CG Housing Scam: 13 नगर निगमों के 850 स्लमों के गरीबों को अब नहीं मिलेगा आशियाना, बेशकीमती जमीनों से नहीं हट पाएगा कब्जा, नहीं बन पाएगा अब कोई मरीन ड्राइव

CG Housing Scam: छत्तीसगढ़ में गरीबों के आवास पर डाका डालने के बाद अब रायपुर जैसा मरीन ड्राइव बन पाएगा और न ही बिलासपुर जैसा नई मिट्टी रोड। वो इसलिए कि सरकार ने कॉलोनाईजरों को मालामाल करने वो नियम बदल दिया, जिसे गरीबों के लिए वरदान कहा जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को छत्तीसगढ़ में पलीता लगा दिया गया। जाहिर है, पीएम मोदी का गरीबों को अफोर्डेबल आवास का सपना है। प्रधानमंत्री लगभग हर सरकारी या पब्लिक मीटिंग में इस पर जोर देते हैं।

Update: 2025-03-25 07:43 GMT
CG Housing Scam: 13 नगर निगमों के 850 स्लमों के गरीबों को अब नहीं मिलेगा आशियाना, बेशकीमती जमीनों से नहीं हट पाएगा कब्जा, नहीं बन पाएगा अब कोई मरीन ड्राइव
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CG Housing Scam: रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले चुपके से कालोनाईजर एक्ट बदल देने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि राज्य सरकार स्लम में रहने वाले गरीबों को पक्के आवासों मेंं शिफ्थ कर बेशकीमती सरकारी जमीन को मुक्त कराती थी, वह अब बीती बात हो जाएगी।

नगरीय प्रशासन सचिव रहते आरपी मंडल ने इसी योजना के तहत रायपुर के तेलीबांधा तालाब की सूरत बदल मरीन ड्राइव बना दिया। मरीन ड्राइव सिर्फ रायपुर नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए हॉट प्वाइंट बन गया है। मरीन ड्राइव से बनने से पहले तेलीबांधा तालाब झाड़ियों से ढका, जुआरियों, शराबियों का अड्डा होता था।

इसी तरह बिलासपुर में अमर अग्रवाल ने मिट्टी गली के झुग्गी-झोपड़ियों को हटाकर वहां रहने वालों को पक्के घर में व्यवस्थापना कराया और वहां अब शानदार सड़क बन गई है। इस सड़क के बन जाने से लोगों को जाम से मुक्ति मिलने के साथ ही कनेक्टिविटी की एक्सट्रा सुविधा मिल गई।

पिछले डेढ़ दशक में कालोनाईजरों से नगर निगमों को मिले जमीन से छत्तीसगढ़ में गरीबों के व्यवस्थापन से लेकर बेशकीमती सरकारी जमीन मुक्त करा वहां आमोद-प्रमोद की जगह बनाने के अनेक काम हुए। मगर अब इस पर ब्रेक लग जाएगा। क्योंकि, पिछली सरकार के दौरान विधानसभा चुनाव से 15 दिन पहले कालोनाईजर एक्ट को बदल दिया गया।

13 नगर निगम, 850 स्लम एरिया

छत्तीसगढ़ के 13 नगर निगमों में 850 स्लम एरिया है। नगरीय प्रशासन विभाग की एजेंसी के एक सर्वे के मुताबिक इस 850 स्लम में एक लाख सात हजार गरीब तकलीफों के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। जब तक कालोनाईजरों एक्ट बदलने से पहले इन गरीबों की आखों में अपना पक्का मकान का सपना था। मगर अब वह हमेशा के लिए टूट चुका है।

अब न इन्हें पक्का आवास मिलेगा और न ही अब शहरों के बीच अरबों रुपए की सरकारी जमीनें मुक्त हो पाएंगी। क्योंकि, अब कालोनाईजर एक्ट में नगर निगमों को गरीबों के लिए 15 परसेंट जमीन देने का नियम बदल गया है। इस नियम में ऐसी कैंची चलाई गई है कि नगर निगमों को अब कुछ नहीं मिलेगा। इसमें सिर्फ और सिर्फ बिल्डर और कालोनाईजर मालामाल होंगे।

गौरतलब है, अक्टूबर 2023 में विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ और उससे पहले 13 सितंबर को नए नियम को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया गया। समझिए ये तीन खेला कैसे किया गया।

