजा जूदेव निर्दलीय चुनाव जीते थे, जबकि बाबूनाथ कांग्रेस की टिकट पर निवार्चित हुए थे। 1957 में दोनों कांग्रेस प्रत्‍याशी के रुप में चुनाव लड़े और सांसद चुने गए। इस सीट से बाबूनाथ सिंह लगातार 5 बार सांसद चुने गए थे। इस बार बीजेपी ने चिंतामणी महाराज और कांग्रेस ने शशि सिंह को टिकट दिया है।

सरगुजा संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की 8 सीटे हैं। 2023 के चुनाव में बीजेपी ने इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि 2018 के चुनाव में सभी 8 सीट कांग्रेस के पास थी। छत्‍तीगसढ़ राज्‍य बनने के बाद से अब तक कांग्रेस यह सीट जीत नहीं पाई है। 2018 में इस संसदीय क्षेत्र की सभी 8 सीटों पर जीत के बावजूद कांग्रेस 2019 का लोकसभा चुनाव हार गई थी। सरगुजा में कांग्रेस के वर्चस्‍व को लरंग साय ने खत्‍म किया था।

सरगुजा सीट से लगातार 5 बार सांसद

बाबूनाथ सिंह सरगुजा सीट से लगातार 5 बार सासंद चुने गए हैं। वे 1952 से 1971 तक लगातार जीतते रहे। 1977 में उन्‍हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा। लरंग साय और खेल साय सिंह इस सीट से 3-3 बार सांसद चुने गए हैं। खेल साय लगातार 2 चुनाव जीते हैं, जबकि लरंग साय लगातार 2 चुनाव नहीं जीते हैं।

लरंग साय ने खत्‍म किया कांग्रेस का वर्चस्‍व

सरगुजा सीट पर शुरु से कांग्रेस का वर्चस्‍व रहा। बाबूनाथ सिंह कांग्रेस की टिकट पर लगातार जीत रहे थे। 1977 में पहली बार लरंग साय ने उन्‍हें चुनौती दी। साय 1977 में भारतीय लोक दल की टिकट पर चुनाव लड़े और बाबूनाथ सिंह को मात दी। इसके बाद 1980 में लरंग साय हार गए। लरंग साय 1989 और 1998 में बीजेपी की टिकट पर सांसद चुने गए थे। कांग्रेस के खेल साय सिंह ने 1991, 1996 और 1998 में इस सीट का प्रतिनिधित्‍व किया।

सरगुजा संसदीय क्षेत्र का मैप

सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में वोटर (2024)

कुल वोटर 

1802941

पुरुष वोटर 

898269

महिला वोटर 

904639

तृतीय लिंग वोटर 33

सरगुजा संसदीय क्षेत्र के अब तक के सांसद 

वर्षनिर्वाचित सांसदपार्टी

1951 

महाराज चंदिकेश्वर शरण सिंह जूदेव 

निर्दलीय


बाबूनाथ सिंह 

कांग्रेस

1957 

महाराज चंदिकेश्वर शरण सिंह जूदेव 

कांग्रेस


1962 बाबूनाथ सिंह

 कांग्रेस

1967

 बाबूनाथ सिंह 

कांग्रेस

1971 

बाबूनाथ सिंह 

कांग्रेस

1977 

लारंग साय

बीएलडी

1980 

चक्रधारी 

कांग्रेस (आई)

1984 

विजय प्रताप सिंह 

कांग्रेस

1989 

लारंग साय

भाजपा

1991 

खेलसाय सिंह 

कांग्रेस

1996

 खेलसाय सिंह 

कांग्रेस

1998 

लारंग साय 

भाजपा

1999

 खेल साय सिंह 

कांग्रेस

2004 

नंद कुमार साय 

भाजपा

2009

 मुरारीलाल सिंह 

भाजपा

2014 

कमलभान सिंह मराबी 

भाजपा

2019 

रेणुका सिंह सरुता 

बीजेपी


Live Updates
2024-04-10 07:49 GMT

सांसद प्रत्याशी चिंतामणि महाराज का जीवन परिचय...

चिंतामणि महाराज को भाजपा ने सरगुजा लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। वे पहले कांग्रेस के विधायक व संसदीय सचिव थे। चार माह पहले विधानसभा का टिकट कटने के बाद वे भाजपा में शामिल हुए है। उन्होंने टीएस सिंहदेव के खिलाफ अंबिकापुर विधानसभा सीट से भाजपा से टिकट मांगा था। पर उनकी जगह राजेश अग्रवाल को टिकट दे दिया गया। संस्कृत का वाचन करने वाले व बालपन से ही संस्कृत भाषा को अपनाने वाले उसके विद्वान चिंतामणि महाराज विधायक के साथ ही संसदीय सचिव रह चुके हैं। समाज सुधार से क्षेत्र में पकड़ बनाने वाले चिंतामणि महाराज समाजिक बुराइयों की भी खिलाफत करते हैं। वे विवाह में होने वाली फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ है और सामूहिक विवाह को बल देते हैं। संस्कृत की शिक्षा लेने वाले चिंतामणि महाराज पूर्व की बीजेपी शासन के समय राज्य संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके है। उन्होंने संस्कृत शिक्षा के लिए राज्य के जशपुर जिले में संस्कृत कॉलेज भी अपनी कोशिशों से खुलवाया है। चिंतामणि महाराज ने दूसरी बार कांग्रेस की टिकट से बलरामपुर जिले के सामरी विधानसभा से जीत हासिल की थी और विधानसभा में पहुँचे थे। चिंतामणि महाराज का जन्म भी उस तारीख को हुआ जिस तारीख को देश को गणतंत्र मिला। याने 26 जनवरी। उनका जन्म वर्तमान बलरामपुर जिले के श्रीकोट गांव में 26 जनवरी 1968 मे हुआ था। उनके पिता का नाम रामेश्वर है। चिंतामणि महाराज ने 11 वीं मेट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की है। सबसे खास बात यह है कि उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा शुरू से आखिरी तक संस्कृत में ही पूरी की है। चिंतामणि महाराज की शादी 26 मई 1992 को रविकला सिंह के साथ हुई थी। उनके 2 पुत्र व तीन पुत्री है। जो सभी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कृषि उनका मुख्य पेशा है और उन्होंने अपना स्थायी निवास गहिरा गुरु आश्रम,बिलासपुर चौक भाथुपारा, अंबिकापुर में बना रखा है। चिंतामणि महाराज खुद तो खेती करते ही है, साथ ही युवाओं को खेती के लिए प्रेरणा देते हैं। उनका मानना है कि खेती देश का परंपरागत व्यवसाय है और 80 प्रतिशत लोगो की आजीविका पहले खेती से चलती थी। अब भी युवा खेती से जुड़ कर बेरोजगारी दूर करने के साथ ही अच्छी आय अर्जित कर सकतें है और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। खेती के अलावा गौ पालन व गौ सेवा भी करना चिंतामणि महाराज को पसंद है।

