CG Real Estate: गाइडलाइन रेट देश में सबसे कम होने से छत्तीसगढ़ का रियल इस्टेट काली कमाई खपाने का गढ़ बना, रसूखदारों, भ्रष्ट अफसरों के ब्लैक मनी से कारोबार हुआ मालामाल...
CG Real Estate: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 7000 रुपए बाजार दर वाली जमीनों का 1000 है सरकारी रेट। इस वजह से छत्तीसगढ़ मनी लॉड्रिंग का गढ़ बनता जा रहा। राज्य के खजाने और इंकम टैक्स का बड़ा नुकसान मगर बिल्डरों, भूमाफियाओं और उनके कारोबार में काली कमाई लगाने वाले लोगों को फायदा-ही-फायदा। जमीनों का कौड़ियो के मोल सरकारी रेट होने से ब्लैक मनी खपाने का सबसे सुरक्षित जरिया। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य, जहां पिछले आठ साल से जमीनों का गाइडलाइन रेट फुटी कौड़ी नहीं बढ़ा। 2019 में बिल्डरों और भूमाफियाओं की किस्मत चमकी कि गाइडलाइन रेट बढ़ाने की बजाए उल्टे 30 परसेंट और कम कर दिया गया। चूकि काली कमाई खपाने का यह सबसे सुरक्षित माध्यम है, इसलिए कोई भी वर्ग नहीं चाहता कि यह रास्ता बंद हो। भले ही इससे आम आदमी और किसानों को नुकसान उठाना पड़े। नीचे पढ़िये...गाइडलाइन के खेल से रसूखदारों द्वारा कैसे किया जा रहा मनी लॉड्रिंग और इससे छत्तीसगढ़ के आम आदमी, किसानांं को कैसे हो रहा नुकसान।
CG Real Estate: रायपुर। 2017 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मुख्यमंत्री को डीओ लेटर लिखकर जमीनों का सरकारी दर कम होने पर चिंता जताई थी। उन्होंने लिखा था, छत्तीसगढ़ में जमीनों का सरकारी रेट कम होने से कम दर पर रजिस्ट्री हो रही है। इससे बड़े स्तर पर मनी लॉड्रिंग हो रहा है....सरकार के खजाने को नुकसान पहुंच रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी होगा कि गाइडलाइन रेट बढ़ाया जाए। मगर गाइडलाइन रेट तो बढ़ा नहीं, 2019 में उल्टे 30 परसेंट कम कर दिया गया। इससे फायदा हुआ तो सिर्फ बिल्डरों, भूमाफियाओं और इंवेस्टरों को। आम आदमी के पास वैसे भी दो नंबर के पैसे नहीं होते। उपर से नौकरीपेशे लोगों को बैंकों से पर्याप्त लोन नहीं मिल पाते। क्योंकि, बाजार रेट चौथाई से भी नीचे है, इसलिए बैंक वाले वास्तवित भुगतान के लिए उतने पैसे का लोन दे नहीं पाते, क्योंकि सरकारी रेट की कम है। मगर बिल्डर तो बाजार रेट से दो नंबर में उपर से पैसे लेता है। जिसके पास दो नंबर के पैसे नहीं, उसे भी दो नंबर के पैसे इंतजाम करने पड़ते हैं। दूसरा सबसे बड़ा नुकसान छत्तीसगढ़ के किसानों का हो रहा है। छत्तीसगढ़ में सड़क या अन्य सरकारी, गैर सरकारी निर्माण कार्यो के लिए बड़े स्तर पर जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा। सरकारी रेट बेहद कम होने से उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
गाइडलाइन रेट में खेल
सबसे बड़ा खेला गाइडलाइन रेट में किया गया। गाइडलाइन रेट तय करने वाले अफसरों ने कचना और विधानसभा रोड की 5 से 7 हजार फुट वाली लग्जरी कालोनियों का रेट भी हजार से 12 सौ रुपए तय कर दिया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि सड्डू के सबसे पिछड़े इलाकों में जमीनों का सरकारी रेट भी हजार रुपए है और विधानसभा रोड पर बने हाई प्रोफाइल कालोनियां का भी वही रेट।