1. पहला खेला

13 सितंबर 2023 से पहले नियम यह था कि कालोनाईजर कालोनी के कुल क्षेत्रफल का 15 परसेंट एरिया आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए और 10 प्रतिशत एरिया निम्न आय वर्ग के लिए रिजर्व करेंगे। नगरीय प्रशासन विभाग ने इसे चुपके से कमजोर वर्गों के लिए 15 की जगह नौ परसेंट और निम्न आय वर्ग के लिए 10 की जगह छह परसेंट कर दिया। याने लगभग आधा।

2. दूसरा खेला

इस प्वाइंट को ठीक से समझिएगा....पहले कालोनी के कुल एरिया का गरीबों के लिए 15 और निम्न आय वर्ग के लिए 10 परसेंट प्लाट रिजर्व रखने का प्रावधान था। मगर नए नियम में परसेंट तो बदला ही, कालोनाईजरों ने इसे कालोनी के कुल क्षेत्रफल की बजाए प्लाटां की कुल संख्या करा लिया। याने आदेश में आकार की जगह संख्या लिख अफसरों ने बिल्डरों की लाटरी निकाल दी।

पुराने नियम अनुसार अगर कोई बड़ा बिल्डर 100 एकड़ की कालोनी बना रहा है तो उसे 15 एकड़ गरीबों के आवासों के लिए छोड़ना होता था। मगर इस नियम से अब 100 एकड़ में जितने मकान बनाएगा, उन मकानों की संख्या का नौ परसेंट गरीबों के लिए रिजर्व करेगा।

इसमें महत्वपूर्ण यह है कि कालोनी में कई साइज की प्लाटिंग की जाती है। बिल्डर अब इसमें क्या करेगा छोटे प्लाटों या छोटे मकानों की गिनती कर नौ और छह परसेंट की पूर्ति कर देगा। इसे आप ऐसे समझिए....10 एकड़ की कोई 100 प्लाटों की एक कालोनी है। उसमें 25 प्लाट 2400 फुट, 50 प्लाट 2000 फुट और 25 प्लाट 1200 फुट के हैं। चूकि नए नियम में अब कुल क्षेत्रफल के 15 परसेंट की बजाए कुल संख्या का नौ परसेंट किया गया है, लिहाजा कालोनाईजर सबसे छोटे वाले 1200 साइज के नौ प्लाट गरीबों के लिए रिजर्व कर मुक्ति पा लेगा। पुराने नियम के अनुसार बिल्डर को 10 एकड़ में से डेढ़ एकड़ गरीबों के लिए रिजर्व करना था। मगर अब आधा एकड़ से भी कम में उसका काम हो जाएगा। तभी इस नियम के बदलने से एक साल में 200 एकड़ जमीनों का नुकसान हो गया।

3. तीसरा सबसे बड़ा खेला

पहले के नियम में कालोनाईजरों को कालोनी के कुल एरिया का 15 प्रतिशत लैंड गरीबों के लिए आवास बनाने के लिए संबंधित नगर निगम या नगरपालिका को सौंपना पड़ता था। इसमें शर्त यह होती थी कि उक्त जमीन टाउन एंड कंट्री से स्वीकृत आवासीय एरिया हो। और कालोनी के 15 परसेंट एरिया के मूल्य के बराबर हो।

यानी ऐसा नहीं कि शंकर नगर में वीआईपी रोड में कालोनी हो और बिल्डर कहीं आउटर में सस्ती जमीन नगर निगम को टिका दें। नए नियम में नगरपालिक निगम और नगरपालिकाओं को लैंड देने के बजाए अब बिल्डरो और कालोनाईजरों पर छोड़ दिया गया कि वे जहां चाहे, खुद गरीबों के लिए नौ परसेंट और निम्न आय वर्ग के लिए छह परसेंट जमीन तय कर मकान बनाएं और उन्हें बेचें।

दोनों हाथों से लूटना

नए नियमों से छत्तीसगढ़ के बिल्डरों की स्थिति दोनों हाथ घी में और सिर कड़ाही में जैसी हो गई। याने गरीबों का रकबा भी कम किया गया, उपर से कुल आकार के बजाए संख्या कर दिया गया और तीसरा, वो जहां चाहे वहां प्लाटिंग कर आवास बनाए और खुद बेचें। याने गजब की अंधेरगर्दी।

