CGMSC Medical College Building Scam: CGMSC ने EPC मोड के नाम पर मेडिकल कॉलेजों का टेंडर अमाउंट 200 करोड़ बढ़ा दिया, जानिये 1020 करोड़ के टेंडर को बढ़ाकर 1425 करोड़ करने का सच...

CGMSC Medical College Building Scam: किसी खास को टेंडर देने के लिए सीजीएमएससी ने चार मेडिकल कॉलेजों के टेंडर को एक साथ क्लब करने का कांड तो किया ही, ईपीसी मोड के नाम पर चुपके से टेंडर अमाउंट 200 करोड़ बढ़ा डाला। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की आंख में धूल झोंका गया। निविदा बुलाई गई 1020 करोड़ का और प्रशासकीय स्वीकृति ली गई 1224 करोड़़ की। इसके बाद ईपीसी मोड के नाम पर टेंडर का कॉस्ट बढ़ाकर कर दिया गया 1425.48 करोड़। एनपीजी न्यूज द्वारा इस घोटाले के टेंडर का भंडाफोड़ करने के बाद सीजीएमएससी ने टेंडर तो निरस्त कर दिया, मगर एमडी ने हेल्थ सिकरेट्री से अलग-अलग टेंडर करने की अनुमति के साथ ही 1425 करोड़ टेंडर के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मांगी है। याने एक साल बाद जब टेंडर निरस्त हो गया तब सीजीएमएससी ईपीसी मोड के लिए 200 करोड़ बढ़े हुए रेट की प्रशासकीय स्वीकृति मांग रहा है। जाहिर है, अगर टेंडर निरस्त नहीं हुआ होता सरकारी खजाने को 544 करोड़ की चपत लग गई होती।

Update: 2025-03-11 15:55 GMT
CGMSC Medical College Building Scam: CGMSC ने EPC मोड के नाम पर मेडिकल कॉलेजों के टेंडर

CGMSC Medical College Building Scam 

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CGMSC Medical College Building Scamरायपुर। छत्तीसगढ़ सीजीएमएससी के अफसर जो न करें, वो कम है। चार मेडिकल कॉलेजों को बनाने के लिए राज्य का स्वास्थ्य विभाग ने मार्च 2024 में प्रशासकीय स्वीकृति दे दी थी। उसके बाद करीब छह महीने तक टेंडर नहीं किया गया। छह महीने बाद सीजीएमएससी संचालक मंडल से ईपीसी मोड में बिल्डिंग बनाने की अनुमति ली गई। मगर उसमें ये नहीं बताया गया कि ईपीसी मोड में कितनी राशि् बढ़ जाएगी। अगर संचालक मंडल को पता होता कि ईपीसी मोड में चार मेडिकल कॉलेजों को बनाने में 200 करोड़ अधिक व्यय होगा तो हो सकता था कि ईपीसी मोड के लिए अनुमति नहीं मिलती।

सीएम हाउस, विस भवन बीओक्यू मोड में

नया रायपुर में मुख्यमंत्री निवास, मंत्रियों के बंगले और विधानसभा जैसे बड़े भवन बिल्ट ऑन क्वांटिटी मोड में बने हैंं। लिहाजा, कॉलेज बिल्डिंग को ईपीसी मोड में बनाने की कोई जरूरत नहीं थी। राज्य सरकार के एक रिटायर चीफ इंजीनियर का कहना है कि ईपीसी मोड में विशिष्ट भवनों को बनाया जाता है। कॉलेज बिल्डिंग सामान्य भवन होता है, उसके लिए ईपीसी मोड की जरूरत नहीं। 

200 करोड़ खर्च नहीं

ईपीसी मोड में दो-चार, पांच करोड़ खर्च बढ़ सकता है। मगर सीजीएमएसी ने कमाल करते हुए टेंडर अमाउंट 200 करोड़ बढ़ा डाला। वो भी चुपके से। चुपके से इसलिए कि प्रशासकीय स्वीकृति में ईपीसी मोड का उल्लेख नहीं था और बाद में अनुमति ली गई, उसमें ये नहीं बताया गया कि ईपीसी मोड में 200 करोड़ खर्च बढ़ जाएगा।

