New Year Celebration in Ram Mandir Chattisgarh : कहीं विराजे सोने के सिंहासन में श्रीराम, तो कोई कहलाता है श्रीधाम-प्रयाग और कैलाश ! नए साल को यहाँ बनाये खास
New Year Celebration in Ram Mandir : भगवान श्री राम जी के नौनिहाल छत्तीसगढ़ के श्री राम मंदिर रायपुर, सीतामढ़ी गुफा, दूधाधारी मठ, शिवरीनारायण, राजीव लोचन मंदिर राजिम और कौशिल्या मंदिर चंदखुरी भी श्री राम जी के अयोध्या से कम नहीं.
New Year Celebration in Ram Mandir : नए वर्ष में क्या आप भी रामलला के दर्शन करना चाहते हैं, पर वेटिंग ट्रैन-बस, बच्चों के स्कूल और ऑफिस की छुट्टी और कोहरे भरे मौसम से अयोध्या नहीं जा पा रहे हैं. तो परेशान क्यों होना. हमारी धरा में भी श्री राम के पग पड़े हैं, जिनके निशान आज तक है. और उन स्थलों पर आज भव्य और अलौकिक मंदिर बने हुए हैं जहाँ भगवन श्री राम दर्शन दे रहे हैं.
जी हां हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के श्री राम मंदिरों की, जिनकी प्राचीनता और महत्ता दोनों मन को तृप्त कर दें. तो चलिए फिर इस ईयर एंडिंग और नई ईयर में चलते है श्री राम के दरबार...
वीआईपी रोड रायपुर : सोने के सिंहासन पर विराजे हमारे भगवान श्रीराम-सीता
वीआईपी रोड रायपुर में 2017 में आकर्षक श्रीराम मंदिर का निर्माण किया गया। बहुत ही कम समय में मंदिर की प्रसिद्धि प्रदेशभर में फैल चुकी है। राजस्थान के मकराना गांव के संगमरमर पत्थरों पर की गई नक्काशी आकर्षण का केंद्र है। मंदिर का गुंबद 108 फीट ऊंचा है। सोने के सिंहासन पर भगवान श्रीराम-सीता विराजित हैं।
मंदिर के पीछे माता अंजनी की गोद में बाल हनुमान की प्रतिमा और प्राचीन हनुमान की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में आदिवासी बालकों के साथ ही अन्य विद्यार्थियों को संस्कृत की निशुल्क शिक्षा दी जाती है। मंदिर के भोजनालय में मात्र 20 रुपये में भोजन प्रसादी की व्यवस्था है। मंदिर की दूरी जयस्तंभ चौक, रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर है।
रायपुर मठपारा : दूधाधारी मठ में विराजे हमारे राघवेंद्र सरकार
रायपुर के मठपारा स्थित 400 साल से अधिक पुराने दूधाधारी मठ में राघवेंद्र सरकार का भव्य मनमोहक दरबार है। मठ की स्थापना करने वाले महंत बलभद्र केवल दूध का आहार ग्रहण करते थे, इसलिए मठ का नाम दूधाधारी मठ पड़ा। मठ में श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को आकर्षित करतीं हैं। मठ में दक्षिण मुख वाला शंख, रामेश्वरम से लाया गया पानी में तैरने वाला पत्थर आकर्षण का केंद्र है।
छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी है शिवरी नारायण
शिवरी नारायण को छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की तीनों प्रतिमाएं स्थापित रही थी, परंतु बाद में इनको जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था। इसी आस्था के फलस्वरूप माना जाता है कि आज भी साल में एक दिन भगवान जगन्नाथ यहां आते हैं। शिवरीनारायण जांजगीर-चांपा जिले में आता है। इसे भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान भी कहा जाता है। यह बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किमी की दूरी पर स्थित है।
इस स्थान को पहले माता शबरी के नाम पर शबरीनारायण कहा जाता था, जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में प्रचलित हुआ। रामायण में एक प्रसंग आता है जब माता सीता को ढूंढते हुए भगवान राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में भटकते हुए माता शबरी के आश्रम में पहुंच जाते हैं। जहां शबरी उन्हें अपने जूठे बेर खिलाती है जिसे राम बड़े प्रेम से खा लेते हैं।
माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में शिवरीनारायण मंदिर परिसर में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह मंदिर व आश्रम प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरे हुए है।
मान्यता है कि यहां माता शबरी ने वर्षों तक अपने आराध्य श्री राम का इंतजार किया, हर दिन प्रभु के आने की उम्मीद लेकर रास्ते को वह फूलों से सजाती थीं और फिर प्रभु श्री राम ने दर्शन देकर शबरी को धन्य कर दिया.