पॉश कालोनियों में 1395 रुपए रेट
छत्तीसगढ़ में लालफीताशाही का कमाल देखिए विधानसभा रोड, कचना, आमासिवनी में गाइडलाइन रेट में 30 प्रतिशत छूट खतम होने के बाद भी 1390, 1395 रुपए से अधिक नहीं है। ये उन पॉश इलाकों की बात कर रहे हैं, जिन कालोनियों में डेढ़ करोड़ से नीचे का कोई छोटा मकान नहीं मिलता और 60 से 70 लाख से नीचे 1200 वर्ग का प्लॉट नहीं मिलेगा। मगर रजिस्ट्री होती है 1390 रुपए के रेट से। रायपुर के सबसे पॉश कालोनी और बिजनेस हब बनाने का दावा करने वाले एक बिल्डर की कालोनी और व्यवसायिक पार्क का एनपीजी न्यूज संवाददाता ने विजिट किया, वहां रेट बताया गया 7000 रुपए वर्ग फुट।
8 साल से रेट नहीं बढ़ा
एक तो रायपुर के आउटर कालोनियों का सरकारी रेट हजार, बारह सौ से उपर नहीं हुआ, उपर से पिछली कांग्रेस सरकार ने 30 परसेंट और कम कर दिया। बीजेपी की नई सरकार आने के बाद गाइडलाइन रेट की छूट को समाप्त किया गया। हालांकि, पिछले साल मई में सरकार ने गाइडलाइन रेट बढ़ाने की तैयारी की थी मगर ऐसा माहौल बनाया गया कि रियल इस्टेट बैठ जाएगा, इसलिए सरकार ने कदम पीछे खींच लिया। जानकारों का कहना है कि आखिर छत्तीसगढ़ में भी हर साल गाइडलाइन रेट बढ़ता था। देश के सभी राज्यों में भी हर साल रेट बढ़ता है। फिर छत्तीसगढ़ में ही रियल इस्टेट के बैठने का डर क्यों दिखाया जा रहा है?
बता दें, दूसरे राज्यों में हर साल गाइडलाइन रेट में बाजार के हिसाब से कुछ-न-कुछ वृद्धि की जाती है। छत्तीसगढ़ में भी 2017 तक ऐसा ही होता था। हर साल कुछ परसेंट गाइडलाइन रेट बढ़ता था। मगर अब छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य बन गया, जहां 2017 के बाद जमीनों के संपत्ति दर में एक पैसे की वृद्धि नहीं हुई। उपर से 30 परसेंट छूट दे दी गई। याने आउटर की महंगी जमीनों को सरकारी रेट वैसे ही औने-पौने और उपर से एक तिहाई का रियायत भी।
मनी मनी लॉड्रिंग का बड़ा सोर्स
जमीनों और संपत्तियां का सरकारी रेट कम करने के खेला से रायपुर मनी लॉड्रिंग का केंद्र बन गया है। महंगी जमीनों को कौडियों के भाव रजिस्ट्री करने से ब्लैक मनी का चलन तेजी से बढ़ा है। काली कमाई वाले दूसरो प्रदेशों के इंवेस्टर्स छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। नाममात्र के सरकारी रेट में जमीन या मकान बेचने से बिल्डरों और भूमाफियाओं को इंकम टैक्स का बड़ा फायदा हो रहा है। जरा सोचिए 7000 फुट की जमीन में जो प्लॉट बिल्डर बेच रहे हैं, उसका सरकारी रेट है 1300। याने पांच गुना कम। बिल्डरों को 7000 की बजाए 1300 रुपए के हिसाब से इंकम टैक्स जमा करना पड़ता है। इसमें ब्लैक मनी का फ्लो इसलिए बढ़ गया है कि एक नंबर में बहुत थोड़े पैसे देने पड़ रहे हैं, 70 से 75 परसेंट हिस्सा कैश में ले रहे बिल्डर। चूकि बिल्डरों और भूमाफियाओं को कैश में पैसे ज्यादा मिल रहा है सो दो नंबर का काम रियल इस्टेट में ज्यादा हो रहा।
कार्रवाई क्यों नहीं?
