CG Paddy News: 8000 करोड़ का चूनाः 4100 में किसानों से धान खरीद मिलरों को 1900 में बेच रहे, मिस मैनेजमेंट से 3.70 करोड़ क्विंटल धान की मीलिंग नहीं

CG Paddy News: छत्तीसगढ़ में गजबे हो रहा है। मार्कफेड ने किसानों से 3100 रुपए में धान खरीद लिया। मगर कस्टम मीलिंग न करा पाने की वजह से 3 करोड़ 70 लाख क्विंटल धान खुले में पड़ा हुआ है। मार्कफेड ने बचे धान की नीलामी के लिए टेंडर निकाला है, वह हास्यपद होने के साथ सरकारी खजाने को चूना लगाने वाला है। इससे आठ हजार करोड़ से ज्यादा की चपत लगेगी। दरअसल, किसानों से धान 3100 में खरीदा जाता है मगर खरीदी, परिवहन, सूखत आदि मिलाकर धान करीब 4100 रुपए में पड़ता है। महीना भर तक सिकरेट्री, कलेक्टर से लेकर राज्य की पूरी सरकारी मशीनरी धान खरीदी में लग जाती है, इससे समझा जा सकता है कि 8000 करोड़ के अलावे ये कितना बड़ा नुकसान हुआ।

Update: 2025-06-26 09:34 GMT

CG Paddy News: रायपुर। सिस्टम में बैठे अफसरों की नासमझी की इसे पराकाष्ठा कहनी चाहिए। फूड और मार्कफेड ने राज्य के किसानों से बम्पर धान तो खरीद लिया मगर उसका डिस्पोजल सरकार के लिए गले का फांस बन गया है। हालत यह है कि 3.70 करोड़ क्विंटल धान बच गया है। मार्कफेड इसे अब मिलरों को टिकाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए 1900 रुपए के हिसाब से नीलामी के लिए टेंडर निकाला गया है। याने 4100 में किसानों से धान खरीदकर उसे 1900 में बेचा जाएगा। अफसरों के इस कारनामों से राज्य के खजाने को आठ हजार करोड़ रुपए की चपत लगेगी। क्योंकि, प्रति क्विंटल 2200 रुपए का नुकसान होगा। इसे कोई अर्थशास्त्री सुनेगा तो उसका दिमाग चकरा जाएगा...छत्तीसगढ़ में आखिर ये हो क्या रहा है।

जाहिर है, छत्तीसगढ़ में धान का रेट 1800 से बढ़कर 3100 हो गया है, उधर, किसानों से प्रति एकड़ में अब 15 की बजाए 21 क्विंटल धान खरीदा जा रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले साल 110 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 2024-25 में 140 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया।

खाद्य और मार्कफेड विभाग के अधिकारियों के प्रयासों के बाद भी इस बार धान का उठाव अपेक्षित नहीं हो पाया। इसके लिए सरकार ने स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल को मिलरों से बात करने के लिए अपाइंट किया था मगर वे भी इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं पाए। इस चक्कर में 37 लाख मीट्रिक टन याने तीन करोड़़ 70 क्विंटल धान का डिस्पोजल नहीं हो पाया।

बरसात आने पर अफसर हरकत में

एक तो पिछले साल की तुलना में 30 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी अधिक हो गई। फूड और मार्कफेड स्तर पर इसकी तैयारी नहीं की गई कि रेट और रकबा बढ़ने पर धान की खरीदी अधिक होगी तो उसकी मिलिंग का क्या होगा। अब स्थिति यह कि बरसात आ गया। कई जगहों पर धान खुले में भी रखे हुए हैं। इसको देखते मार्कफेड ने धान की नीलामी करने के लिए टेंडर निकाला है। इसके लिए 1900 रुपए रेट तय किया गया है। मगर मिलरों का कहना है कि मार्केट में जब 1800 में धान मिल रहा तो मार्कफेड से 100 रुपए महंगा धान क्यों खरीदे।

लोन का पैसा, भारी मिस मैनेजमेंट

धान खरीदी में मिस मैनेजमेंट से सरकार के खजाने को बड़ी चपत लगा रही है। 4100 रुपए में धान खरीद उसे 1900 में बेचा जा रहा। अर्थात 2200 रुपए का प्रति क्विंटल नुकसान। 3.37 करोड़ क्विंटल के हिसाब से अगर 2200 का गुणा करें तो लगभग आठ हजार करोड़ आएगा। सीधा-सीधा ये खजाने पर चोट होगा। जाहिर है, किसानों से धान खरीदी के लिए सरकार लोन लेती है। इस लोन के पैसे से खरीदे गए धान को 8000 करोड़ नुकसान में बेचना राज्य की बड़ी क्षति होगी।

किसानों को धान का मार्जिन मनी देना ज्यादा सही

इस साल जिस स्तर पर धान खरीदी हुई है, और सिस्टम में बैठे लोग इसका डिस्पोजल नहीं कर पाए, उसमें अर्थशास्त्र को जानने वालों का कहना है कि सरकार को इसके लिए अब कोई रास्ता निकालना पड़ेगा। वरना, खजाने की कमर टूट जाएगी। क्योंकि, अगले साल फिर धान की खरीदी बढ़ेगी। आखिर, 4100 में खरीदकर 1900 में बेचने के फैसले को सही कैसे ठहराया जा सकता है। इससे अच्छा तो ये कि प्रति एकड़ धान की खरीदी कम कर दिया जाए। या फिर किसानों से कुछ परसेंट धान लेकर बाकी मार्जिन मनी कैश उनके खाते में ट्रांसफर देना चाहिए।

1300 रुपए खाते में

जानकारों का कहना है कि मार्केट में 1800 रुपए में धान बिक रहा, वही धान सरकार किसानों से 3100 में खरीदती है और उसे मीलिंग के लिए भेजने तक का खर्च हजार रुपए बढ़कर कुल कीमत करीब 4100 तक पहुंच जाता है। सरकार को अगर 3100 रुपए देना है तो किसानों से धान खरीदने की बजाए मार्जिन मनी 1300 प्रति क्विंटल के हिसाब से खाते में ट्रांसफर कर दें, बाकी 1800 में वे बाजार में धान बेच लेंगे। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ का चूना लगने से बच जाएगा।

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