CG Housing Scam: मंत्री और सचिव ने सबसे बड़े स्कैम को दिया अंजाम, नियम बदलकर छत्तीसगढ़ के कालोनाइजरों को किया मालामाल
CG Housing Scam: 1. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 के आचार संहिता प्रभावशील होने से महीने भर पहले इस घोटाले को दिया गया अंजाम। 2. सालों पुराने नियमों को बदलकर कालोनियों में गरीबों के लिए बनने वाले मकानों में कर दिया खेला। 3. शहरों के बीच में सरकार के लैंड बैंक को लगाया पलीता। 4. छत्तीसगढ़ के अफसरों ने पीएम नरेंद्र मोदी के गरीबों की अफोर्डेबल आवास योजना पर किया कुठाराघात। 5. सबसे बड़ा घोटाला इसलिए कि इसमें करप्शन तो हुआ ही, सरकार को नुकसान होने के साथ ही गरीबों के हकों को लगाया गया चूना। 6. नीचे पढ़िये छत्तीसगढ़ के बड़े बिल्डरों, कालोनाइजरों को मालामाल करने सरकार ने नियमों में इस तरह चुपके से बदलाव कर दिया कि किसी को कानोकान खबर नहीं लग पाई। और सबसे लास्ट में...विभागीय सचिव की नोटशीट पर मंत्री ने दी प्रशासकीय अनुमोदन।

CG Housing Scam: रायपुर। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव 2023 का ऐलान होने से करीब महीने भर पहले बिल्डरों और कालोनाइजरों को मालामाल करने का खेल किया गया।
भारत निर्वाचन आयोग ने 16 अक्टूबर 2023 को चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया। उससे पहले 13 सितंबर 2023 को इस घोटाले का नियम पारित कर दिया गया। अफसरों ने कोई विलंब न करते हुए इसे 13 सितंबर को राजपत्र में प्रकाशित भी कर दिया।
जाहिर है, इस तरह के घोटाले चुनाव के पहले या फिर चुनाव के दौरान ही किए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा ही हुआ। नगरीय प्रशासन विभाग ने बड़ी चालाकी के साथ कालोनाइजरों को मालामाल करने का टाईम तय किया, जिस समय राजनीतिक पार्टियों से लेकर पूरी मीडिया चुनाव में व्यस्त रहती है।
नियमों को बदल डाला
नगरीय प्रशासन विभाग ने सालों पुराने नगरपालिका निगम तथा नगरपालिका (कालोनाईजर का रस्ट्रिशन निबंधन और शर्ते) नियम 10 में संशोधन कर दिया। इस संशोधन से गरीबों को शहरों के भीतर आवास मुहैया कराने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को बड़ा झटका लगा। इस खबर को आप गंभीरता से पढ़िये और बारीकी से समझिए कि किस तरह घोटाले को अंजाम दिया गया।
1. पहला खेला
13 सितंबर 2023 से पहले नियम यह था कि कालोनाईजर कालोनी के कुल क्षेत्रफल का 15 परसेंट एरिया आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए और 10 प्रतिशत एरिया निम्न आय वर्ग के लिए रिजर्व करेंगे। नगरीय प्रशासन विभाग ने इसे चुपके से कमजोर वर्गों के लिए 15 की जगह नौ परसेंट और निम्न आय वर्ग के लिए 10 की जगह छह परसेंट कर दिया। याने लगभग आधा।
2. दूसरा खेला
इस प्वाइंट को ठीक से समझिएगा....पहले कालोनी के कुल एरिया का गरीबों के लिए 15 और निम्न आय वर्ग के लिए 10 परसेंट प्लाट रिजर्व रखने का प्रावधान था। मगर नए नियम में परसेंट तो बदला ही, कालोनाईजरों ने इसे कालोनी के कुल क्षेत्रफल की बजाए प्लाटां की कुल संख्या करा लिया। याने आदेश में आकार की जगह संख्या लिख अफसरों ने बिल्डरों की लाटरी निकाल दी।
