High Court News: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, मंदिर की संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता पुजारी

बिलासपुर हाई कोर्ट ने मंदिर की संपत्ति को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मंदिर की भूमि पर पुजारी अधिकारी का दावा नहीं कर सकता। पुजारी तो देवता की संपत्ति के प्रबंधन के लिए नियुक्त अनुदानकर्ता व प्रबंधक है इससे ज्यादा कुछ नहीं।

Update: 2025-07-09 13:58 GMT

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High Court News: बिलासपुर। मंदिर की संपत्ति को लेकर विवाद के संबंध में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि पुजारी या पुराहित अनुदानकर्ता है जिसे देवता की संपत्ति की देखरेख व प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जाती है। पुजारी की भूमिका मंदिर में एक प्रबंधक की होती है। भूमि पर मालिकाना हक जताने का अधिकार है। पुजारी किसी मंदिर का भूमि स्वामी नहीं हो सकता और ना ही उसे भूमि स्वामी माना जा सकता है।

मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस गुरु ने कहा कि सामान्य कानून है कि पुजारी को मंदिर की भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। उसकी भूमिका प्रबंधक की होती है। यदि इस कार्य में विफल हो जाता है तो उसकी सेवा समाप्त करने का अधिकार मंदिर ट्रस्टी को है। कोर्ट ने कहा कि पुजारी काश्तकार मौरुशी नहीं है। यह कानून में स्पष्ट है। पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने वाला अनुदानकर्ता है। इससे ज्यादा मंदिर की संपत्ति पर उसका कोई काननूी अधिकारी नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुजारी के अधिकार काश्तकार मौरुशी के सामने है, जिसे जमीन बेचने या गिरवी रखने का अधिकार होता है। यदि पुजारी मंदिर की संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा करता है, तो यह कुप्रबंधन का कार्य है और वह कब्जे में रहने या पुजारी के रूप में बने रहने के योग्य नहीं है।

याचिकाकर्ता श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता पुजारी परिषद समिति ने विंध्यवासिनी मंदिर ट्रस्ट समिति में अपना नाम दर्ज कराने के लिए तहसीलदार के समक्ष आवेदन किया था। तहसीलदार ने प्रतिवादी ट्रस्ट को याचिकाकर्ता का नाम जोड़ने का निर्देश देते हुए आदेश पारित किया। इसे चुनौती देते हुए एसडीएम कोर्ट में अपील पेश की थी। मामले की सुनवाई के बाद एसडीएम ने तहसीलदार के आदेश को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त आयुक्त, रायपुर के समक्ष अपील दायर की, जिसे भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने राजस्व मंडल, छत्तीसगढ़, बिलासपुर के समक्ष अपील की। मामले की सुनवाई के बाद संभागायुक्त ने आदेश को खारिज कर दिया गया। व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

प्रतिवादी ट्रस्ट का पंजीकरण जनवरी 1974 को मंदिर के प्रबंधन के लिए किया गया था। नजूल अधिकारी द्वारा 1985 में जारी किए गए पट्टे के संबंध में अनावेदक ने 1989 में भूमि के स्वामित्व की घोषणा के लिए वाद दायर किया था। सिविल न्यायाधीश वर्ग-II धमतरी द्वारा 21 सितंबर1989 को पारित निर्णय और डिक्री में, जिसे बाद में अंतिम रूप दिया गया, यह माना गया कि ट्रस्टियों को बहुमत के आधार पर प्रबंधक नियुक्त करने का अधिकार है और संपत्ति का प्रबंधन ट्रस्ट को सौंपा गया है।

कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि विचाराधीन मंदिर की संपत्ति किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति है। यह नहीं कहा जा सकता कि मंदिर की संपत्ति पुजारियों के पूर्वजों की है। ऐसी स्थिति में, जब ट्रस्ट वर्ष 1974 से अस्तित्व में है और सक्रिय है, तो स्वाभाविक रूप से यह माना जाएगा कि उसे संपत्ति की देखभाल करने का अधिकार है। सिविल कोर्ट के इस डिक्री के परिप्रेक्ष्य में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने याचिकाकर्ता द्वारा पारित संशोधन पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने माना कि पुजारी केवल अनुदान प्राप्तकर्ता है और मंदिर की भूमि पर उसका कोई अधिकार नहीं है और उसकी स्थिति पूरी तरह से 'प्रबंधक' के बराबर है।

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी ट्रस्ट विधिवत पंजीकृत ट्रस्ट है तथा 23.जनवरी.1974 से अपनी सेवाएं दे रहा है। मात्र वर्ष 1985 में पट्टा/लीज के आवंटन के आधार पर याचिकाकर्ता को मंदिर की संपत्ति पर अधिकार का दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने कहा कि राजस्व मंडल, बिलासपुर के आदेश से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता पुजारीगण विद्यावासिनी मंदिर, धमतरी पॉवर ऑफ अटॉर्नी रमेश तिवारी' थे, जबकि वर्तमान याचिका में मंडल द्वारा पारित विवादित आदेश को 'श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता पुजारी परिषद समिति, अध्यक्ष मुरली मनोहर शर्मा' द्वारा चुनौती दी गई है। लिहाजा याचिकाकर्ता के पास विवादित आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह विवादित आदेश का पक्षकार भी नहीं था। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है।

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