भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का काँटों भरा ताज कौन पहनेगा ..! “विजय बघेल,संतोष पांडेय,अरुण साव,विष्णु देव महेश गागड़ा और रामविचार पर विमर्श

Update: 2020-02-17 06:42 GMT

याज्ञवल्क्य मिश्रा @npg.news_Raipur

रायपुर,17 फ़रवरी 2020। छत्तीसगढ़ में भाजपा का यह शायद सबसे ज़्यादा संक्रमण काल है, यह छत्तीसगढ़ के उस दौर को भी पीछे छोड़ गया है जबकि जोगी शासनकाल था। हालाँकि सत्ता का तेवर तरीक़ा अंदाज वही है, बस इसकी गति और पैनापन बेहद तेज है। लोकतंत्र में सत्ता के सामने विपक्ष कितना आक्रामक है और मुद्दों पर जनता को आंदोलित कर पाता है इस पर बहुत कुछ या सब कुछ निर्भर करता है, और मौजूदा हाल में भाजपा के पास मुद्दों की कमी कतई नही थी, लेकिन किसी मुद्दे को प्रभावी ढंग से आंदोलन में नहीं बदल पाई।सत्ता पर सवार कांग्रेस सत्ता प्रतिष्ठान तंत्र के तीर जो बेहद गति और पैनेपन से लैस हैं,को चलाते हुए एक एक कर के विपक्ष के सुर उठाने वाले चेहरों को बींध रही है।
दिलचस्प यह देखना भी है कि, क़रीब डेढ़ बरस के समय में भाजपा आपसी अंतर्कलह से उबरने को तैयार नहीं है। बल्कि यह बहुत साफ़ तौर पर नुमाया है कि, पंद्रह सीटों पर जा फेंकाई भाजपा में अब भी कौरवी घमासान जारी है, और जैसी कि छत्तीसगढ़ में वो परंपरा है जो कि भाजपा शासनकाल में ही अस्तित्व में आई, जिसमें तत्कालीन कांग्रेस के क़द्दावर नेता को लेकर यह चर्चाएँ ज़ोरों पर रहीं कि, जब तक वे हैं भाजपा सत्ता में आते रहेगी। भाजपा के इस कौरवी संग्राम में यह छूपा नहीं है कि कौन कौन ऐसे हैं जो इस परंपरा को निभाने वाले नए किरदार हैं, और सत्ता के प्रायोजित झूले में झूल रहे हैं।नतीजतन होता यही है कि, किसी मुद्दे को भाजपा आंदोलन में बदल ही नहीं पा रही है।
पंद्रह बरस के शासनकाल में धूप की तपन और ज़बर्दस्त आंदोलन से सड़क पर बिछ जाने की चिर परिचित पहचान से भाजपा प्रदेश में मेमोरी लॉस के दौर से ऐसे गुजर रही है कि लगातार झटके भी उसे स्थितप्रज्ञ नहीं कर पा रहे हैं।
लोकसभा की वैतरणी मोदी नाम ने पार लगा दी, पर निगम में भाजपा धूल धूसरित हो गई। पंचायत चुनाव को लेकर भी कोई बहुत राहत के आँकड़े भाजपा के लिए नज़र नहीं आते हैं। हालाँकि करारी हार में भी संतोष भाव के साथ आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण हैरान करता है, जिसमें भाजपा कांग्रेस के पार्षदों के कम अंतर को इंगित किया जाता है। पंचायत चुनाव में यह और आसान है कि आप सरपंचों को अपना बता दें। जबकि धान के मुद्दे पर आंदोलन से लेकर सदन में जमकर शोरगुल किया गया था, फिर भी नतीजे वह नहीं आए जो कि, राहत दें।
ऐसे माहौल में नए प्रदेशाध्यक्ष की तलाश चल रही है। हालिया दिनों अमित शाह यह रायपुर में कह कर गए हैं कि पराजय भाजपा को प्रभावित नहीं करती, लेकिन यह शब्द वह उर्जा क्यों नहीं दे रहे जितने कि ये उर्जावान शब्द हैं।इसके पीछे मौजूद वजहों में उपर दर्ज वजहों के साथ यह वजह भी है कि,फ़र्श से अर्श पर पहुँचाने वाला कार्यकर्ता पंद्रह बरसों में उपेक्षित रहा है, उसने आयातितों को उस संगठन और सत्ता का लाभान्वित होते देखा जिन आयातितों का उसने कभी विरोध किया था, देवतुल्य कार्यकर्ता उन को देखते ही रह गया जो ठेकेदार थे और पदाधिकारियों के रुप में संगठन पर क़ाबिज़ हो गए और सत्ता का शहद लूट ले गए।
ऐसे मौक़े पर नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश है और कई नाम उछल रहे हैं। इनमें कुर्मी साहू के रुप में पिछड़ा वर्ग, आदिवासी कार्ड या फिर जनरल सभी शामिल हैं। लेकिन जाति का कार्ड क्या असर करेगा या कोई ऐसा चेहरा जिसमें आक्रामकता हो, कार्यकर्ता को फिर से उर्जा भर देने का माद्दा हो वह असर करेगा।
दरअसल यह काँटों का ताज है, और इसे पहनने का मतलब है कि, यदि आप असफल हुए तो काँटे सीधे धँसेंगे पर यदि आप सफल हुए तो श्रेय कितनो में बंटेगा,कोई नहीं जानता, ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव में अभी क़रीब साढ़े तीन बरस बाक़ी हैं, अभी कोई चुनाव सामने अब नहीं है। याने इस अध्यक्षीय कार्यकाल के बाद जबकि अगला कार्यकाल आएगा तो चुनाव आएगा। इसलिए कोई अध्यक्ष ऐसा बन जाए जो शून्यता की पूर्ति कर भी दे तो वह सत्ता वापसी का कारक माना जाने वाला श्रेय ले जाएगा ऐसा लगता नही।
बहरहाल जो नाम चर्चाओं में हैं वे कुछ यूँ है –
“विजय बघेल,संतोष पांडेय,अरुण साव, विष्णुदेव साय,महेश गागड़ा और रामविचार नेताम”

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