Bilaspur Highcourt News: पूर्व IAS के भाई की याचिका खारिज: CBI की FIR को दी थी चुनौती, हाईकोर्ट ने की खारिज, जानिए क्या है पूरा मामला
Bilaspur Highcourt News: पूर्व आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के भाई पवन अग्रवाल ने सीबीआई द्वारा की गई एफआईआर और जांच रेड्डी करने तथा जप्त दस्तावेजों को देने की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। जिसे सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
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Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर हाईकोर्ट ने रिटायर्ड आईएएस बीएल अग्रवाल के भाई पवन कुमार अग्रवाल की याचिकाएं खारिज कर दी हैं। अग्रवाल ने सीबीआई की जांच रद्द करने और जब्त दस्तावेजों की कॉपियां देने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने दोनों ही अर्जी ठुकरा दीं। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की बेंच ने माना कि सीबीआई की चार्जशीट और सबूतों से पवन अग्रवाल के खिलाफ आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी के आरोप प्रथम दृष्टया साबित होते हैं।
आरोप है कि पवन अग्रवाल ने अपने भाई और रिटायर्ड आईएएस बीएल. अग्रवाल को बचाने के लिए बैंक अधिकारी एंटनी सैमी के साथ साजिश रची। सीबीआई का कहना है कि बीएल. अग्रवाल और आरडी. गोयल के संयुक्त बैंक लॉकर को फर्जी आवेदन के जरिए पवन अग्रवाल के नाम करवाया गया। आयकर विभाग की छापेमारी के दौरान इस लॉकर से 15 लाख रुपए नकद बरामद हुए, जिसे सीबीआई ने बीएल. अग्रवाल की अघोषित रकम बताया। लॉकर के सह मालिक आरडी. गोयल की मृत्यु 2005 में ही हो चुकी थी, लेकिन बैंक को इसकी जानकारी नहीं दी गई। इसके बावजूद 2009 में लॉकर उनके नाम से ऑपरेट हुआ और हस्ताक्षर अंग्रेजी में किए गए, जबकि गोयल हिंदी में साइन करते थे। कोर्ट ने माना कि इससे धोखाधड़ी का अपराध बनता है। सीबीआई ने पवन अग्रवाल के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 120-B, 419, 466 और 477-A के तहत केस दर्ज किया था।
पवन का तर्क- सीबीआई ने रकम भाभी की मानी
पवन अग्रवाल की ओर से कहा गया कि आयकर विभाग ने उन्हें राहत दी थी और 15 लाख रुपए ममता अग्रवाल की संपत्ति माने गए थे। साथ ही उनका कहना था कि सीबीआई की एफएसएल रिपोर्ट में बैंक रिकॉर्ड में किसी जालसाजी से इंकार किया गया था। इसके अलावा उन्होंने तर्क दिया कि सीबीआई के पास जांच का अधिकार क्षेत्र नहीं था, क्योंकि दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत अनुमति नहीं ली गई थी।
हाईकोर्ट ने तीनों तर्क नामंजूर किए
कोर्ट ने तीनों तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि आईटी विभाग की जांच और आपराधिक जांच अलग विषय हैं। एफएसएल रिपोर्ट चार्जशीट के बाद आई थी और उससे पहले के सबूत पर्याप्त हैं। अधिकार क्षेत्र को लेकर भी कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार पहले ही सीबीआई जांच के लिए सामान्य सहमति दे चुकी है, इसलिए यह तर्क लागू नहीं होता।