Vande Mataram 150 Years: वंदे मातरम के 150 साल, आज़ादी का अमर गीत जिसने देश की आत्मा को आवाज दी, पढ़ें कब वंदे मातरम पढ़ने पर मिलती थी सजा, लगता था जुर्माना!
Vande Mataram 150 Years: बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना ‘वंदे मातरम’ आज़ादी के आंदोलन की आत्मा बनी। जानिए कैसे यह कविता राष्ट्रीय गीत बनी और आज भी भारत की एकता का प्रतीक है।
Vande Mataram 150 Years: 7 नवंबर 1875 यही वह दिन था जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने एक ऐसा गीत लिखा जिसने आने वाले दशकों में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा ही बदल दी। “वंदे मातरम” केवल एक कविता नहीं रही बल्कि यह मातृभूमि के प्रति प्रेम, त्याग और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक बन गई। 2025 में इस गीत के 150 वर्ष पूरे हो गए है लेकिन इसकी गूंज आज भी उतनी ही गहरी है जितनी तब थी जब इसे पहली बार बंगदर्शन पत्रिका में इसे प्रकाशित किया गया था।
1. वंदे मातरम की रचना और पहला प्रकाशन
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 को “वंदे मातरम” लिखा, जो पहली बार बंगदर्शन में छपा और 1882 में उनके उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास उन संन्यासियों की कहानी थी जो मादरे वतन को देवी मां के रूप में पूजते हुए अंग्रेज़ी शासन से लड़ते हैं। इस गीत के शब्दों में वही भावना झलकती है मातृभूमि के लिए निस्वार्थ प्रेम और बलिदान।
2. आंदोलन की आवाज बना 'वंदे मातरम'
1896 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में जब रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार गाया और वहीं से यह देशभक्ति का स्वर बन गया। 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ जब स्वदेशी आंदोलन की लहर उठी तो “वंदे मातरम” हर सभा, जुलूस और विरोध में गूंजने लगा। 7 अगस्त 1905 को जब हज़ारों छात्रों ने कोलकाता टाउन हॉल की ओर मार्च किया तो वंदे मातरम के नारों ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।
3. विदेशी धरती पर गूंजा ‘वंदे मातरम’
1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया जिस पर “वंदे मातरम” अंकित था। यही नहीं उसी साल लाहौर और रावलपिंडी में भी जुलूसों के दौरान जब यह गीत गूंजा तो अंग्रेज़ पुलिस ने इसे कुचलने की कोशिश की। लेकिन “वंदे मातरम” अब सिर्फ़ गीत नहीं रहा यह प्रतिरोध की पहचान बन चुका था।
4. वंदे मातरम पर ब्रिटिश प्रतिबंध और जनता का विरोध
ब्रिटिश हुकूमत इस गीत से डरने लगी थी। 1905 में बंगाल के रंगपुर ज़िले में जब छात्रों ने “वंदे मातरम” गाया तो 200 बच्चों पर 5-5 रुपये का जुर्माना लगाया गया। धुलिया (महाराष्ट्र) की सभा में जब जनता ने यही नारा लगाया तो लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां हुईं। लेकिन आवाज़ नहीं थमी कलकत्ता से लेकर बारीसाल तक “वंदे मातरम” आंदोलन का प्रतीक बन चुका था।
5. बंकिम चंद्र चटर्जी: वह लेखक जिसने शब्दों से जगा दिया भारत
बंकिम चंद्र चटर्जी 19वीं सदी के बंगाल के प्रमुख साहित्यकार थे। कपालकुंडला, दुर्गेशनंदिनी और देवी चौधरानी जैसी कृतियों से उन्होंने भारतीय समाज में नई चेतना जगाई।
उनकी रचना “वंदे मातरम” अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ पहली वैचारिक बगावत थी। आनंदमठ के किरदारों के माध्यम से उन्होंने दिखाया कि मातृभूमि किसी देवी की नहीं बल्कि देश की आत्मा की प्रतीक है।
6. जब 'वंदे मातरम' हुआ आज़ादी का मंत्र
1906 में बिपिन चंद्र पाल और अरबिंदो घोष ने Vande Mataram नाम से अख़बार शुरू किया, जिसने राष्ट्रवादी विचारधारा को पूरे भारत में फैलाया। अंग्रेज़ सरकार ने इस गीत को गाने या बोलने पर कई जगह रोक लगा दी लेकिन यही रोक लोगों में इसे और लोकप्रिय बना गई। स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल जाते समय, रैलियों में यहां तक कि फांसी के तख्ते पर चढ़ते वक्त भी यही नारा लगाया वंदे मातरम!
7. आज़ादी के बाद मिला राष्ट्रीय दर्जा
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। हालाँकि इसे लेकर धार्मिक विवाद भी उठे लेकिन यह स्पष्ट किया गया कि यह गीत किसी देवी की नहीं बल्कि भारतमाता की वंदना है।
8. आज के भारत में वंदे मातरम का अर्थ
आज यह गीत केवल आज़ादी की याद नहीं बल्कि एकता और गौरव की पहचान है। 150 साल बाद भी जब “वंदे मातरम” की धुन बजती है, तो दिलों में वही जोश और गर्व जागता है जो कभी आज़ादी के दीवानों के भीतर था। यह गीत हमें याद दिलाता है कि मातृभूमि के लिए प्रेम और त्याग समय से परे भावनाएं हैं जो हर पीढ़ी में नई ऊर्जा के साथ जन्म लेती हैं।