रायपुर चंदखुरी : भगवान श्री राम का ननिहाल कौशिल्या मंदिर
छत्तीसगढ़ में चंदखुरी को भगवान श्री राम का ननिहाल कहा जाता है. यहां कौशल्या माता का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे 10वीं शताब्दी में बनाया गया था. माता कौशल्या का यह धाम अब और भी सुंदर और भव्य हो चुका है. यह मंदिर तालाब के बीचों-बीच बना हुआ है और आस पास जहां तक देखें वहां खूबसूरत दृश्य ही दिखाई देता है. मंदिर के प्रांगण में एक गार्डन भी बनाया गया है. वहीं तालाब में समुद्र मंथन के दृश्य को दर्शाया गया है. मंदिर परिसर में हनुमान जी और नंदी महाराज शिवजी की प्रतिमाएं भी हैं. प्रभु श्री राम की भव्य प्रतिमा भी है, जिसे देख मन आह्लादित हो उठता है.
बताया जाता है कि महाकौशल के राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था. विवाह में भेंटस्वरूप राजा भानुमंत ने बेटी कौशल्या को दस हजार गांव दिए थे. इसमें उनका जन्म स्थान चंद्रपुरी भी शामिल था. चंदखुरी का ही प्राचीन नाम चंद्रपुरी था. जिस तरह अपनी जन्मभूमि से सभी को लगाव होता है ठीक उसी तरह माता कौशल्या को भी चंद्रपुर विशेष प्रिय था. राजा दशरथ से विवाह के बाद माता कौशल्या ने तेजस्वी और यशस्वी पुत्र राम को जन्म दिया.
मान्यता के अनुसार, सोमवंशी राजाओं द्वारा बनाई गई मूर्ति आज भी चंदखुरी के मंदिर में मौजूद है. मंदिर में भगवान श्री राम को गोद में लिए हुए माता कौशल्या की मूर्ति स्थापित है. भगवान राम के वनवास से आने के बाद उनका राज्याभिषेक किया गया. उसके बाद तीनों माताएं कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी तपस्या के लिए चंदखुरी ही पहुंचीं थीं. तीनों माताएं तालाब के बीच विराजित हो गईं. कहा जाता है कि, जब इस तालाब के जल का उपयोग लोग गलत कामों के लिए करने लगे तो माता सुमित्रा और कैकयी रूठकर दूसरी जगह चली गईं. लेकिन, माता कौशल्या आज भी यहां विराजमान हैं.
सीतगढ़ी कोरबा : भगवान श्री राम वनवास काल के दौरान यहां आए
भगवान राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ में एक ऐसी गुफा है. जहां माता अनुसुइया ने माता-सीता को नारी धर्म का पाठ पढ़ाया था. वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम, भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ यहां विश्वामित्र के आश्रम में कुछ वक्त बिताया था. इस वजह से शहर के इस क्षेत्र को सीतागढ़ी के नाम से जाना जाता है. सीतगढ़ी छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में है. आज भी दूर-दूर से श्रद्धालु इस पवित्र गुफा में निर्मित मंदिर के दर्शन करने आते हैं. सीतागढ़ी गुफा में राम, लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र की सातवीं शताब्दी निर्मित प्राचीन मूर्ति विद्यमान है. बीच में ऋषि की बड़ी मूर्ति और दाएं बाएं में राम और लक्ष्मण नजर आ रहे हैं. यहां एक पद चिन्ह भी मौजूद हैं, जो माता सीता का बताया जाता है. गुफा के बाहरी भित्ती पर दो लाइन का शिलालेख है. नागपुर की पुरातत्व सर्वेक्षण संस्था की टीम अभी इस पर शोध कर रही है. अब तक इस लेख को पढ़ा नहीं जा सका है.
राजिम राजीव लोचन मंदिर : अलग-अलग रूपों में दर्शन देते हैं भगवान
छत्तीसगढ़ के राजिम स्थित राजीव लोचन मंदिर को भी प्रयाग की उपाधि मिली है. राजिम के त्रिवेणी संगम पर स्थित राजीव लोचन मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चारों रूप दिखाई देते हैं। भगवान राजीव लोचन यहां सुबह बाल्यावास्था में, दोपहर में युवावस्था में और रात्रि में वृद्धावस्थ में में दिखाई देते हैं। आठवीं-नौवीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में बारह स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर अष्ठभुजा वाली दुर्गा, गंगा, यमुना और भगवान विष्णु के अवतार राम और नृसिंह भगवान के चित्र हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु विश्राम के लिए आते हैं। मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा उस समय तक संपूर्ण नहीं होती जब तक राजिम की यात्रा न कर ली जाए।
राजीव लोचन मन्दिर चतुर्थाकार में बनाया गया है। यह भगवान काले पत्थर की बनी भगवान विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है। ऐसी मान्यता है कि गज और ग्राह की लड़ाई के बाद भगवान ने यहाँ के राजा रत्नाकर को दर्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसलिए इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। हरि मतलब राजीव लोचन जी और उनके पास ही एक और मंदिर है जिसे हर यानी राजराजेश्वर कहा जाता है। अभी जो मंदिर है यह करीब सातवीं सदी का है। प्राप्त शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण नलवंशी नरेश विलासतुंग ने कराया था।