Bilaspur High Court: शादी के वक्त पत्नी ने अपनी बांझपन की बात छिपाई, हाई कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक को ठहराया सही..
Bilaspur High Court:शादी के वक्त और बाद में पत्नी ने पति ने अपनी बांझपन की बात छिपा ली। शादी के बाद पत्नी ने पति को बताया कि उसे पीरिएड्स नहीं आ रहा है। पति को लगा पत्नी गर्भवती हो गई है। उसने पत्नी को जांच के लिए अस्पताल लेकर गया। जांच में पता चला कि पत्नी को बीते 10 साल से पीरिएड्स नहीं आ रहा है। पति ने क्रूरता के आधार पर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई। फैमिली कोर्ट ने तलाक की अर्जी को मंजूर करते हुए पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित कर दी।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। शादी के वक्त और बाद में पत्नी ने पति ने अपनी बांझपन की बात छिपा ली। शादी के बाद पत्नी ने पति को बताया कि उसे पीरिएड्स नहीं आ रहा है। पति को लगा पत्नी गर्भवती हो गई है। उसने पत्नी को जांच के लिए अस्पताल लेकर गया। जांच में पता चला कि पत्नी को बीते 10 साल से पीरिएड्स नहीं आ रहा है। पति ने क्रूरता के आधार पर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई। फैमिली कोर्ट ने तलाक की अर्जी को मंजूर करते हुए पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित कर दी। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पत्नी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया है। स्थायी भरण पोषण के लिए कोर्ट ने पति को निर्देश जारी किया है कि वह पत्नी को पांच लाख रुपए दे।
याचिकाकर्ता पत्नी और पति की 05 जून 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी हुई। शादी के बाद पत्नी ने पति को बताया कि उसके पीरियड्स नहीं हुए हैं। पति ने इसे प्रेग्नेंसी समझा और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से उसकी मेडिकल जांच करवाई। पत्नी ने डॉक्टर के सामने खुलासा किया कि उसे 10 साल से पीरियड्स नहीं हुए। आरोप है कि जब पति ने पत्नी से पूछा कि उसने उससे शादी क्यों की, तो उसने जवाब दिया कि अगर उसने उसे पहले सच बताया होता तो वह मना कर देता। उसने खुद को एक और स्त्री रोग विशेषज्ञ से दिखाया, जिससे पता चला कि उसके गर्भाशय में कोई समस्या है, जिसके कारण उसे बच्चे पैदा करने में दिक्कत हो रही है। इस खुलासे से पति को गहरा सदमा लगा, उसे बहुत मानसिक पीड़ा हुई। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (ia) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए आवेदन दायर किया। मामले की सुनवाई फैमिली कोर्ट, कवर्धा में हुई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद परिवार न्यायालय ने पति के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित कर दी। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पत्नी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। पत्नी ने पति द्वारा फैमिली कोर्ट में उस पर लगाए गए आरोपों का खंडन किया। याचिकाकर्ता पत्नी ने बताया कि उसकी मेडिकल स्थिति को गैर-स्थायी बताया गया और उसे कुछ दवाएं लेने की सलाह दी गई। दवा लेने के बाद वह प्रेग्नेंसी के लिए मेडिकली फिट हो गई। पति ने अपने जवाब में कहा कि अगर पत्नी ने उसे अपनी दिक्कतों के बारे में पहले बताया होता तो वह वैकल्पिक और आधुनिक इलाज और दूसरी व्यवस्थाओं के बारे में सोच सकता था, लेकिन उसने उसे नहीं बताया। चिकित्सकीय परीक्षण के बाद इस बारे में जानकारी मिली।
मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने पाया कि पत्नी ने शादी के समय अपनी बांझपन की बात छिपाई, फैमिली कोर्ट द्वारा क्रूरता के आधार पर पति को दिए गए तलाक की डिक्री को सही ठहराते हुए पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया है। पत्नी की याचिका खारिज करने के साथ ही हाई कोर्ट ने उसके भरण पोषण का ख्याल रखते हुए पति को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता के तौर पर पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया है।