Supreme Court News: दूसरी शादी पर जवान की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही, हाई कोर्ट के हस्तक्षेप को बताया अनुचित

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना गंभीर दुराचरण की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा गई सजा में हाई कोर्ट को अपीलीय अधिकार की तरह हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल CISF के जवान की बर्खास्तगी आदेश को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है।

Update: 2025-12-26 13:30 GMT

supreme court of india (NPG file photo)

Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना गंभीर दुराचरण की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा गई सजा में हाई कोर्ट को अपीलीय अधिकार की तरह हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल CISF के जवान की बर्खास्तगी आदेश को सही ठहराते हुए हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने केंद्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए अनुशासनात्मक, अपीलीय और पुनरीक्षण प्राधिकरणों द्वारा पारित बर्खास्तगी आदेशों को सही ठहराते हुए बहाल कर दिया है।

प्रमुख पक्षकार की वर्ष 2006 में CISF में कांस्टेबल के रूप में नियुक्ति हुई थी। मार्च 2016 में उसकी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई कि वह पहली शादी बने रहने के दौरान दूसरी शादी कर चुका है। और वह उसकी तथा नाबालिग पुत्री की उपेक्षा कर रहे हैं। पहली पत्नी की शिकायत के बाद विभाग ने जवान के विरुद्ध नियम 18(b), CISF रूल्स, 2001 के तहत आरोप पत्र जारी किया। जारी आरोप पत्र में दूसरी शादी को सेवा-नियमों का उल्लंघन और गंभीर दुराचरण माना गया। विभागीय जांच में आरोप सिद्ध पाए जाने पर 1 जुलाई 2017 को वरिष्ठ कमांडेंट ने जवान को सेवा से बर्खास्त कर दिया। इस आदेश को चुनौती देते हुए जवान ने अपीलीय तथा पुनरीक्षण प्राधिकारी के समक्ष अपील पेश की। अपील की सुनवाई के बाद प्राधिकारियों ने विभाग के फैसले को बरकरार रखा।

अपीलीय प्राधिकारी के फैसले को चुनौती हुए जवान ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश से परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा, यह कहते हुए याचिकाकर्ता जवान को दी गई सजा पर पुनर्विचार करने मामला वापस प्राधिकारियों को भेज दिया। हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील पेश की। मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि अनुशासनात्मक मामलों में हाई कोर्ट का अधिकार क्षेत्र सीमित है। अनुच्छेद 226 में दी गई व्यवस्था के मद्देनजर हाई कोर्ट अपीलीय न्यायालय की तरह सजा में दखल नहीं दे सकता। न्यायिक समीक्षा सिर्फ निर्णय प्रक्रिया तक सीमित है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सजा में हस्तक्षेप तभी संभव है, जब प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो, नियमों का पालन न किया गया हो, साक्ष्य का अभाव हो, या सजा इतनी चौंकाने वाली हो कि न्यायिक विवेक को झकझोर दे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियम 18, CISF रूल्स में साफ है कि ऐसे नियम नैतिक फटकार नहीं, बल्कि अनुशासन व संस्थागत दक्षता बनाए रखने से जुड़े सेवा-शर्तें हैं। निजी जीवन में ऐसा आचरण, जो घरेलू विवाद, आर्थिक अस्थिरता या विभाजित दायित्व उत्पन्न करे, बल की संचालन-क्षमता और मनोवैज्ञानिक स्थिरता पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। कोर्ट ने कहा, वर्तमान मामले में नियम स्पष्ट और निर्विवाद है। कार्यवाही में किसी प्रक्रियात्मक त्रुटि का आरोप भी नहीं है। डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए CISF द्वारा पारित बर्खास्तगी आदेश को सही ठहराया है।

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