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Loksabha Chunav 2024: CG कांग्रेस के इस गढ़ में 1989 में बीजेपी को मिली पहली जीत: अटल जी के इस एक वादे का पार्टी को आज तक मिल रहा है फायदा

Loksabha Chunav 2024: अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में छत्‍तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। राज्‍य की सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्‍याशी ही जीतते थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के हिसाब से अब यह बीजेपी का गढ़ बन चुका है। पढ़ें एनपीजी की इस रिपोर्ट में कांग्रेस के गढ़ में भगवा लहर की स्‍टोरी...

Loksabha Chunav 2024: CG कांग्रेस के इस गढ़ में 1989 में बीजेपी को मिली पहली जीत: अटल जी के इस एक वादे का पार्टी को आज तक मिल रहा है फायदा
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By Sanjeet Kumar

Loksabha Chunav 2024: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बने अभी 24 वर्ष हुए हैं, लेकिन इसका चुनावी इतिहास काफी पुराना है। अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में इसे कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था। इस क्षेत्र ने अविभाजित मध्‍य प्रदेश को 3-3 मुख्‍यमंत्री दिए। इनमें पं. रविशंकर शुक्‍ल मध्‍य प्रदेश के पहले मुख्‍यमंत्री थे। पं. शुक्‍ल के पुत्र श्‍यामाचरण शुक्‍ल और फिर मोती लाल वोरा भी मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। पं. शुक्‍ल के पुत्र विद्याचरण शुक्‍ल यानी वीसी शुक्‍ला की केंद्रीय राजनीति में अलग धाक थी। वीसी इंदिरा और संजय गांधी के करीबियों में शामिल थे।

यही वजह है कि हर आम चुनाव में यहां की लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्‍याशी ही जीतते थे। 1989 से पहले केवल एक चुनाव ऐसा रहा जब यहां की सभी 11 सीटें कांग्रेस हारी थी। वरना 1962 और 1967 के आम चुनावों को छोड़ दें तो सभी सीटों पर कांग्रेस का ही कब्‍जा रहता था। 1962 में रायगढ़ सीट राजा विजय भूषण सिंहदेव राम राज्‍य परिषद की टिकट पर जीते थे। वहीं, 1967 में कांकेर सीट से भारतीय जन संघ की टिकट पर टीएलपी शाह चुनाव जीते थे। इसके बाद 1977 को छोड़ दें तो 1989 तक यहां कांग्रेस को कोई नहीं हरा पाया था।

1977 में सभी 11 सीटें हार गई थी कांग्रेस

देश में 1971 के चुनाव तक हर बार लोकसभा की सीटों में बदलाव होता था। अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में 1957 में छत्‍तीसगढ़ के हिस्‍से में 10 सीटें थे तो 1962 में यह घटकर 8 हो गईं। 1967 और 1971 में 10-10 सीट थी। 1977 में पहली बार 11 सीटों के लिए चुनाव हुआ। यह आपातकाल के बाद का चुनाव था। तब पूरे देश में कांग्रेस विरोधी आंधी चल रही थी। ऐसे में राज्‍य की सभी 11 सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। सभी 11 सीट भारतीय लोक दल को मिली। इसके बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस (आई) ने सभी 11 सीटों पर अपना कब्‍जा जमा लिया। इसके बाद 1984 के चुनाव में भी कांग्रेस ही सभी 11 सीटों पर जीती।

1989 में पहली बार खुला भाजपा का खाता

छत्‍तीसगढ़ में 1989 के आम चुनाव में पहली बार भाजपा का खाता खुला। हालांकि जन संघ की टिकट पर 1967 में एक जीत पार्टी को मिल चुकी थी, लेकिन बीजेपी के अस्तित्‍व में आने के बाद 1989 में बीजेपी का पहली बार छत्‍तीसगढ़ में खाता खुला। इस चुनाव में बीजेपी 6 सीट जीतने में सफल रही। इनमें सरगुजा से लरंग साय, रायगढ़ से नंद कुमार साय, जांजगीर से दिलीप सिंह जूदेव, बिलासपुर से रेश्‍म लाल जांगड़े, रायपुर से रमेश बैस और राजनांदगांव से धर्मपाल गुप्‍ता शामिल थे। दुर्ग और महासमुंद की जीत जनता दल के खाते में गई। महासमुंद से विद्याचरण शुक्‍ल और दुर्ग से पुरुषोत्‍तम लाल कौशिक जीते। कांग्रेस की टिकट पर सारंगढ़ से प्रकाश भारद्वाज, कांकेर से अरविंद नेताम और बस्‍तर से मनकु राम सोढ़ी जीते थे।


1991 में कांग्रेस ने की सभी 11 सीटों पर वापसी

1989 में 6 सीटों पर जीतने वाली बीजेपी इसके बाद 1991 में हुए आम चुनाव में यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई। कांग्रेस ने पूरी ताकत के साथ वापसी की और छत्‍तीसगढ़ के हिस्‍से की सभी 11 सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की। 1989 में जनता दल से चुनाव लड़ने वाले दिग्‍गज नेता वीसी शुक्‍ला भी कांग्रेस में लौट आए थे। वीसी 1991 में रायपुर सीट जीतने में सफल रहे। इसी चुनाव में दुर्ग सीट से चंदूलाल चंद्राकर और महासमुंद से संत पवन दीवान ने जीत दर्ज की।

1996 से फिर बदला माहौल, पहले 6, फिर 7 और 8 से 10 तक पहुंची बीजेपी

1996 के आम चुनाव से प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में फिर माहौल बना। इस बार फिर बीजेपी 6 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही। 1998 के चुनाव में बीजेपी के सीटों की संख्‍या बढ़कर 7 हो गई। इसके ठीक एक वर्ष बाद 1999 में बीजेपी फिर एक सीट बढ़ाने में सफल रही और यहां की 11 में से 8 सीटों पर भगवा का परचम लहरा गया। इसी चुनाव से प्रदेश की जनता ने गेयर बदला और इसके बाद के लगातार 3 चुनावों में बीजेपी 10 सीट जीती और कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई। 2019 के चुनाव में कांग्रेस 2 सीट तक पहुंची।

अटल जी के एक वादे ने बदल दिया पूरा माहौल

छत्‍तीसगढ़ में लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिलने वाली जीत का बड़ा श्रेय पार्टी के नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देते हैं। दरअसल 1999 के चुनाव से पहले छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य की मांग जोर पकड़ने लगी थी। चुनाव प्रचार के लिए रायपुर पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी ने रायपुर के सप्रे मैदान से प्रदेश की जनता से कहा कि यदि आप यहां की सभी 11 सीटों पर कमल खिला देंगे तो केंद्र में हमारी सरकार बनते ही छत्‍तीसगढ़ राज्‍य का गठन कर देंगे। हालांकि 1999 के चुनाव में बीजेपी को 8 ही सीटें मिली, फिर भी एक वर्ष के भीतर ही छत्‍तीसगढ़ राज्‍य का गठन हो गया।

अटल जी ने इस पर भी चुटकी ली थी। राज्‍य गठन के बाद उन्‍होंने कहा था कि छत्‍तीसगढ़ के लोगों हमें जीताने में कंजूसी कर दी, लेकिन हमने अपना वादा पूरा कर दिया है। राज्‍य स्‍थाना के बाद 2004 में पहली बार आम चुनाव हुआ। इस चुनाव में छत्‍तीसगढ़ की 10 सीट बीजेपी की झोली में गई और यह सिलसिला 2014 तक चला। 2019 में बीजेपी के खाते में जाने वाली सीटों की संख्‍या 10 से घटकर 9 रह गई।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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