Supreme Court News: ED की समन शक्तियों से जुड़ी PMLA की धारा 50 और 63 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा...

Supreme Court News: ED की समन शक्तियों से जुड़ी PMLA, Priventation of Money landring Act की धारा 50 और 63 की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

Update: 2025-05-21 07:00 GMT

Supreme Court 

Supreme Court News: नईदिल्ली। ईडी की समन शक्तियों से जुड़ी पीएमएलए की धाराओं की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ECIR) को FIR के साथ समान नहीं किया जा सकता है और यह ईडी का केवल एक आंतरिक दस्तावेज है। लिहाजा, एफआईआर से संबंधित सीआरपीसी प्रावधान ईसीआईआर पर लागू नहीं होंगे। ECIR की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है और गिरफ्तारी के आधारों का खुलासा पर्याप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब व्यक्ति विशेष न्यायालय के समक्ष होता है, तो यह देखने के लिए रिकॉर्ड मांग सकता है कि क्या निरंतर इम्प्रिसियोनमेंट आवश्यक है।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 50 और धारा 63 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है।दायर याचिका में कहा है कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 20,21 और 300 ए का उल्लंघन करता है। PMLA की धारा 50 प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों को दीवानी अदालत और अन्य जांच शक्तियों के समान शक्तियां प्रदान करती है। इनमें शामिल हैं।

  • सिविल कोर्ट के बराबर शक्तियां।
  • साक्ष्य उपलब्ध कराने/अभिलेख प्रस्तुत करने के लिए किसी व्यक्ति को बुलाने की शक्तियां।
  • सम्मन के तहत ऐसे व्यक्ति अनुपालन करने के दायित्व के तहत है।
  • उपरोक्त शक्तियों के तहत कार्यवाही भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ के भीतर न्यायिक कार्यवाही मानी जाती है।
  • प्राधिकारियों को ऐसी जब्ती के कारणों को अभिलिखित करने के बाद इन कार्यवाहियों के दौरान प्रस्तुत अभिलेखों को जब्त करने की शक्ति है।
  • धारा 63 गलत जानकारी देने या अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं करने के लिए दंड की रूपरेखा तैयार करती है।
  • संवैधानिक वैधता को इन कारणों से दी चुनौती।

धारा 50 का प्रावधान, विशेष रूप से निदेशालय की गैर-अभियुक्त के बयानों को बुलाने और रिकॉर्ड करने की शक्ति भी संभावित जबरदस्ती और आत्म-दोषारोपण की ओर ले जाती है। यह संविधान के अनुच्छेद 20 (3) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

याचिका के अनुससार ECIR या ED की जांच के विशाल दायरे का खुलासा न करने से किसी भी मामले को जांच के दायरे में ले सकती है, जो कानूनी रूप से अस्वीकार्य है।

यह मौलिक अधिकारों का हनन है।

याचिका के अनुसार इस तरह के समन के कारणों को प्रस्तुत किए बिना किसी व्यक्ति को बुलाना उसके मौलिक अधिकारों और आपराधिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। याचिका के अनुसार आपराधिक न्यायशास्त्र के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया मौजूद नहीं है जो बिना कारण बताए बुलाने की अनुमति देती है।

धारा 50 प्रक्रिया जांच की प्रकृति की है, जांच की प्रकृति में नहीं है।

प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ECIR) को FIR के साथ समान नहीं किया जा सकता है और यह ईडी का केवल एक आंतरिक दस्तावेज है। लिहाजा, एफआईआर से संबंधित सीआरपीसी प्रावधान ईसीआईआर पर लागू नहीं होंगे। ECIR की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है और गिरफ्तारी के आधारों का खुलासा पर्याप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब व्यक्ति विशेष न्यायालय के समक्ष होता है, तो यह देखने के लिए रिकॉर्ड मांग सकता है कि क्या निरंतर इम्प्रिसियोनमेंट आवश्यक है।

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