Supreme Court News: मोटर दावा दुर्घटना: मृत्यु के समय की मृतक की आय बनेगा मुआवजा निर्धारण का आधार, सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
Supreme Court News: मोटर दावा दुर्घटना और मुआवजा निर्धारण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय करोल व जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा,मुआवज़े की गणना केवल मृतक की मृत्यु के समय की आय के आधार पर की जानी चाहिए। डिवीजन बेंच ने कहा, "हमारा मानना है कि मुआवज़े की गणना के लिए मृत्यु की तिथि तक की आय को आधार बनाया जाना चाहिए। इस फैसले के साथ डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें मृतक शासकीय कर्मचारी के रिटायरमेंट अवधि नजदीक होने को कारण बताते हुए मुआवजा का निर्धारण किया था।
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Supreme Court News: दिल्ली। मोटर दावा दुर्घटना और मुआवजा निर्धारण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय करोल व जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा,मुआवज़े की गणना केवल मृतक की मृत्यु के समय की आय के आधार पर की जानी चाहिए। डिवीजन बेंच ने कहा, "हमारा मानना है कि मुआवज़े की गणना के लिए मृत्यु की तिथि तक की आय को आधार बनाया जाना चाहिए। विभाजन गुणक मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के लिए एक विदेशी अवधारणा है। इसका उपयोग न्यायाधिकरण और न्यायालयों द्वारा मुआवज़े की गणना में नहीं किया जाना चाहिए।
इस फैसले के साथ डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें मृतक शासकीय कर्मचारी के रिटायरमेंट अवधि नजदीक होने को कारण बताते हुए मुआवजा का निर्धारण किया था।
केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए मृत कर्मचारी के परिजन पृथा कृष्णनन ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय करोल व जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा के डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विभाजन गुणक पद्धति को लागू किया था। इसके चलते याचिकाकर्ता मृतक के आश्रितों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ रहा था। हाई कोर्ट ने मृत कर्मचारी के रिटायरमेंट के बाद कम आय को आधार बनाकर मुआवजा राशि तय किया था। आमतौर पर यह न्यायालय मानकर चलता है कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी पेंशन पर निर्भर रहता है। अन्य रोजगारा या अतिरिक्त आय अर्जित की संभावना पर विचार नहीं किया जाता।
यह मामला 2012 में हुई एक दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें 51 वर्षीय असिस्टेंट इंजीनियर टीआई. कृष्णन की मृत्यु हो गई थी। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण MACT ने उनके परिवार को 44 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया था। बीमा कंपनी की अपील पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने मुआवज़े में 7 लाख से ज़्यादा की कटौती कर दी। हाईकोर्ट ने विभाजित गुणक" लागू करते हुए मुआवजा का इस तरह आधार बनाया। मृतक 60 वर्ष की आयु में रिटायर होता, जिसके बाद उसकी आय में काफ़ी गिरावट आती।
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती हुए पृथा कृष्णनन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा कि मृतक तकनीकी रूप से दक्ष थे। उनकी योग्यता को देखते हुए पूरी संभावना थी कि रिटायरमेंट के बाद भी वह रोजगार पा सकते थे। हाई कोर्ट ने मुआवजे के लिए जो आधार बनाया है वह उचित नहीं है। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है कि जो व्यक्ति सेवा में प्रवेश करता है, उसे किसी समय सेवा से बाहर भी होना पड़ता है। इसे मृत व्यक्ति या गंभीर रूप से घायल व्यक्ति, जिससे अशक्तता या स्थायी विकलांगता हो, उसके विरुद्ध नकारात्मक परिस्थिति के रूप में नहीं लिया जा सकता।
देशभर के हाई कोर्ट को आदेश का करना होगा पालन
सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल को निर्देशित किया है कि देशभर के सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आवश्यक जानकारी और आदेश के परिपालन के संबंध में में आदेश की प्रति ई मेल के जरिए भेजने का निर्देश दिया है।