संजय के दीक्षित
तरकश, 20 दिसंबर 2020
डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड के दुरुपयोग को लेकर सूबे के कई कलेक्टर नए चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के निशाने पर हैं। बताते हैं, सरकार को रिपोर्ट मिली है कि सूबे के कई कलेक्टर डीएमएफ में बड़ा गोलमाल कर रहे हैं। पिछली सरकार में निर्माण कार्यों में खेल किया गया। भूपेश बघेल सरकार ने डीएमएफ से निर्माण कार्यों पर रोक लगाई तो कलेक्टर अब इस फंड से स्कूलों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए ब़ड़े पैमाने पर अनाप-शनाप खरीदी प्रारंभ कर दिए हैं। सरकार की नोटिस में ये बात भी है कि कुछ सप्लायर कलेक्टरों के साथ फेविकोल की तरह चिपक गए हैं। कलेक्टरों का ट्रांसफर होने पर सप्लायर भी कलेक्टर के साथ नए जिले में पहुंच जा रहे हैं डीएमएफ का खेल करने। तभी चीफ सिकरेट्री ने कलेक्टरों को चेताया है….अब शिकायत आई तो खैर नहीं!
एसपी भी पीछे नहीं
बदले हालात में सूबे के पुलिस अधीक्षकों की स्थिति भी ठीक नहीं है। शराब दुकानों को पिछली सरकार ने सरकारी कर दी। आरटीओ चेक पोस्ट खुल तो गए हैं लेकिन पुराना सिस्टम अभी पटरी पर नहीं आ पाया है। एसपी के लिए अब बच गया है सिर्फ कबाड़ी और गांजा, कोकिन। कबाड़ी वाले भी इन दिनों पहुंच वाले हो गए हैं…उन्हें ज्यादा दबाया नहीं जा सकता। ऐसे में, पुलिस का पूरा फोकस गांजा, कोकिन, चरस जैसे नशीले पदार्थ पर है। कुछ चतुर पुलिस अधीक्षकों का जरूर ठेकेदारों के साथ एमओयू हो गया है। वे जिस जिले में जाते हैं, ठेकेदार उनके साथ होते हैं। फिर उनके संरक्षण में ठेकेदारी होती है। खासकर, नक्सली इलाके में ये कुछ ज्यादा हो रहा। नक्सली एरिया में एसपी के सहयोग के बगैर कोई काम हो नहीं पाता। ठेकेदारों के साथ ये गठबंधन पिछली सरकार से चल रहा है।
हैंड नहीं
कलेक्टर्स तभी अच्छे रिजल्ट दे पाते हंै, जब उनके पास डिप्टी कलेक्टरों के रूप में अच्छे हैंड हों। लेकिन, छत्तीसगढ़ में इस समय जितने भी ठीक-ठाक डिप्टी कलेक्टर हैं, वे या तो जिला पंचायत के सीईओ बन गए हैं या फिर नगर निगम कमिश्नर। जाहिर सी बात है कि डिप्टी कलेक्टरों के कैडर में सब तो रिजल्ट देने वाले होते नहीं। और जो डेढ़-दो दर्जन डिप्टी कलेक्टर हैं, वे सभी इंगेज हैं। पहले के जमाने में रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग जैसे बड़े जिलों में कलेक्टरों के पास दो-दो एडिशनल कलेक्टर होते थे। इनमें भी एक आईएएस। बाकी आधा दर्जन के करीब डिप्टी कलेक्टर। वो भी सिस्टम को समझने वाले। अभी तो हाल बुरा है। अच्छे अफसर जिला प्रशासन से खिसक लिए हैं। जो बचे हैं, उनमें वो माद्दा नहीं। जाहिर है, इसका सीधा असर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर पड़ेगा।
अमिताभ के तेवर
हर अफसर का काम करने का अपना तरीका होता है। नए चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने भी मीटिंग का तरीका अब बदल दिया है। बैठक से पहिले कलेक्टरों या सचिवों से उनके विभागों की पूरी जानकारी मंगाई जा रही है। उसके बाद फिर मीटिंग। इसमें अफसरों के फंसने का भारी खतरा है। एक तो मीटिंग की जानकारी भेजना और फिर उसके बाद सामने बाॅस को फेस करना। अमिताभ जैन लंबे समय तक फायनेंस सिकरेट्री रहे हैं। फायनेंस अफसरों के पास एक तरह से कहा जाए तो विभागों और उसके अधिकारियों की पूरी कुंडली होती है। किस विभाग के अधिकारी या कलेक्टर ने कितना काम किया और कितना पैसा लेप्स किया, अमिताभ को बखूबी पता है। लिहाजा, अधिकारी उन्हें घूमा भी नहीं सकते। सो, अमिताभ के आने से कलेक्टर से लेकर सिकरेट्री तक असहज महसूस कर रहे हैं। फिर जो कम बोलता है, उसे समझना जरा कठिन होता है। अमिताभ टू द प्वाइंट बात करते हैं…मंत्रालय में पूरा समय भी देते हैं।
आईएएस अवार्ड
