Akhshya tritiya 2024 : 250 साल पहले आज ही के दिन रियासतकालीन राजधानी बस्तर से की गई थी जगदलपुर स्थानांतरित, तब जगदलपुर जाना जाता था "जगतूगुड़ा" के नाम से

राजधानी स्थानांतरित होने के बाद उसी दिन इसका नाम जगतूगुड़ा से जगदलपुर किया गया था। तब जगतूगुड़ा 11 झोपड़ियों वाला कबीला था। आज यह शहर आधुनिक रूप ले चुका है। शहर में 48 वार्ड और लगभग पौने दो लाख की आबादी निवासरत है।

Update: 2024-04-26 18:13 GMT

 10 मई  को अक्षय तृतीया है।  बस्तर के लिए  अक्षय तृतीया दिन महतवपूर्ण है, क्योंकि अक्षय तृतीय के ही दिन 250 साल पहले रियासतकालीन राजधानी बस्तर से जगदलपुर (तब इसका नाम जगतूगुड़ा था) स्थानांतरित की गई थी।

दावा किया जाता है कि राजधानी स्थानांतरित होने के बाद उसी दिन इसका नाम जगतूगुड़ा से जगदलपुर किया गया था। तब जगतूगुड़ा 11 झोपड़ियों वाला कबीला था। आज यह शहर आधुनिक रूप ले चुका है। शहर में 48 वार्ड और लगभग पौने दो लाख की आबादी निवासरत है।



राजधानी स्थानांतरित होने के समय जगतुगुड़ा एक छोटा सा गांव था। मुश्किल से 60 लोगों की बस्ती थी। बस्तर रियासत के तत्कालीन राजा दलपत देव ने जगतू की आराध्या काछनदेवी की भूमि में राजधानी बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने आश्वासन दिया था कि नई राजधानी बनेगी तो उसमें जगतू का नाम भी शामिल होगा। इसके बाद जगतूगुड़ा और धरमुगुड़ा को मिलाकर जगदलपुर बसाया गया।

जगदलपुर में जग" शब्द जगतू और 'दल" शब्द दलपत देव के नाम से लिया गया है। दो साल में राजधानी बनकर तैयार हुई थी। इसमें राज परिवार का निवास, राज दरबार, घुड़साल, कर्मचारी आवास आदि सब कुछ बनाया गया। इससे पहले तक बस्तर स्टेट की राजधानी बस्तर गांव थी। राजा दलपत देव का काफिला वर्ष 1774 गुरुवार अक्षय तृतीया के दिन सुबह सैनिकों की निगरानी में बस्तर से रवाना हुआ था। यह काफिला तीन घंटे की यात्रा कर जगतूगुड़ा पहुंचा था। मां दंतेश्वरी मंदिर के पीछे 249 साल पुराने कुछ आवास आज भी सुरक्षित हैं।

बस्तर की संस्कृति और परंपरा का इतिहास भी रोचक

आदिवासी बाहुल्य बस्तर की संस्कृति और परंपरा का इतिहास भी रोचक है। राजधानी स्थानांतरित करने के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। जनश्रुति है कि तत्कालीन राजा दलपत देव अपने घुड़सवारों के साथ बस्तर से इंद्रावती नदी के किनारे स्थित जगतूगुड़ा पहुंचे थे। यहां उन्होंने देखा कि एक खरगोश उनके शिकारी कुत्ते को आक्रामक मुद्रा में दौड़ा रहा है। उन्होंने सोचा कि इस मिट्टी में जरूर पराक्रम है, तभी एक खरगोश भी यहां अपने से ताकतवर कुत्ते को खदेड़ने की क्षमता रखता है। इसके बाद ही उन्होंने यहां राजधानी बनाने का निश्चय किया।

1314 में वारंगल से बस्तर आए थे अन्नामदेव

बस्तर के इतिहासकार स्वर्गीय केएल श्रीवास्तव ने अपनी किताब जगतू की विकास यात्रा में जगदलपुर के राजधानी बनने का वर्णन किया है। 1313 ईस्वी में रुद्र प्रतापदेव के अनुज अन्नाम देव वारंगल से बीजापुर होते हुए बारसूर पहुंचे थे। उन्होंने यहां के अंतिम छिंदक नागवंशी नरेश हरिश्चंद्र देव को पराजित कर वैशाख शुक्ल अष्टमी दिन बुधवार वर्ष 1314 को चित्रकोट की गद्दी संभाली थी। वर्ष 1314 के बाद यहां के राजाओं की राजधानी दंतेवाड़ा, बड़ेडोंगर, मधोता, कुरुषपाल, राजपुर, चीतापुर, राजनगर और बस्तर रही। वर्ष 1721 में राजा दलपत देव सिंहासनारूढ़ हुए। उन्होंने वर्ष 1721 से 1775 तक राज किया था।

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