204 करोड़ पहले ही बढ़ा डाला

जाहिर है, कवर्धा, मनेंद्रगढ़, जांजगीर और गीदम मेडिकल कॉलेजों के भवन बनाने का टेंडर निरस्त करने के बाद 7 फरवरी 2025 को सीजीएमससी एमडी ने हेल्थ सिकरेट्री को पत्र भेजा है, उसमें बताया है कि चारों मेडिकल कॉलेजों का एस्टीमेटेड कॉस्ट प्रति कॉलेज 255.15 करोड़ के हिसाब से 1020.60 करोड़ की निविदा बुलाई गई। मगर सरकार याने हेल्थ विभाग से अतिरिक्त खर्च के लिए 51.08 करोड़ जोड़ते हुए 306.23 करोड़ के हिसाब से चार कॉलेजों के लिए 1224 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति ली गई। सीजीएमएससी एमडी के पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि अतिरिक्त खर्च के नाम पर चारों कॉलेजों के लिए 204 करोड की राशि बढ़ाई गई है, वह किस मद में व्यय किया जाएगा। जानकारों का कहना है कि अतिरिक्त मद में खर्च होते हैं मगर एक कॉलेज पर 51 करोड़ की अतिरिक्त राशि नहीं बढ़ेगी। और यदि पहले ही अतिरिक्त खर्च के नाम पर प्रति कॉलेज 51 करोड़ ऐड कर दिया गया है तो फिर ईपीसी मोड में अलग से 200 करोड़ रुपए जोड़़ने का क्या मतलब?

ईपीसी मोड की आड़ में बड़ा खेला

सरकार में काम कर चुके सीनियर इंजीनियरों का कहना है कि हेल्थ सिकरेट्री को चीफ इंजीनियर लेवल की समिति से परीक्षण कराना चाहिए कि ईपीसी मोड में इतनी राशि बढ़ सकती है क्या। फिर कम 1020 करोड़ की निविदा निकाल उसे बढ़ाकर 1400 करोड़ से अधिक कर देना किसी बड़े स्कैम को इंगित करता है। हेल्थ सिकरेट्री को इन पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।

क्या होता है ईपीसी मोड

भारत सरकार में ईपीसी मोड में काम जरूर हो रहे हैं मगर छत्तीसगढ़ में बड़े भवन रेगुलर वे में ही बन रहे हैं। आईये पहले जानते हैं ईपीसी क्या होता है। ईपीसी का फुल फर्म होता है इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंसलटेंट। याने ड्राईंग, डिजाइन और सुपरविजन टेंडर लेने वाली कंपनी करेगी। मगर छत्तीसगढ़ में ये मजाक नहीं है कि 255 करोड़ के कॉलेज के टेंडर पर 51 करोड़ ड्राइंग, डिजाइन पर खर्च कर दिया जाए। जानकारों का कहना है कि सीजीएमएसी अगर इस काम के लिए एक्सपर्ट रख लेगा तब भी चार-पांच करोड़ में काम हो जाएगा।

खजाने की लूटने की तैयारी

टेंडर के नेचर को देखकर लगता है सीजीएमएससी भारत सरकार से इन कॉलेजों के लिए मिले पैसों को लूटने की तैयारी कर ली थी। सीजीएमएससी के अफसरों ने षडयंत्रपूर्वक टेंडर का रेट बढ़ाया ताकि काम करने वाली कंपनी को अधिक-से-अधिक फायदा पहुंचाई जा सकें। यही वजह रही कि टेंडर कमेटी के सदस्य फायेनेंसियल बिड खोलने वाली मीटिंग में बार-बार बुलाने के बाद भी नहीं आए। सीजीएमएससी के अफसर मेंबरों पर भांति-भांति के प्रेशर डालते रहे, उनके घर बैठक का मिनिट्स भेजने का प्रयास किया कि आप घर बैठे दस्तखत कर दो, मगर सीएमओ और मेडिकल सुपरिटेंडेंट इसके लिए तैयार नहीं हुए। जानबूझकर जिन चार जिलों में मेडिकल कॉलेज बनने वाले हैं, वहां के सीएमओ और कॉलेजों के डॉक्टर नोडल अफसरों को टेंडर कमेटी की सदस्य बनाया गया ताकि उनसे कुछ भी कराया जा सके। कायदे से टेंडर का काम एक्सपर्ट का है न कि लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टरों का। मगर सीजीएमएससी का भगवान मालिक है।

ईपीसी के खेल में लेट

टेंडर निरस्त करने के बाद भी सीजीएमएससी अलग-अलग टेंडर करने की अनुमति मांग रहा मगर रेट वही बढ़े हुए दर पर। फिर प्रश्न यह भी उठता है कि सरकार ने पिछले साल मार्च में प्रशासकीय स्वीकृति दे दिया था तो इतना विलंब क्यों किया गया। बताते हैं, मार्च में प्रशासकीय स्वीकृति मिल जाने के बाद टेंडर किसे देना है, ईपीसी मोड में किस स्तर पर खेल किया जाए, इसमें टाईम लग गया। अगर प्रशासकीय स्वीकृति के बाद मेडिकल कॉलेज भवन को प्रायरिटी देते हुए तुरंत टेंडर हो गया होता तो बिल्डिंग का लगभग आधा काम हो गया होता।

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