पुराने नियम अनुसार अगर कोई बड़ा बिल्डर 100 एकड़ की कालोनी बना रहा है तो उसे 15 एकड़ गरीबों के आवासों के लिए छोड़ना होता था। मगर इस नियम से अब 100 एकड़ में जितने मकान बनाएगा, उसका नौ परसेंट गरीबों के लिए रिजर्व करेगा और छह परसेंट निम्न आय वर्ग के लिए।
इसमें महत्वपूर्ण यह है कि कालोनी में कई साइज की प्लाटिंग की जाती है। बिल्डर अब इसमें क्या करेगा छोटे प्लाटों या छोटे मकानों की गिनती कर नौ और छह परसेंट की पूर्ति कर देगा। इसे आप ऐसे समझिए....10 एकड़ की कोई 100 प्लाटों की एक कालोनी है। उसमें 25 प्लाट 2400 फुट, 50 प्लाट 2000 फुट और 25 प्लाट 1200 फुट के हैं। चूकि नए नियम में अब कुल क्षेत्रफल के 15 और 10 परसेंट के बजाए कुल संख्या का नौ परसेंट और छह परसेंट कर दिया गया है, लिहाजा कालोनाईजर सबसे छोटे वाले 1200 साइज के नौ प्लाट गरीबों के लिए रिजर्व कर देगा और छह प्लाट निम्न आय वर्ग के लिए। पुराने नियम के अनुसार बिल्डर को 10 एकड़ में से डेढ़ एकड़ गरीबों के लिए रिजर्व करना था। मगर अब आधा एकड़ से भी कम में उसका काम हो जाएगा। याने बिल्डरों की खासी बड़ी जमीनें बच जाएगी।
3. तीसरा सबसे बड़ा खेला
पहले के नियम में कालोनाईजरों को कालोनी के कुल एरिया का 15 और 10 प्रतिशत लैंड कमजोर वर्ग और निम्न आय वर्ग के लिए आवास बनाने के लिए संबंधित नगर निगम या नगरपालिका को सौंपना पड़ता था। इसमें शर्त यह होती थी कि उक्त जमीन टाउन एंड कंट्री से स्वीकृत आवासीय एरिया हो। और कालोनी के 15 परसेंट एरिया के मूल्य के बराबर हो।
यानी ऐसा नहीं कि शंकर नगर में वीआईपी रोड में कालोनी हो और बिल्डर कहीं आउटर में सस्ती जमीन नगर निगम को टिका दें। नए नियम में नगरपालिक निगम और नगरपालिकाओं को लैंड देने के बजाए अब बिल्डरो और कालोनाईजरों पर छोड़ दिया गया कि वे जहां चाहे, खुद गरीबों के लिए नौ परसेंट और निम्न आय वर्ग के लिए छह परसेंट जमीन तय कर मकान बनाएं और उन्हें बेचें।
दोनों हाथों से लूटना
नए नियमों से छत्तीसगढ़ के बिल्डरों की स्थिति दोनों हाथ घी में और सिर कड़ाही में जैसी हो गई। याने गरीबों का रकबा भी कम किया गया, उपर से कुल आकार के बजाए संख्या कर दिया गया और तीसरा, वो जहां चाहे वहां प्लाटिंग कर आवास बनाए और खुद बेचें। याने गजब की अंधेरगर्दी।
सबसे बड़ा मजाक
नए नियमों में गरीबों और निम्न वर्ग के आवासों की बिक्री के लिए जो नियम बनाए गए, वो भी गले नहीं उतर रहा है। बिल्डर उसके लिए आवेदन आमंत्रित करेगा। लिस्ट को स्कूटनी करके याने जो गरीबी की शर्तें पूरा करते हों, उनकी लिस्ट बनाकर निगम या नगरपालिका के सक्षम अधिकारी को सौंपेगा। उसके बाद उन्हें बेचेगा। इसे पढ़कर आप भी चकित होंगे। पिछले एक साल में दर्जनों नई कालोनियों के लिए प्लाटिंग हुई है। आपने कहीं किसी बिल्डर का इश्तेहार देखा है, जिसमें वे गरीबों और निम्न आय वर्ग से आवेदन मंगाए हो।
कोई मानिटरिंग नहीं
