Bilaspur High Court: कर्मचारी की बर्खास्तगी पर अहम फैसला, हाईकोर्ट ने डीजे के आदेश को पलटा

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि किसी कर्मचारी को उनकी सेवा की आवश्यकता नहीं है, के आधार पर पदमुक्त नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता स्टेनोग्राफर को 50 फीसद बकाया वेतन के साथ सेवा में वापस लेने जारी किया आदेश।

Update: 2024-08-08 03:15 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग में स्टेनोग्राफर हिन्दी के पद पर कार्यरत एक कर्मचारी को डीजे दुर्ग ने गोपनीयता भंग करने और अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। डीजे के आदेश को चुनौती देते हुए स्टेनोग्राफर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस पीपी साहू के डिवीजन बेंच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने दुर्ग डीजे के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को सेवा में वापस लेने व बकाया वेतन का 50 प्रतिशत राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है।

दिशान सिंह डहरिया ने जिला न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सेवा समाप्ति के आदेश को रद्द करने और सेवा में वापसी की गुहार लगाई थी। याचिका के अनुसार जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग में 11 अन्य उम्मीदवारों के साथ आशुलिपिक हिन्दी के पद पर उसकी नियुक्ति की गई थी।

तृतीय सिविल न्यायाधीश, वर्ग- एक के न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के कोर्ट में पदस्थापना की गई थी। आरोप है कि उसने अपने अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया है। जिसकी शिकायत 30.जनवरी.2019 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश से शिकायत की गई। दुर्ग जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने पांच अगस्त 2019 को मेमो जारी किया। याचिकाकर्ता पर आरोप है कि नोटिस की फोटोकापी उसने सीधे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय को भेज दिया है। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण नियम), 1965 के नियम 3(3)(डी)(x). और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा के नियम 10 के तहत दंडनीय अपराध है। कदाचरण का आरोप लगाते हुए शोकाज नोटिस जारी कर तीन दिन के भीतर जवाब पेश करने का निर्देश दिया गया। नोटिस में इस बात का जवाब देने कहा गया कि रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय को सीधे शिकायत किस आधार पर की। समुचित जवाब ना आने का कारण बताते हुए डीजे दुर्ग ने उसकी सेवा समाप्त कर दी।

संघ के एक पदाधिकारी ने वाट्सएप ग्रुप में किया वायरल

याचिकाकर्ता ने अपने जवाब में कहा कि शिकायत की एक प्रति संघ के एक पदाधिकारी के पास है। शिकायत की फोटोकापी कराने के बाद उसने उसे संघ के वाट्सएप ग्रुप में वायरल कर दिया। वाट्सएप ग्रुप में वायरल करते समय ना तो उसकी सहमति ली गई और ना ही यह सब उसकी जानकारी में था। शपथ पत्र के साथ जवाब पेश किया और प्रकरण को बंद करने की मांग की। 24 दिसंबर.2019 जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता की सेवाओं की आवश्यकता ना होने की बात कहते हुए सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया। आदेश के साथ ही एक महीने का वेतन भुगतान का निर्देश भी दिया।

डीजे के आदेश को इस आधार पर दी चुनौती

बिना जांच के उसे हटा दिया गया है जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 का उल्लंघन है। बकाया वेतन भुगतान की मांग याचिकाकर्ता ने की है। और प्रार्थना की गई पूरे बकाया वेतन के साथ बहाली। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच में हुई। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को एक समिति की सिफारिश के आधार पर याचिकाकर्ता को दो वर्ष की परिवीक्षावधि में स्टेनोग्राफर हिन्दी के पद पर नियुक्त किया गया था। परिवीक्षा अवधि संतोषजनक ढंग से पूरा होने पर उसकी पुष्टि की जाएगी। लिहाजा सक्षम प्राधिकारी द्वारा यह कहते हुए कि उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है, नौकरी से हटाया नहीं जा सकता। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बकाया वेतन का 50 फीसदी राशि का भुगतान का आदेश दिया है।

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