2024-04-10 07:48 GMT

जाने...कौन है सबसे युवा, कितने पढ़े-लिखें हैं बीजेपी के उम्‍मीदवार और क्‍या है पॉलिटिकल बैकग्राउंड

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में बीजेपी के 11 लोकसभा प्रत्‍याशियों में से ज्‍यादातर उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त हैं। इनमें एक प्रत्‍याशी केवल 9वीं तक पढ़ा है। उम्र के लिहाज से 3 प्रत्‍याशी 50 से कम आयु के हैं। वहीं, 2 प्रत्‍याशी 60 से ज्‍यादा उम्र के हैं। 11 में से दो प्रत्‍याशी इससे पहले केवल सरपंच का चुनाव लड़े हैं।

2024-04-10 07:47 GMT

अटल जी के इस एक वादे का पार्टी को आज तक मिल रहा है फायदा

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बने अभी 24 वर्ष हुए हैं, लेकिन इसका चुनावी इतिहास काफी पुराना है। अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में इसे कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था। इस क्षेत्र ने अविभाजित मध्‍य प्रदेश को 3-3 मुख्‍यमंत्री दिए। इनमें पं. रविशंकर शुक्‍ल मध्‍य प्रदेश के पहले मुख्‍यमंत्री थे। पं. शुक्‍ल के पुत्र श्‍यामाचरण शुक्‍ल और फिर मोती लाल वोरा भी मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। पं. शुक्‍ल के पुत्र विद्याचरण शुक्‍ल यानी वीसी शुक्‍ला की केंद्रीय राजनीति में अलग धाक थी। वीसी इंदिरा और संजय गांधी के करीबियों में शामिल थे।

2024-04-10 07:47 GMT

 देखें कैसे-छत्‍तीसगढ़ में 4 महीने में ही बदल जाता है पूरा चुनावी समीकरण

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा की 90 और लोकसभा की 11 सीटें हैं। दोनों चुनावों के बीच केवल 4 महीने का अंतर होता है। विधानसभा का चुनाव नवंबर- दिसंबर में होता है तो लोकसभा चुनाव के लिए मतदान अप्रैल- मई में। लेकिन इन 4 महीने में भी प्रदेश का पूरा सियासी और सीटों का समीकरण बदल जाता है। विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ सीटों पर तीसरी पार्टियां मुकाबले को त्रिकोणी बनाने में सफल रहती हैं, लेकिन लोकसभा के चुनाव में तीसरी पार्टियां कोई विशेष असर नहीं दिख पाती हैं। 90 प्रतिशत वोट शेयर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बंट जाता है। बसपा सहित अन्‍य पार्टियां महज 10 प्रतिशत में सिमट कर रह जाती हैं।

2024-04-10 07:46 GMT

2019 में जीती हुई कोरबा और बस्‍तर नहीं है इसमें शामिल..

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा की 90 और लोकसभा की 11 सीट है। रायपुर और दुर्ग संसदीय क्षेत्र में 9-9 और बाकी 9 संसदीय क्षेत्रों में विधानसभा की 8-8 सीटें शामिल हैं। दो महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में सत्‍तारुढ़ भाजपा का प्रदर्शन बिलासपुर और दुर्ग संभाग को छोड़कर बाकी तीनों संभागों में पार्टी का प्रदर्शन अच्‍छा रहा है। सरगुजा संभाग की सभी 14 विधानसभा सीट भाजपा जीतने में सफल रही है।

2024-04-10 07:46 GMT

जानिए... राज्‍य की किस सीट पर कब होगा लोकसभा चुनाव

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर 3 चरणों में मतदान होगा। पहले चरण में केवल एक बस्‍तर सीट पर वोटिंग होगी। दूसरे चरण में कांकेर, राजनांदगांव और महासमुंद में मतदान होंगे। बाकी सीटों पर तीसरे चरण में वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में बस्‍तर लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को मतदान होगा। वहीं, राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर सीट पर 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। वहीं रायपुर, दुर्ग, सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, कोरबा, बिलासपुर पर 7 मई को वोट डाले जाएंगे। सभी सीटों के लिए एक साथ 4 जून को मतगणना होगी।

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