कालोनाईजरों को जमीन रिजर्व करने और आवास बनाकर बेचने का प्रावधान तो किया गया मगर उसकी निगरानी कौन करेगा, नए नियमों में इसका कोई उल्लेख नहीं। याने कालोनाईजर ने गरीबो के लिए कालोनी के तीन किलोमीटर के दायरे में जमीन रिजर्व किया है या नहीं, आवासीय है या कृषि भूमि? निर्धारित साइज का आवास बना रहा या नहीं? नए नियम में इस पर कुछ भी नहीं कहा गया है। याने बिल्डरों को गरीबों को लूटने की खूली छूट दे दी गई।
लैंड बैंक का बड़ा नुकसान
कालोनाईजर नियमों को बदलने से गरीबों का बड़ा नुकसान तो हुआ ही, सरकार के लैंड बैंक स्कीम की भी धज्जियां उड़ गई। दरअसल, बिल्डर कालोनी बनाने से पहले 15 परसेंट जमीन नगरपालिकाओं को सौंपते थे, उससे सरकार का एक बड़ा लैंड बैंक बन जाता था। नगर निगम या नगरपालिका इसी जमीनों पर शहरों के बीच गरीबों या बेजा-कब्जा से विस्थापित गरीबों के लिए पक्का मकान बनाती थी। मगर अब जमीन मिलेगी नहीं हो फिर उनके लिए मकान कैसे बनेंगे?
एक लाख मकान ऐसे ही बने
छत्तीसगढ़ में गरीबों और निम्न आय वर्ग के लिए कालोनाईजरों से मिली जमीन पर रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, दुर्ग, कोरबा जैसे शहरों में करीब एक लाख मकान गरीबो के लिए बनाए गए। सिर्फ रायपुर, बिलासपुर में ही पिछले एक दशक मे करीब 50 हजार मकान बने होंगे। इन आवासों को गरीबों के साथ ही बेजा कब्जाधारियों को अलॉट किया जाता था।
बेजा कब्जा वालों का क्या?
कालोनाईजर अब नगरपालिकाओं को जमीनें नहीं देंगे तो फिर गरीबों के लिए मकान नहीं बनेंगे। ऐसे में सवाल उठता है, शहरों के प्राइम लोकेशनों पर बसी झुग्गी-झोपड़ियां को सरकार कैसे हटा पाएगी। अभी तक उन्हें इसी तरह के आवासों में शिफ्थ किया जाता था। चूकि पक्के आवास होते थे, उनमें पानी, बिजली, शौचालय की सुविधा भी। सो, बेजा कब्जा वालों को अपना जीर्ण-शीर्ण आशियाना छोड़ने में दिक्कत नहीं होती थी।
पीएम मोदी के सपना
छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार है। इंजन के मुख्य पायलट याने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है गरीबों के लिए अफोर्डेबल मकान बनाकर मुहैया कराया जाए। इसके लिए भारत सरकार अपना अंशदान देती है। मगर छत्तीसगढ़ में मोदी के सपनों पर कुठाराघात कर दिया गया।
अब जानिये नियम कैसे बदला
कालोनाईजर नियम अगर एक्ट होता तो उसकी फाइल कैबिनेट तक जाती। यह नियम था और नियम बदलने का अधिकार विभाग को होता है। इसके लिए विभागीय मंत्री की प्रशासनिक मंजूरी लगती है। पिछली कांग्रेस सरकार में बताते हैं, कालोनाईजरों ने नगरीय प्रशासन विभाग के साथ गलबहियां कर मनमाफिक नियम बदलवा लिया। नियम बदलने के लिए विभाग से फाइल चलती है।
विभागीय सचिव मंत्री को अनुमोदन के लिए फाइल भेजते हैं। 10 सितंबर को नगरीय प्रशासन के सचिव ने नगरीय प्रशासन मंत्री को फाइल भेजी और हस्ताक्षर होने के बाद 13 सितंबर 2023 को आदेश राजपत्र में प्रकाशित हो गया। इसमें बहुत बड़े स्तर पर लेनदेन की खबरें हैं।
देखिये यह है नया राजपत्र |
देखिये यह है पुराना नियम, जिसे बदला गया |