Supreme Court News: तलाक का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट व ट्रायल कोर्ट को दिया निर्देश, तलाक की डिक्री पारित करने से पहले पति-पत्नी के अलग रहने के असली वजह का पता लगाना जरुरी

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट को निर्देश जारी किया है कि तलाक की डिक्री पारित करने से पहले पति-पत्नी के अलग रहने के वास्तविक कारणों का पता लगाना होगा। तलाक का यह आधार कतई नहीं हो सकता कि पति-पत्नी अलग रहे हैं तो शादी टूट गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे टूटने वाला ऐसा रिश्ता का नाम दें जिसे सुधारा ना जा सके। असली कारणों का पता लगाने के बाद ही विवाह विच्छेद की डिक्री पारित किया जाना चाहिए।

Update: 2025-11-27 08:37 GMT

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दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट को निर्देश जारी किया है कि तलाक की डिक्री पारित करने से पहले पति-पत्नी के अलग रहने के वास्तविक कारणों का पता लगाना होगा। तलाक का यह आधार कतई नहीं हो सकता कि पति-पत्नी अलग रहे हैं तो शादी टूट गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे टूटने वाला ऐसा रिश्ता का नाम दें जिसे सुधारा ना जा सके। असली कारणों का पता लगाने के बाद ही विवाह विच्छेद की डिक्री पारित किया जाना चाहिए।

उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जायमाल्या बागची की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने पति-पत्नी के अलग रहने के कारण विवाह विच्छेद की पारित डिक्री को रद्द कर दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि अदालतें विवाह विच्छेद के लिए इसलिए राजी हो जा रही है, पति-पत्नी अलग-अलग रह रहे हैं।

कोर्ट इसी तथ्य के आधार पर शादी को पूरी तरह टूटा हुआ मान कर तलाक की डिक्री पारित कर दे रहा है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि इस नतीजे पर पहुंचने से पहले फैमिली कोर्ट या हाई कोर्ट के लिए यह तय करना ज़रूरी है कि दोनों पक्ष में से कौन शादी के बंधन को तोड़ने और दूसरे को अलग रहने के लिए मजबूर करने के लिए ज़िम्मेदार है।

जब तक जानबूझकर छोड़ने या साथ रहने या जीवनसाथी की देखभाल करने से इनकार करने का कोई पक्का सबूत न हो, तब तक शादी पूरी तरह से टूट जाने के नतीजे पर नहीं आना चाहिए। इस तरह के निर्णय से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। तलाक की डिक्री पारित करने से पहले कोर्ट की यह जिम्मेदारी बनती है कि याचिका में लिखी गई बातों और तथ्यों की गहराई से परीक्षण करें,सामाजिक हालत, बैकग्राउंड के अलावा अन्य पहलुओं पर विचार करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में ट्रायल कोर्ट के उस ऑर्डर में दखल दिया गया, जिसमें पत्नी ने पति को तलाक देने से मना कर दिया था। पत्नी ने पति पर आरोप लगाते हुए बताया कि पति ने उसे ससुराल से निकाल दिया और ज़बरदस्ती अलग रहने पर मजबूर किया। हाई कोर्ट ने पति की पहली अपील मान ली और यह मानते हुए तलाक दे दिया कि शादी ऐसी टूटन है, जिसे सुधारा नहीं जा सकता, सिर्फ इसलिए कि पति-पत्नी अलग रह रहे हैं।

हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील पेश की। पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को वापस हाई कोर्ट भेज दिया है। हाई कोर्ट को याचिका पर कानून के अनुसार नया फैसला देना होगा।

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