Bilaspur High Court: चेक बाउंस केस में कोर्ट का बड़ा फैसला: 3 लाख जुर्माना के साथ ही आरोपी को एक साल जेल की सजा...
Bilaspur High Court: चेक बाउंस होने के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह सब जानबुझकर किया गया है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस गतिविधि को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मूल राशि 5.44 लाख रुपये के साथ तीन लाख रुपये जुर्माने का भुगतान 45 दिन के भीतर करने का निर्देश दिया है।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। चेक बाउंस के एक मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता आरोपित को हाई कोर्ट में फटकार लगाई है। नाराज कोर्ट ने तीन लाख रुपये का जुर्माना ठोंकने के साथ ही एक साल की सजा सुनाई है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक साथ आठ चेक बाउंस होने के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह सब जानबुझकर किया गया है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस गतिविधि को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मूल राशि 5.44 लाख रुपये के साथ तीन लाख रुपये जुर्माने का भुगतान 45 दिन के भीतर करने का निर्देश दिया है। साथ ही एक साल की सजा भुगतनी होगी। भारतीय नगर निवासी मनोज बिठलकर ने सरकंडा बंगालीपारा के पीके राय से खमतराई में एक जमीन का सौदा किया। खरीददार ने विक्रेता को आठ लाख 16 हजार रुपये का भुगतान किया। इसके अलावा आठ चेक भी जारी किया।
जिसकी कुल कीमत पांच लाख 44 हजार रुपये थी। निर्धारित तिथि को जब विक्रेता पीके राय ने बैंक में भुगतान के लिए चेक जमा किया तो सभी चेक बैंक अकाउंट में पर्याप्त राशि ना होने के कारण बाउंस हो गए। चेक बाउंस होने के बाद रकम की वसूली की के लिए खरीददार को अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा। नोटिस का जवाब नहीं मिलने पर उसने जिला कोर्ट में क्रिमिनल केस दायर किया।
कोर्ट ने पांच लाख 44 हजार रुपये के अलावा तीन लाख रुपये जुर्माना पटाने का आदेश दिया। साथ ही एक साल की सजा भी सुनाई। इस आदेश के खिलाफ खरीदार मनोज बिठलकर ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन याचिका पेश की। इसमें तर्क दिया गया कि चेक बाउंस होने की स्थिति में एकसाथ केवल तीन मामले दायर किए जा सकते हैं। इसमें सभी आठ चेक बाउंस होने को आधार बताते आदेश पारित किया गया है। अनावेदक राय की ओर से उनके अधिवक्ता धीरज वानखेड़े ने कहा कि सभी चेक एक ही दिन बाउंस हुए हैं, इसलिये इन्हें अलग-अलग मामला नहीं माना जा सकता। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की पैरवी सुनने के बाद हाई कोर्ट ने 45 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट के आदेश के अनुसार राशि का भुगतान करने कहा है। कोर्ट ने एक साल की सजा को भी यथावत रखा है।