EMERGENCY: आपातकाल के 21 महीने, छत्तीसगढ़ में करीब 1200 लोगों की गिरफ्तारी, पकड़-पकड़कर की गई लोगों की नसबंदी, जानिए प्रदेश में उस दौरान और क्या-क्या हुआ?

25 जून 1975 का वो दिन.. जब देश में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी थी। इमरजेंसी के इस दौर में विपक्षियों को जेल में ठूंस दिया गया और मौलिक अधिकार समेत प्रेस की स्वतंत्रता को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका असर देशभर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी पड़ा.. जानिए प्रदेश में उस दौर के हालात...

Update: 2024-06-25 08:08 GMT

रायपुर। 25 जून 1975 का वो दिन.. जब देश में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगा दी थी। इमरजेंसी के इस दौर में विपक्षियों को जेल में ठूंस दिया गया और मौलिक अधिकार समेत प्रेस की स्वतंत्रता को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका असर देशभर में पड़ा। छत्तीसगढ़ में उस वक्त क्या हालात थे, इसे हम जानेंगे बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सच्चिदानंद की जुबानी..

आपातकाल को हो गए 49 साल

बीजेपी नेता सच्चिदानंद उपासने ने बताया कि आपातकाल को आज 49 साल बीत गए हैं। जब आपातकाल की घोषणा हुई, तब छत्तीसगढ़ के भी अलग-अलग जिलों में गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। जनता के पास ये अधिकार तक नहीं रह गया था कि वो राजनीतिक मसलों पर खुलकर बात भी कर सके। लोकतंत्र की हत्या कर दी गई थी, छात्रों तक को भी जेल में भर दिया गया। संजय गांधी के नेतृत्व में मनमाने तरीके से अपात्र लोगों की भी नसबंदी कर दी गई। 21 महीने के आपातकाल के दौर में छत्तीसगढ़ में 1100 से 1200 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया। उन्होंने बताया कि जेल में उनके और दूसरे लोगों के साथ मारपीट भी की जाती थी।


तात्यापारा स्थित घर को कर दिया गया छावनी में तब्दील

सच्चिदानंद उपासने ने बताया कि तात्यापारा स्थित उनके घर को भी छावनी में तब्दील कर दिया गया। उनकी मां और भाई भी जेल गए। खुद वे 19 महीनों तक जेल में रहे। उन्होंने बताया कि आपातकाल जब लगाया गया, तब उनकी उम्र 18 साल थी और वे ग्रेजुएशन में पढ़ रहे थे। सच्चिदानंद उपासने ने बताया कि हमारे पास उस दौर में टेलीविजन नहीं था, रेडियो से ही खबरें पता चलती थीं। मैं तब युगधर्म नाम के अखबार में काम करता था। रेडियो पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, लेकिन इससे आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है। ये बातें उन्होंने 26 जून सन 1975 की सुबह आकाशवाणी के प्रसारण पर कही थीं। शहर में इसके बाद 2-3 दिनों तक अफरातफरी का माहौल था।


आपातकाल के दौरान बांटा करता था पंफलेट- उपासने

बीजेपी नेता सच्चिदानंद उपासने ने बताया कि आपातकाल के समय अविभाजित मध्यप्रदेश था और रायपुर छोटा सा शहर हुआ करता था। उनका घर तात्यापारा में था। सच्चिदानंद ने बताया कि एमजी रोड में हमने एक कमरा ले रखा था। रात के वक्त यहां हम एक छोटी प्रिटिंग मशीन से पर्चा बनाते थे। इसमें तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की तानाशाही के बारे में लिखकर लोगों को जागरूक करते थे। रायपुर के सिनेमाहॉल में वे और उनके कुछ दोस्त रात के आखिरी शो में जाते थे। वे कमर में पर्चा बांधते थे ताकि पुलिस को पता न चले।



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3 बार गिरफ्तारी, 19 महीने तक जेल में रहा- उपासने

इसके बाद वहीं से पर्चा लोगों के बीच में फेंकते थे। इसके बाद साइकिल से शहर की बस्तियों में घरों के दरवाजे के नीचे से सरकाकर पर्चा डाल देते थे। वॉल पेंटिंग के जरिए भी इंदिरा सरकार की तानाशाही के बारे में बताते थे। उनके माता-पिता जनसंघ से जुड़े थे। तात्यपारा स्थित उनके घर में भी आंदोलनकारियों ने अपना खुफिया अड्‌डा बना रखा था, जहां रणनीति बना करती थी। उनके यहां कई बार पुलिस ने छापा मारा। 3 बार उनकी गिरफ्तारी हुई और वे 19 महीने तक जेल में रहे।


इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगाने पर गिरफ्तारी

उपासने ने बताया कि उन्हें कहा गया कि अगर जेल ही जाना है तो सत्याग्रह करके जाओ। अगर तुम इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगाओगे, तो खुद पुलिस तुम्हें गिरफ्तार कर लेगी। तब वे, वीरेंद्र पांडे और महेंद्र फौजदार जयस्तंभ चौक पर इंदिरा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने चले गए। उन्होंने बताया कि हम चौराहे पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे। 'इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी' का नारा लगाया। इसके बाद पुलिस ने 19 दिसंबर 1975 से 21 मार्च 1977 तक के लिए जेल में बंद कर दिया गया। 


साल 1971 में बना मीसा कानून यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम

आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) कानून देश में साल 1971 में बना था। इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया। हमें भी इसी कानून के तहत देशद्रोही बताकर जेल में डाला गया। हमारी पर्चे छापने की मशीन जब्त कर ली गई। जेल में हमें खूब मारा-पीटा गया। उन्होंने बताया कि पुलिस ने सोचा कि इस लड़के की उम्र कम है, तो मारने-पीटने से ये सब उगल देगा, लेकिन मार के बावजूद उन्होंने आंदोलन से संबंधित कोई बात नहीं बताई।


संजय गांधी के नेतृत्व में जबरदस्ती की जाती थी लोगों की नसबंदी

सच्चिदानंद उपासने बताते हैं कि रायपुर में आज के कलेक्टर ऑफिस में ही कलेक्टर बैठा करते थे। वहां सेंसर ऑफिस बना था। वहां पेपर छपने से पहले संपादकीय और मुख्य खबरों को देखा जाता था। अगर इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ एक शब्द भी लिखा हो तो उसे हटवाया जाता था। प्रेस बंद करवाने की धमकी दी जाती थी। इंदिरा गांधी की सरकार में उनके बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में आपातकाल के दौरान जनसंख्या नियंत्रण के लिए लोगों की जबरदस्ती नसबंदी की गई।

पूरे छत्तीसगढ़ में पकड़-पकड़ कर की गई लोगों की नसबंदी

रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में भी नसबंदी मनमाने तरीके से की गई। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तब देश में लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई। गलत ऑपरेशनों से दो हजार लोगों की मौत हुई थी।

देश में आपातकाल लगाने की वजह

12 जून 1975 को भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद करीबी दुर्गा प्रसाद धर का देहांत हो गया था। उन्हें दुनिया डीपी धर के नाम से जानती थी। साथ ही गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस ने वहां अपनी राजनीतिक जमीन गंवा दी थी। 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में कांग्रेस को सिर्फ 74 सीटें मिलीं। इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के मामले में अपना फैसला सुनाते हुए साल 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था, जिसमें इंदिरा गांधी ने एक लाख से ज्यादा वोटों से राजनारायण को हराया था। हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को 6 साल तक के लिए कोई भी चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली इंदिरा गांधी को राहत

इस मामले में इंदिरा सुप्रीम कोर्ट गईं, लेकिन सर्वोच्च न्यायलय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 24 जून 1975 को हाईकोर्ट के आदेश को लगभग बरकरार रखा। बस ये जरूर कहा कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बनी रह सकती हैं, लेकिन लोकसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकतीं। उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने पूरे देश में इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने तक प्रदर्शन करने का एलान कर दिया। आंतरिक अशांति की स्थिति हो तो संविधान के आर्टिकल 352 के तहत सरकार आपातकाल की घोषणा कर सकती है। इसी आधार पर आपातकाल लगाने का निर्णय ले लिया गया। अशांति के लिए ग्राउंड जयप्रकाश नारायण का वो भाषण लिया गया, जिसमें उन्होंने आह्वान किया था कि सेना और जनता सरकार की बात नहीं माने।

25 जून 1975 की देर रात लगाया गया था आपातकाल

इसके बाद 25 जून 1975 की देर रात देश में आपातकाल लगा दिया गया और 26 जून 1975 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो से ऐलान किया 'भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है'। 25 जून की रात में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के आर्टिकल 352 के तहत पूरे देश में आपातकाल लगा दिया था। इस दौरान मौलिक अधिकार भी सस्पेंड कर दिए गए।

21 मार्च 1977 को हटाया गया आपातकाल

विपक्ष के कई नेताओं को जेलों में भर दिया गया। तमाम मशीनरी को सरकार ने अपनी कठपुतली बना लिया और संविधान का 42वां संशोधन कर लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी गईं। 21 महीने के बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल को सरकार ने हटा लिया, जिसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने रामलीला मैदान में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, 'बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने, खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने'।

चुनाव में इंदिरा और संजय गांधी की हुई हार

इसी साल 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट और संजय गांधी ने अमेठी सीट गंवा दी।

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