एलायड सर्विस से आईएएस अवार्ड के एक पद के लिए पांच नाम भारत सरकार को भेजे गए हैं, उसका जल्द ही नोटिफिकेशन होने की खबर है। इनमें गोपाल वर्मा का नाम सबसे उपर है। उनके बाद विनय गुप्ता, सुश्री अल्पना घोष, राजेश सिंगी और गजपाल सिंह सिकरवार का नाम है। गोपाल वर्मा का नाम चूकि सबसे उपर है, इसलिए आईएएस बनने की संभावना उनकी अधिक है। बहरहाल, जीएडी ने भारत सरकार को पांच नाम भेजें हैं, उनमें एक नाम पर आश्चर्य जताया जा रहा है। वे पेनल में शामिल होने के योग्य ही नहीं थे।
राजाओं के गढ़ में सीएम
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले हफ्ते सरगुजा में पूरे चार रात बिताए। उससे एक हफ्ते पहले जशपुर में नाइट हाल्ट किए थे। इससे पहले कोई मुख्यमंत्री राजधानी के बाहर इतना लंबा समय तक नहीं रहा। चार रात की बात तो दूर है, दो रात भी नहीं। वो भी जशपुर, सूरजपुर, कोरिया जैसे छोटे जिलों में। सीएम के दौरे की खास बात ये रही कि उन्होंने इत्मीनान के साथ एक-एक कार्यकर्ता से वन-टू-वन मिले। पूछ-पूछकर…और कोई है मिलने वाला। मुलाकात के दौरान सीएम के साथ न कोई मंत्री और न ही कोई अफसर होता था। ऐसा इसलिए किया गया कि कार्यकर्ता खुलकर अपनी बात मुख्यमंत्री के समक्ष रख सकें। जशपुर के सोगड़ा के प्रसिद्ध भगवान राम अघोर पीठ में मुख्यमंत्री दो करीब दो घंटे बिताए। वहां उन्होंने भोजन भी किया। जशपुर दौरे के बाद युद्धवीर सिंह जुदेव ने सीएम के सम्मान में कसीदें गढ़कर बीजेपी को चौंका दिया।
मंत्रिमंडल में सर्जरी नहीं
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार के दो बरस पूरे होने पर मंजे हुए टीम लीडर की तरह अपने कैबिनेट के सभी साथियों का मजबूती से बचाव किया। संपादकों से मुलाकात में जब मंत्रियों के परफारर्मेस और सर्जरी पर सवाल हुआ तो मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि किसी भी मंत्री के कामकाज से उन्हें शिकायत नहीं….बल्कि कोरोना के बाद भी उनके सारे मंत्रियों ने बढ़ियां काम किया है। कई विभागों के उल्लेखनीय कामों को उन्होंने गिना दिया। सीएम का इशारा साफ था कि फिलहाल मंत्रिमंडल में सर्जरी की आवश्यकता नहीं है। लेकिन, ये ध्यान रखना जरूरी है कि राजनीति में हां का मतलब ना और ना का मतलब कई बार हां भी होता है। इसलिए, मंत्री बेफिकर न हो जाएं। सीएम के जबरदस्त बचाव के बाद भी ये सर्वविदित है कि दो-तीन मंत्रियों का सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। क्षेत्र की दृष्टि से मंत्रिमंडल में असंतुलन भी है। बस्तर से सिर्फ एक विधायक को मंत्री बनने का मौका मिल पाया तो सरगुजा से तीन को। जबकि, पहले के सरकारों में बस्तर से कम-से-कम दो मंत्री रहे हैं।
सीईओ और वीडियो गेम
एक बड़े जिला पंचायत के सीईओ के वीडियो गेम खेलने से पूरा आफिस परेशान है। सीईओ के टेबल पर फाइलों का अंबार लगा रहता हैं और साब वीडियो गेम खेलने में मगन रहते हैं। जिला पंचायत के अध्यक्ष और वहां के एक विधायक ने सरकार से आग्रह किया है कि वीडियोगेम प्रेमी सीईओ से काम प्रभावित हो रहा है…उन्हेें हटाना बेहतर होगा।
बड़े अफसर की पेशी
सूचना आयोग बनने के बाद यह पहली बार हुआ कि एडिशनल पीसीसीएफ लेवल के आईएफएस जेएससी राव को सूचना आयोग में पेश होना पड़ा। राव ने वाईल्डलाइफ से संबंधित जानकारी न देने पर सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल के समक्ष जाकर खेद व्यक्त किए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. किस जिले के कलेक्टर को चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने वीडियोकांफ्रेंसिंग में कहा, धान में अबकी गड़बड़ी हुई तो निबटा दूंगा?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो दो नाव पर सवारी करने की वजह से मुश्किल में पड़ सकते हैं?