Supreme Court News: नौकरी,डिग्री और विषय को लेकर SC का फैसला: संविदा नियुक्ति के संबंध में मध्य प्रदेश सरकार के आदेश को किया खारिज
Supreme Court News: नौकरी,डिग्री और विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी उम्मीदवार ने अपने करिकुलम के हिस्से के तौर पर जरुरी प्रमुख विषय की पढ़ाई की है तो सिर्फ इस आधार पर उसे नौकरी से बाहर नहीं किया जा सकता, उसकी डिग्री किसी दूसरे विशिष्ट विषय में है।
supreme court of india (NPG file photo)
Supreme Court News: दिल्ली। नौकरी,डिग्री और विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी उम्मीदवार ने अपने करिकुलम के हिस्से के तौर पर जरुरी प्रमुख विषय की पढ़ाई की है तो सिर्फ इस आधार पर उसे नौकरी से बाहर नहीं किया जा सकता, उसकी डिग्री किसी दूसरे विशिष्ट विषय में है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने एमकॉम (कॉमर्स) स्नातक की मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्ति को फिर से बहाल कर दिया। इस पद के लिए स्टैटिस्टिक्स में पोस्टग्रेजुएट डिग्री की अनिवार्यता रखी गई थी। यचिकाकर्ता की नौकरी सिर्फ़ इसलिए खत्म कर दी गई, क्योंकि उसके पास स्टैटिस्टिक्स में फॉर्मल PG डिग्री नहीं थी। जबकि उसने एम.कॉम के दौरान बिज़नेस स्टैटिस्टिक्स और इंडियन इकोनॉमिक स्टैटिस्टिक्स को मेन सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने स्टैटिस्टिक्स के ज़रूरी सब्जेक्ट्स पढा है तो फॉर्मल डिग्री ज़रूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा, असली करिकुलम पर विचार किए बिना, सिर्फ़ डिग्री के टाइटल पर ज़ोर देना, असलियत से ज़्यादा फॉर्म को अहमियत देना है। कानून ऐसी व्याख्या के लिए मजबूर नहीं करता। इस मामले के फैक्ट्स को देखते हुए “स्टैटिस्टिक्स में पोस्टग्रेजुएट डिग्री” शब्द को कॉन्टेक्स्ट के हिसाब से और मकसद के हिसाब से समझना चाहिए।
यह मामला नवंबर 2012 के मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन कंसल्टेंट की पोस्ट के लिए विज्ञापन पर केंद्रित था। जिसमें “स्टैटिस्टिक्स में पोस्टग्रेजुएट डिग्री” ज़रूरी थी। याचिकाकर्ता लक्ष्मीकांत शर्मा एम.कॉम ग्रेजुएट है, जिसने बिज़नेस स्टैटिस्टिक्स और इंडियन इकोनॉमिक स्टैटिस्टिक्स को मुख्य सब्जेक्ट्स के तौर पर पढ़ाई की है। उसे 2013 में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नियुक्ति दी गई थी। एक साल बाद 8 सदस्यीय जांच समिति ने निर्धारित मापदंड को पूरा ना करने की बात कहते हुए सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया। अपील पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बार-बार बर्खास्तगी को रद्द किया और केस को वापस भेजा। राज्य सरकार ने उन्हीं आधारों का हवाला देते हुए सेवा समाप्ति का आदेश जारी किया। राज्य सरकार के इस आदेश को चुनौती देते हुए लक्ष्मीकांत शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि चूंकि मध्य प्रदेश में कोई भी सरकारी यूनिवर्सिटी एम.कॉम स्टैटिस्टिक्स नाम की पोस्टग्रेजुएट डिग्री नहीं देती है, इसलिए विज्ञापन का सीधा मतलब निकालना एक असंभव स्टैंडर् बना देगा। कोर्ट ने कहा, योग्यता की शर्त का इस तरह से मतलब निकालना कि ऐसी डिग्री की ज़रूरत हो जो किसी भी सरकारी यूनिवर्सिटी में मौजूद न हो, मनमाना और अवास्तविक है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्टैटिस्टिक्स में डिग्री शब्द को संदर्भ के हिसाब से पढ़ा जाना चाहिए, जिसमें वे पोस्टग्रेजुएट डिग्री भी शामिल हों जहां स्टैटिस्टिक्स एक मुख्य विषय है। कोर्ट ने यह कहते हुए दखल देना सही समझा कि जहां संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी को सिर्फ अयोग्य होने के आधार पर टर्मिनेट किया जाता है तो कोर्ट यह जांचने का हकदार है कि क्या वह आधार वास्तव में सही है और क्या ज़रूरी बातों पर ठीक से विचार किया गया। स्टैटिस्टिक्स में डिग्री शब्द का मतलब जानबूझकर नहीं निकाला गया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को मंजूर करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने उस पद पर नियुक्ति व चयन होने के लिए स्टैटिस्टिक्स में ज़रूरी विषय की पढ़ाई की है।