Bilaspur Highcourt News: हाईकोर्ट ने मृत बर्खास्त कर्मचारी को सेवा में बहाल माना, वारिसों को मिलेगी पेंशन और ग्रेच्युटी

Bilaspur Highcourt News: कदाचार के आरोप में सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया था। पति की मौत के बाद पत्नी और दो बच्चों ने न्याय दिलवाने के लिए केस लड़ा। हाई कोर्ट ने कर्मचारी की बर्खास्तगी को अवैध ठहराया।

Update: 2025-10-10 12:03 GMT

CG Highcourt News

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर. गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की बर्खास्तगी को बिलासपुर हाईकोर्ट ने अवैध ठहराया है। जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की सिंगल बेंच ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता की मृत्यु मामला लंबित रहने के दौरान हो गई, इसलिए उन्हें सेवा में बहाल माना जाएगा। साथ ही उनकी पत्नी और बच्चों को पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ 60 दिनों के भीतर देने के आदेश दिए गए हैं।

बिरकोना निवासी रामनाथ पाण्डेय की संविदा नियुक्ति वर्ष 1996 में गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (फर्राश) के पद पर हुई थी। बाद में उन्हें नियमित कर दिया गया। कुलसचिव द्वारा जारी आरोप पत्र में कार्यालय से अनुपस्थित रहने की आदत, अभद्रतापूर्ण व्यवहार और शराब के नशे में ड्यूटी पर आने का आरोप लगाया गया था। इसमें विशेष रूप से 26 फरवरी 2011 को छात्रावास में शराब के नशे में प्रवेश करने और चोरी का प्रयास करने का उल्लेख था। आरोप पत्र के जवाब में पाण्डेय ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन इस पर विचार नहीं किया गया। जांच के बाद 8 फरवरी 2013 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

हाईकोर्ट में लगाई याचिका

बर्खास्तगी के खिलाफ वर्ष 2013 में ही हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। तर्क दिया कि कुलसचिव के पास बर्खास्तगी का अधिकार नहीं है , इस वजह से बर्खास्तगी का आदेश अवैध है। ऐसा आदेश केवल कुलपति ही जारी कर सकते हैं । इसके अलावा जांच में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया, गवाहों से जिरह का अवसर नहीं दिया गया। उन पर लगाए गए अनुपस्थिति और शराब पीने के आरोप अस्पष्ट और बिना मेडिकल प्रमाण के थे। मामला लंबित रहने के दौरान उनकी मौत हो गई। इसके बाद पत्नी और बच्चों ने केस लड़ा और बर्खास्तगी आदेश को रद्द करने और सेवानिवृत्ति लाभ देने की मांग की है।

कुलसचिव को नहीं है बर्खास्तगी का अधिकार

हाईकोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत कुलसचिव केवल छोटे दंड जैसे भर्त्सना या वेतन वृद्धि रोकने का अधिकार रखते हैं, लेकिन बर्खास्तगी का नहीं। ऐसे मामलों में जांच रिपोर्ट और सिफारिशें कुलपति को भेजी जानी चाहिए। कुलपति को ही अंतिम आदेश देना होता है। रिकॉर्ड से यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कुलपति ने कोई स्वतंत्र निर्णय लिया। उन्होंने केवल ‘देखा’ लिखकर दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जो मंजूरी नहीं मानी जा सकती।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन

हाईकोर्ट ने पाया कि जांच के दौरान पाण्डेय को गवाहों से जिरह करने का मौका नहीं मिला। जांच अधिकारी ने उन गवाहों के बयान पर भरोसा किया, जिनका नाम चार्जशीट की सूची में था ही नहीं। इसके अलावा, शराब के नशे में होने के आरोप को साबित करने के लिए जिन मेडिकल सर्टिफिकेट पर भरोसा किया गया, वे चार्जशीट जारी होने के बाद की तारीखों के थे। कोर्ट ने कहा कि यह जांच निष्पक्ष और वैधानिक नहीं थी।

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