CG Trible Lnad: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन हड़पने गैर आदिवासियों में होड़, भूमि अधिकार दावा का सबसे अधिक 9 लाख केस देख केंद्र हैरान...
CG Trible Lnad: छत्तीसगढ़ में जंगल की जमीन पर कब्जा करने गैर आदिवासियों में होड़ मच गई है। इनमें अधिकांश व्यापारी वर्ग से जुड़े लोग हैं, जो आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने लीज का रास्ता निकाल लिए हैं। कौडियों के मोल आदिवासियों की जमीनों पर लीज के बहाने पक्का स्ट्रक्चर बनाकर कब्जा किया जा रहा है। उधर, छत्तीसगढ़ से भूमि अधिकार के दावों की संख्या देख केंद्र सरकार हैरान है। देश में छत्तीसगढ़ से सबसे अधिक नौ लाख केस आए हैं। अब तक भूमि अधिकार के चार लाख दावे खारिज, 5 लाख 34 हजार को मिला भूमि अधिकार का पट्टा, देशभर में 36 प्रतिशत दावे अमान्य।
CG Trible Lnad
CG Trible Lnad: रायपुर। वन अधिकार नियम के तहत आदिवासियों और गैर आदिवासी इलाकों के संगठनों को दावों के आधार पर वन भूमि अधिकार के पट्टे दिए जाते रहे हैं। ये दावे ग्राम सभा के जरिए किए जाते हैं, फिर प्रशासन की ओर से इसका सत्यापन किया जाता है। बस्तर और सरगुजा संभाग में आदिवासी के नाम पर उनकी जमीन लेने का खेल भी चल पड़ा है। आदिवासी भूमि पर केवल आदिवासी का ही कब्जा हो सकता है अथवा वही खरीद सकता है। गैरआदिवासी को जमीन खरीदने के लिए कलेक्टर से अनुमति लेनी होती है, जो आसान नहीं होता। यही कारण है कि गैरआदिवासी लोग बिजनेस या जमीन पर कब्जे की नीयत से आदिवासी के नाम पर भी भूमि अधिकार का दावा पेश कर रहे हैं। जांच में सच्चाई सामने आने पर इनके दावे खारिज कर दिए जाते हैं। हैरत की बात यह है कि अकेले छत्तीसगढ़ में नौ लाख से ज्यादा भूमि अधिकार के दावे पेश किए गए, जो भारत में सबसे अधिक है।
31 मई 2025 तक की सामने आयी जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में 8 लाख 90,220 लोगों ने भूमि अधिकार का दावा पेश किया था। इनके अलावा संगठनों से भी 57,259 दावे मिले थे। इनमें से चार लाख 81,432 व्यक्तियों को पट्टे दे दिए गए हैं, इसी तरह 52,636 संगठनों को भी 31 मई 2025 तक की स्थिति में पट्टे वितरित किए गए है। इसके विपरीत चार लाख 3129 लोगों और 3658 संगठनों का भूमि अधिकार का दावा खारिज करते हुए पट्टे नहीं दिए गए।
खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ में देशभर के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक 9 लाख 47 हजार 479 लोगों और संगठनों ने भूमि अधिकार का दावा पेश किया था। दूसरे नंबर पर ओडिशा राज्य शामिल है, जहां 736172 दावे भूमि अधिकार के प्राप्त हुए हैं। वहां एक लाख 40 हजार दावों को खारिज कर दिया गया है। मध्यप्रदेश में 6 लाख 27,513 दावे मिले थे। इनमें से 3 लाख 22407 दावे खारिज कर दिए गए। भूमि अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन पर एक रिपोर्ट संसद में रखी गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी वन अधिकार मान्यता अधिनियम, 2006 (एफआरए) के विधायी मामलों के प्रशासन हेतु नोडल मंत्रालय होने के कारण इस अधिनियम के समुचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर निर्देश और दिशानिर्देश जारी करता रहा है। एफआरए और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार राज्य सरकारें इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के लिए उत्तरदायी हैं और इसे 20 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में लागू किया जा रहा है।
18 लाख 62 हजार दावे खारिज
जनजातीय कार्य मंत्रालय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत मासिक प्रगति रिपोर्ट की निगरानी करता है। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 31 मई 2025 तक संचयी रूप से ग्राम सभा स्तर पर कुल 51,23,104 दावे दायर किए गए हैं , जिनमें 49,11,495 व्यक्तिगत और 2,11,609 सामुदायिक दावे शामिल हैं। जिनमें से कुल 25,11,375 (49.02þ) स्वामित्व वितरित किए गए, जिनमें 23,89,670 व्यक्तिगत और 1,21,705 सामुदायिक शीर्षक शामिल हैं। 18,62,056 (36.34þ) दावों को खारिज कर दिया गया है, जिसमें 18,09,017 व्यक्तिगत और 53,039 सामुदायिक दावे शामिल हैं।
जबरन बेदखली से सुरक्षा
वन अधिकार अधिनियम (FRA)जबरन बेदखली पर सुरक्षा प्रदान करता है। वन अधिकार अधिनियम (FRA) की धारा 4(5) में प्रावधान है कि अन्यथा प्रावधान के अलावा, वन में रहने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य पारंपरिक वनवासियों के किसी भी सदस्य को मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने तक उसके कब्जे वाली वन भूमि से बेदखल या हटाया नहीं जाएगा। पीड़ित व्यक्तियों द्वारा एसडीएलसी (SDLC) और डीएलसी (DLC) [FRA की धारा 6(2) और 6(4)] को याचिका दायर करने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय निगरानी समिति को वन अधिकारों की मान्यता, सत्यापन और निहितीकरण की प्रक्रिया की निगरानी करने, क्षेत्रीय स्तर की समस्याओं पर विचार करने और उनका समाधान करने के लिए तीन महीने में कम से कम एक बार बैठक करनी होगी।
कौडि़यों के माेल लीज पर ले रहे आदिवासियों की जमीन बस्तर और सरगुजा में आदिवासियों की जमीन पर धड़ल्ले से कब्जे की शिकायत आती रहती है, मगर कहीं पर कोई ठोस निगरानी नहीं हो रही है। यही कारण है कि दोनों आदिवासी इलाकों में पेट्रोल पंप, ढाबा, रिसोर्ट, फार्म हाउस जैसे व्यावसायिक कार्यों के लिए कौड़ियों के मोल आदिवासियों की जमीन लीज पर ली जा रही है। उसी जमीन पर पक्का निर्माण तक किया जा रहा है। निर्माण कर गैरआदिवासियों को वहां आराम से बिजनेस किया जा रहा है।