जब सभी को मालूम है कि बाजार में किस रेट से जमीनों और संपत्तियों को विक्रय किया जा रहा है, उसके बाद भी छत्तीसगढ़ के अफसर आंख मूंदकर पुराने गाइडलाइन रेट को फॉलो करते हैं। छत्तीसगढ़ में पिछले 20 साल में बाजार रेट दस गुना तक बढ़ गए हैं मगर सरकारी रेट वही है हजार, बारह सौ।
रसूखदारों और नौकरशाहों का इंवेस्टमेंट
रायपुर राजधानी बनते ही मंत्री से लेकर बोर्ड, आयोगों का गठन तो हुआ ही भोपाल से बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस रायपुर आए। चूकि छत्तीसगढ़ नया प्रदेश था, सो संभावनाए असीमित थी। मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों ने बहती गंगा में जमकर डूबकी लगाई। सबसे पहले नेताओं और नौकरशाहों ने रायपुर के चारों तरफ के लगभग 60-70 किलोमीटर एरिया के सारे जमीन खरीद लिए। जब जमीनों में इंवेस्टमेंट हो गया तो फिर बिल्डरों के प्रोजेक्टों में निवेश प्रारंभ हुआ। साल 2010 आते-आते रायपुर के बिल्डरों ने ऐसा ग्रोथ किया कि बाहर के लोग आवाक थे। लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि रायपुर में इतना पैसा कहां से बरस रहा जबकि, मकान बिकने का औसत ग्रोथ अपेक्षाकृत कम है तो फिर मकान और फ्लैट बनाने की होड़ कैसे मच गई है?
मेट्रो सिटी टाईप रेट क्यों?
हालांकि, कुछ बिल्डर अच्छे भी हैं, जो इस तरह की काली कमाई से परहेज क रते हैं। उनमें से एक प्रतिष्ठित बिल्डर ने एनपीजी न्यूज को आसमानी छूते रेट के बारे में जो बताया, वह चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रोजेक्ट में बिल्डरों को अपना कुछ नहीं होता। जमीन भी नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों के पैसे से खरीदी होती है और उसके बाद कालोनियां और अपार्टमेंट भी उन्हीं के इंवेस्टमेंट से। अपना कुछ लगा नहीं, सो बैंक का ब्याज या नुकसान की कोई चिंता नहीं। दिखाने के लिए बिल्डर बैंक से लोन लेते हैं और तुरंत ही उसे चूकता कर देते हैं। याने सिर्फ कागजों में शो करने के लिए लोन।
कोविड में भी रेट नहीं गिरा
चूकि रायपुर और उसके आसपास के अधिकांश हाउसिंग प्रोजेक्टों में नेताओं और नौकरशाहों का पैसा लगा है, सो कोविड में रियल इस्टेट धड़ाम से जमीन पर आ गया था, तब भी आपको जानकार ताज्जुब हुआ कि अधिकांश बिल्डर अपने पुराने रेट पर अडिग रहे। नहीं बिकेगा सही मगर रेट कम नहीं करेंग। अब आप खेला समझ गए होंगे।
करोड़ों में दो नंबर की राशि
छत्तीसगढ़ का सलाना बजट 5 हजार करोड़ से चालू हुआ था और एक लाख करोड़ से उपर पहुंच गया है। चाहे बीजेपी का टाईम हो या कांग्रेस का, कई मंत्री 30 से 40 परसेंट कमीशन लेते थे। इसके अलावा नौकरशाहों का अपना हिस्सा। इतने बड़े बजट में हर साल कमीशन की राशि निकालेंगे तो हजार करोड़ से उपर जाएगा। और पूरा कैश में आना है। मुठ्ठी भर बड़े लोग इस पैसे को बड़े उद्योगों में या फिर गुड़गांव जैसे जगहों पर इंवेस्ट कर देते हैं। लेकिन, बाकी पैसे यही लगते हैं।
40 परसेंट तक महंगे
जानकारों का आंकलन है कि रायपुर जैसे देश के शहरों में यहां से 30 से 40 परसेंट कम रेट में प्रायवेट बिल्डर के मकान मिल जाते हैं। मगर रायपुर में दिल्ली, मुंबई, पुणे, बंगलुरू टाईप घरों और फ्लैट के रेट हैं। सिर्फ इसलिए कि अधिकांश बिल्डरों को रेट के मामलों में समझौता करने की कोई मजबूरी नहीं।