Municipal elections: जानिए छत्तीसगढ़ में मेयर का कार्यकाल कैसे एक साल, ढाई साल से बढ़ता हुआ 5 साल हुआ

Municipal elections: छत्‍तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। एक दिन पहले कैबिनेट ने नगर पालिका अधिनियम में एक बड़े बदलाव को मंजूरी दे दी है। इसके तहत राज्‍य में महापौर और अध्‍यक्षों का चुनाव प्रत्‍यक्षण प्रणाली से कराने का फैसला किया गया है।

Update: 2024-12-03 08:21 GMT

Municipal elections: बिलासपुर। छत्‍तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनावों की तैयारी चल रही है। राज्‍य चुनाव आयोग मतदाता सूची तैयार करने में जुटा हुआ है। इस बीच एक दिन पहले हुई राज्‍य कैबिनेट की बैठक में वार्डों के आरक्षण के लिए नए नियमों को मंजूरी मिल गई है। कैबिनेट ने ओबीसी आरक्षण के लिए 25 प्रतिशत की सीमा को शिथिल करने का फैसला किया है।

विष्‍णुदेव कैबिनेट ने इसके साथ ही प्रदेश में मेयर और अध्‍यक्षों का चुनाव फिर से प्रत्‍यक्षण प्रणाली से कराने का भी फैसला किया है। इसके लिए कैबिनेट ने नगर पालिका अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी है। राज्‍य में इस बार होने वाले निकाय चुनाव में जनता मेयर और अध्‍यक्ष का चुनाव करेगी। इससे पहले 2019 में हुए निकाय चुनाव के दौरान तत्‍कालीन कांग्रेस सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए मेयर और अध्‍यक्ष का चुनाव अप्रत्‍यक्ष कर दिया था। इससे पिछली बार मेयर और अध्‍यक्ष निर्वाचित पार्षदों के बीच से चुने गए थे।

छत्‍तीसगढ़ में नगरीय निकायों में परिषद, मेयर और अध्‍यक्षों के चुनाव की कहानी भी दिलचस्‍प है। इसमें अब तक कई बार बड़े बदलाव किए जा चुके हैं। जैसे पहले निकायों में निर्वाचित परिषद का कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता था। फिर से बढ़ाकर पहले ढाई साल फिर पांच साल कर दिया गया।

नगरीय निकायों के गठन की प्रक्रिया अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में शुरू हुआ था। पहले पार्षद जनता चुनती थी। पार्षद के चुनाव के लिए प्रत्‍यक्षण प्रणाली के तहत आम वोटर मतदान करते थे। इसके बाद निर्वाचित पार्षद मेयर का चुनाव करते थे। इसमें दिलचस्‍प यह था कि मेयर के पद के लिए निर्वाचित पार्षदों के साथ ही कोई भी आम शहरी नामांकन भर कर दावेदारी कर सकता था। महापौर कौन बनेगा यह निर्वाचित पार्षद तय करते थे। तब मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होता था।

नगरीय निकायों में चुनाव और एक वर्षीय कार्यकाल का यह सिलसिला 1987 तक चला। इसके बाद नियमों में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हुई। 1995 में किए गए संशोधन के तहत बाहरी व्‍यक्ति के मेयर का चुनाव लड़ने के नियम को समाप्‍त कर दिया गया। इसके बाद केवल निर्वाचित पार्षद के बीच से ही मेयर चुना जाने लगा। इसके साथ ही परिषद के कार्यकाल को लेकर भी बड़ा बदलाव किया गया। परिषद का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर ढाई साल कर दिया गया। 1995 में निर्वाचित परिषद का कार्यकाल ढाई साल पूरा होने से पहले ही सरकार ने फिर एक संशोधन किया और कार्यकाल ढाई साल और बढ़तो हुए मेयर और परिषद का कार्यकाल पांच साल कर दिया।

इसके बाद मेयर चुनाव को लेकर 1999 में फिर एक संशोधन हुआ। इसमें नगर निगम में मेयर और परिषद व नगर पंचायतों में अध्‍यक्षों का चुनाव प्रत्‍यक्षण प्रणाली से कराने का फैसला किया गया। छत्‍तीसगढ़ बनने के बाद यही नियम लागू रहा। 2018 में प्रदेश की सत्‍ता में आई कांग्रेस ने 2019 में फिर नियमों में बदलाव कर मेयर और अध्‍यक्ष का चुनाव अप्रत्‍यक्षण प्रणाली से कराने का फैसला किया। इस वजह से राज्‍य में 2019 में हुए निकाय चुनाव में महापौर और अध्‍यक्ष पार्षदों के बीच से चुने गए।

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