सबसे बड़ा मजाक

नए नियमों में गरीबों और निम्न वर्ग के आवासों की बिक्री के लिए जो नियम बनाए गए, वो भी गले नहीं उतर रहा है। बिल्डर उसके लिए आवेदन आमंत्रित करेगा। लिस्ट को स्कूटनी करके याने जो गरीबी की शर्तें पूरा करते हों, उनकी लिस्ट बनाकर निगम या नगरपालिका के सक्षम अधिकारी को सौंपेगा। उसके बाद उन्हें बेचेगा। इसे पढ़कर आप भी चकित होंगे। पिछले एक साल में दर्जनों नई कालोनियों के लिए प्लाटिंग हुई है। आपने कहीं किसी बिल्डर का इश्तेहार देखा है, जिसमें वे गरीबों और निम्न आय वर्ग से आवेदन मंगाए हो।

कोई मानिटरिंग नहीं

कालोनाईजरों को जमीन रिजर्व करने और आवास बनाकर बेचने का प्रावधान तो किया गया मगर उसकी निगरानी कौन करेगा, नए नियमों में इसका कोई उल्लेख नहीं। याने कालोनाईजर ने गरीबो के लिए कालोनी के तीन किलोमीटर के दायरे में जमीन रिजर्व किया है या नहीं, आवासीय है या कृषि भूमि? निर्धारित साइज का आवास बना रहा या नहीं? नए नियम में इस पर कुछ भी नहीं कहा गया है। याने बिल्डरों को गरीबों को लूटने की खूली छूट दे दी गई।

चुनाव से महीने भर पहले क्यों?

जिस कालोनाईजर एक्ट को बदलवाने के लिए छत्तीसगढ़ के बिल्डर 13 सालों से प्रयासरत रहे, वह विधानसभा चुनाव 2023 से 15 दिन पहले क्यों किया गया...यह प्रश्न लाजिमी है। जाहिर है, रमन सरकार के दौरान भी बिल्डरों ने काफी प्रयास किया। मगर सरकार टस-से-मस नहीं हुई। कांग्रेस सरकार में भी चार साल तक बिल्डरों की दाल नहीं गली। अक्टूबर के फर्स्ट वीक में आचार संहिता संभावित थी। इससे पहले 13 सितंबर को कालोनाईजर एक्ट को बदल दिया गया।

1000 करोड का फटका

कालोनाईजर एक्ट में संशोधन से गरीबों के नाम पर बिल्डरों से मिलने वाली 15 फीसदी जमीनें मारी गई। पिछले एक साल में रेरा में 55.65 लाख वर्ग मीटर जमीनों की कालोनियों के लिए रजिस्ट्रेशन कराया गया है। 15 परसेंट के हिसाब से नगरपालिकाओं और नगर निगमों को एक साल में 200 एकड़ जमीनें मिलती और इसमें 300 वर्ग फुट की 27 हजार ईडब्लूएस आवास बनते। सोचिए, सिर्फ एक साल में गरीबों और सरकार का इतना बड़ा नुकसान हुआ, तो साल-दर-साल क्या होगा।

सिर्फ एक साल की बात करें तो शहरों में गिरे हालत में पांच करोड़ रुपए एकड़ जमीन होंगी तो 200 एकड़ का एक हजार करोड़ होता है। याने बिल्डरों को एक साल में एक हजार करोड का फायदा हुआ।

रेरा के अनुसार 13 सितंबर 2023 के बाद अब तक छत्तीसगढ़ में 217 नए प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है। इसके लिए 54,65756 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की जमीन निर्धारित की गई है। इनमें 25170 प्लाट कटेंगे या आवास बनेंगे।

13 सितंबर 2023 से पहले के नियम के अनुसार 54.65 लाख वर्ग मीटर में से 15 परसेंट के हिसाब से कालोनाईजर गरीबों के लिए आवास के लिए नगरपालिकाओं या नगर निगमों को 200 एकड़ जमीन देते। इसमें गरीबों के लिए 300 वर्ग फुट के 27 हजार पक्के मकान बनते।

