Bilaspur Highcourt News: इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस परीक्षकों की नियुक्ति में विलंब, हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य को दिए निर्देश,एक माह में मांगा जवाब
Bilaspur Highcourt News: इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस परीक्षाओं की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने जरूरी बताया है। साइबर अपराधों की जांच में विलंब पर हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं। एक माह के भीतर जवाब मांगा गया है।
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Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर l बिलासपुर हाईकोर्ट ने राज्य में इलेक्ट्रानिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति में देरी पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत साइबर गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद, अब भी तकनीक के दुरुपयोग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में समय पर परीक्षकों की नियुक्ति अत्यंत आवश्यक है ताकि साइबर अपराधों की जांच और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावी ढंग से हो सके।
मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने यह टिप्पणी सोमवार को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की। इस मामले में याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ राज्य में आइटी एक्ट की धारा 79ए के तहत इलेक्ट्रानिक एविडेंस परीक्षकों की नियुक्ति या नामांकन को लेकर त्वरित कार्रवाई की मांग की थी।
एक हफ्ते का मांगा समय
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रुद्र प्रताप दुबे ने पक्ष रखा, जबकि भारत सरकार की ओर से डिप्टी सालिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा और राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल शशांक ठाकुर उपस्थित रहे। अदालत में केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा ने मामले पर विस्तृत उत्तर देने के लिए एक माह का समय मांगा, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
प्रक्रिया में लाई जा रही तेजी
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि इस प्रक्रिया का पहला चरण (परीक्षकों/विशेषज्ञों की नियुक्ति से संबंधित) पूरा हो चुका है, और दूसरा चरण वर्तमान में प्रगति पर है। इस दौरान भारत सरकार ने राज्य सरकार से कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा है, जिसका जवाब राज्य से अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। जैसे ही यह उत्तर प्रस्तुत किया जाएगा, प्रक्रिया का तीसरा चरण शुरू किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा- यह गंभीर विषय है
सुनवाई के बाद खंडपीठ ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के बावजूद समाज में तकनीक के दुरुपयोग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा कि इलेक्ट्रानिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि न्याय प्रणाली में डिजिटल साक्ष्यों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने का अनिवार्य कदम है। अदालत ने कहा, इन परीक्षकों की नियुक्ति में देरी सीधे तौर पर साइबर अपराधों की जांच और उनके न्यायिक निपटारे को प्रभावित करती है। अतः संबंधित अधिकारियों को सभी औपचारिकताएं जल्द से जल्द पूरी करनी चाहिए, ताकि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो और न्याय प्रणाली मंन डिजिटल साक्ष्यों की अखंडता बनी रहे। अंत में, कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से मांगे गए समय को स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 के लिए निर्धारित की है।