पूर्व CM का बड़ा ऐलान, पारिवारिक बंधन से मुक्त होने का लिया संकल्प, 17 ट्वीट कर दी जानकारी...
NPG न्यूज़। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने पारिवारिक बंधन से मुक्त होने का संकल्प ले लिया है। उमा भारती ने इसकी जानकारी अपने ट्वीट के माध्यम से दी है। लगतार 17 ट्वीट कर उन्होंने कहा कि वह परिवार के सदस्यों को सभी बंधनों से मुक्त करती हैं और स्वयं भी इस पारिवारिक बंधन से मुक्त हो रही है। अब उन्हें दीदी मां के नाम से जाना जाएगा। आने वाले 17 दिसम्बर को इसकी घोषणा भी की जाएगी।
पूर्व सीएम उमा भारती ने एक के बाद एक लगातार 17 ट्वीट किये। उन्होंने कहा कि....
मुझे आज अमरकंटक पहुंचना था अपरिहार्य कारणों से अभी भोपाल में हूं, पूर्णिमा के चंद्र ग्रहण के बाद अमरकंटक पहुंच जाऊंगी। 17 नवम्बर 1992 को अमरकंटक में ही मैंने संन्यास दीक्षा ली थी...
मेरे गुरु कर्नाटक के कृष्ण भक्ति संप्रदाय के उड़पी कृष्ण मठ के पेजावर मठ के मठाधीश थे। मेरे गुरु श्री विश्वेश्वर तीर्थ महाराज देश के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, सभी धर्म गुरुओं के आदर एवं श्रद्धा के केंद्र रहे
96 वर्ष की आयु में उन्होंने 2 वर्ष पूर्व देह त्याग कर कृष्ण लोक गमन किया, राजमाता विजयराजे सिंधिया के अनुरोध पर तब अविभाजित मध्यप्रदेश के अमरकंटक आकर उन्होंने मुझे संन्यास की दीक्षा प्रदान की
इस साल की मार्गशीर्ष माह की अष्टमी को जो कि फिर से 17 नवंबर को पड़ रही है, मेरे संन्यास दीक्षा के 30 वर्ष हो जाएंगे। मैं उस समय मेरे शरीर की आयु से 32वां वर्ष लगा हुआ था
मेरा सन्यासी दीक्षा समारोह 3 दिन चला उसमें राजमाता जी, उस समय के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पटवा जी, मुरली मनोहर जोशी जी, भाजपा की मध्य प्रदेश की लगभग पूरी सरकार, भाजपा के देश एवं प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेता एवं संघ के सभी वरिष्ठ स्वयं सेवक दीक्षा संस्कार में उपस्थित रहे
जब भंडारा हुआ तो हजारों संत नर्मदा जी के किनारों के जंगलों से निकल कर आए एवं भोजन ग्रहण कर मुझे आशीर्वाद दिया
''मेरी संन्यास दीक्षा के समय पर मेरे गुरु ने मुझसे एवं मैंने अपने गुरु से 3 प्रश्न किए। उसके बाद ही संन्यास की दीक्षा हुई। मेरे गुरु के 3 प्रश्न थे- (1) 1977 में आनंदमयी मां के द्वारा प्रयाग के कुंभ में ली गई ब्रह्मचर्य दीक्षा का क्या मैंने अनुशरण किया है? (2) क्या प्रत्येक गुरु पूर्णिमा को मैं उनके पास पहुंच सकूंगी? (3) मठ की परंपराओं का आगे अनुशरण कर सकूंगी?'
इसके बाद उमा भारती ने लिखा, ''तीनों प्रश्न के उत्तर में मेरी स्वीकारोक्ति के बाद मैंने उनसे जो तीन प्रश्न किए- (1) क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है? (2) मठ की परंपराओं के अनुशरण में मुझसे भूल हो गई, तो क्या मुझे उनका क्षमादान मिलेगा? (3) क्या मुझे आज से राजनीति त्याग देना चाहिए?''
अपने माता-पिता के दिए हुए उच्चतम संस्कार, अपने गुरु की नसीहत, अपनी जाति एवं कुल की मर्यादा, अपनी पार्टी की विचारधारा तथा अपने देशके लिए मेरी जिम्मेदारी इससे मैं अपने आप को कभी मुक्त नहीं करूंगी।