200 की बजाए अब 20 एकड़

नए नियम के अनुसार अब 200 एकड़ की जगह कालोनाईजर 20 एकड़ जमीन गरीबों के लिए सुरक्षित रख फुरसत पा जाएंगे। जबकि, 54.65 लाख वर्ग मीटर में से 15 परसेंट के हिसाब से उन्हें 200 एकड़ जमीन देना पड़ता। मगर 15 को घटाकर 9 परसेंट करने और क्षेत्रफल को संख्या में परिवर्तित करने के चतुराई भरे खेल से अब वे 20 एकड़ जमीन ही रिर्जव करेंगे। क्योंकि, सबसे छोटे साइज के 500 फुट के प्लाट की बात करें तो 9 परसेंट अनुसार 20 एकड़ होगा।

नगरनिगमों को जीरो

नए नियमों के गरीबों के लिए आरक्षित की जाने वाली जमीनें 15 से घटकर 9 परसेंट तो किया ही गया, उसे भी नगरपालिकाओं और नगर निगमों को नहीं दिया जाएगा। कालोनाईजर खुद ही अपने हिसाब से जमीनें आरक्षित करेंगे और खुद ही बनाकर बेच देंगे। मतलब नगरपालिकाओं और नगर निगमों के हाथ में अब कुछ भी नहीं रहेगा। इस नियम से हर साल नगरपालिकाओं को लैंड बैंक बनता जा रहा था। इसी जमीनों पर शहरों के भीतर गरीबों के लिए पक्का आवास बनाया जा रहा था।

देश में छत्तीसगढ़ का यूएसपी

गरीबों के लिए शहरों के भीतर अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाने के लिए देश में छत्तीसगढ़ को नजीर के रूप में पेश किया जा रहा था। क्योंकि, दूसरे राज्यों में ये नियम नहीं है। बाकी सभी राज्यों में शहरों के भीतर जमीन बची नहीं। लिहाजा, उन्हें शहरों के 30-40 किलोमीटर बाहर गरीबों के लिए आवास बनाया जाता है। भारत सरकार में होने वाली मीटिंगों में छत्तीसगढ़ को इसके लिए खूब वाहवाही मिलती थी कि देश का अकेला राज्य जहां गरीबों को शहरों के भीतर व्यवस्थान की व्यवस्था की जाती है।

छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव के पहले बिल्डरों ने गरीबों के हक पर डाका डालने का काम किया, उसके लिए वे पिछले 23 साल से प्रयासरत थे। पहले अजीत जोगी सरकार में नियम बदलवाने की कोशिश की। उसके बाद रमन सिंह सरकार के 15 बरसों तक लगातार दबाव डालते रहे कि किसी भी तरह नियम बदल जाए, जिससे उन्हें दोनों हाथ से मलाई खाने का मौका मिल जाए।

रमन सिंह सरकार में आवास और पर्यावरण विभाग तथा नगरीय प्रशासन में लंबे समय तक डायरेक्टर रहे एक अफसर ने एनपीजी न्यूज को बताया कि रमन सिंह की दूसरी और तीसरी पारी में कालोनाईजरों का बडा प्रेशर था कि गरीबों और कमजोर आय वर्ग के लिए जमीन छोड़ने का नियम बदल दिया जाए। खासकर, 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले सारे कालोनाईजर एकजुट हो गए थे। मगर सरकार टस-से-मस नहीं हुई।

दरअसल, छत्तीसगढ़ देश का पहला नजीर पेश किया था, जो कालोनाईजरों से जमीन लेकर गरीबों के लिए शहरों में फ्लैट बनाकर दे रहा था। बिल्डर चाहते थे कि जमीन नगरपालिक और नगर निगम को देने की बजाए उन्हें अधिकार दे दिया जाए....वे खुद बनाकर बेचेंगे।

पिछली सरकार में विधानसभा चुनाव से महीना भर पहले सितंबर में वे इसमें कामयाब हो गए। नगरीय प्रशासन विभाग ने कालोनाईजरों की मिलीभगत से गरीबों के हकों की कटौती करने वाला आदेश 13 सितंबर 2023 को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया। कालोनाईजर नियमों में ऐसे समय बदलाव किया गया, जब पूरा तंत्र चुनाव में लगा था। याने छत्तीसगढ़ के कालोनाईजर 23वें साल में गरीबों का हक मारने में कामयाब हो गए।

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