Supreme Court News: लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को निष्पादन न्यायालय में नहीं दी जा सकती चुनौती, सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के बाद साफ कहा है कि लोक अदालत में पारित अवार्ड को निष्पादन न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। पारित अवार्ड के खिलाफ अनुच्छेद 227 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के बाद साफ कहा है कि लोक अदालत में पारित अवार्ड को निष्पादन न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। पारित अवार्ड के खिलाफ अनुच्छेद 227 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 LSA Act के तहत लोक अदालत द्वारा पारित किसी भी अवार्ड Award को निष्पादन न्यायालय के माध्यम से न तो रद्द किया जा सकता है और न ही उसकी वैधता को सामान्य सिविल कार्यवाही में चुनौती दी जा सकती है। लोक अदालत में पारित अवार्ड को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत हाई कोर्ट की सुपरवाइजरी अधिकारिता का सहारा लेना है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की डिवीजन बेंच ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की रिट याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि उन्होंने पहले ही निष्पादन न्यायालय में आदेश 21 नियम 101 सीपीसी के तहत आपत्ति दाख़िल कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को कानून के तहत अंतिमता प्राप्त होती है। उसे एक डिक्री की तरह लागू किया जाता है। लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड की वैधता को किसी सामान्य सिविल मुकदमे या अपीलीय प्रक्रिया से चुनौती नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, निष्पादन न्यायालय की भूमिका केवल लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को लागू करने तक सीमित है। निष्पादन न्यायालय न तो उस अवार्ड को रद्द कर सकती है न ही उसकी शर्तों या उसके आधार बने समझौते की वैधता पर फैसला कर सकती है।लिहाजा, निष्पादन कार्यवाही में उठाई गई आपत्तियों को प्रभावी वैकल्पिक उपाय मानकर हाई कोर्ट द्वारा रिट याचिका की सुनवाई ना करना विधिक योजना के विपरीत है।
याचिका की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका को वापस हाई कोर्ट किया रेफर
डिवीजन बेंच ने कहा, लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड के खिलाफ कोई साधारण सिविल या अपीलीय उपाय उपलब्ध नहीं है। केवल संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाई कोर्ट की असाधारण और पर्यवेक्षी अधिकारिता का ही सहारा लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस हाई कोर्ट को भेजते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा लोक अदालत के 14 मई 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने के लिए दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य थी और हाई कोर्ट को इसे वैकल्पिक उपाय के नाम पर खारिज नहीं करना चाहिए था।