Bilaspur High Court: मकान मालिक-किराएदार के बीच विवाद को लेकर हाई कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला

Bilaspur High Court- मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद के निपटारे के लिए राज्य शासन ने किराया नियंत्रण प्राधिकरण की स्थापना की है। विवादों के निपटारे के लिए एसडीएम को अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। एक मामले में ट्रिब्यूनल ने प्राधिकरण के आदेश काे रद्द कर दिया था। याचिकाकर्ता मकान मालिक ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने विवादों के निपटारे को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही किराया नियंत्रण प्राधिकरण के अधिकारों की भी रक्षा की है। पढ़िए डिवीजन बेंच ने क्या फैसला सुनाया है।

Update: 2025-04-14 07:57 GMT
Bilaspur High Court: मकान मालिक-किराएदार के बीच विवाद को लेकर हाई कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला
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Bilaspur High Court: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में मकान मालिक और किराएदार के विवाद को लेकर रोचक मामला आया। याचिकाकर्ता ने जिससे मकान खरीदा उसे ही किराए पर दे दिया। विवाद बढ़ने पर मकान खाली कराने नोटिस दिया। इसके बाद भी जब किराएदार ने मकान खाली नहीं किया तब मकान मालिक ने किराया नियंत्रण प्राधिकरण के समक्ष अपील पेश की। मामले की सुनवाई के बाद प्राधिकरण ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला देते हुए किराएदार को मकान खाली करने और बकाया किराया के रूप में 28,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। किराएदार ने प्राधिकरण के फैसले को चुनौती देते हुए ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील पेश की थी। ट्रिब्यूनल ने प्राधिकरण के फैसले को रद्द कर दिया। ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए मकान मालिक कृष्ण कुमार कहार व शोभा कुमारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने याचिका की सुनवाई के बाद मामले को किराया नियंत्रण प्राधिकरण को वापस भेजते हुए कानून के अनुसार कार्रवाई का निर्देश दिया है। डिवीजन बेंच ने जरुरी निर्देशों के साथ याचिका को निराकृत कर दिया है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत वर्तमान याचिका द्वारा याचिकाकर्ता (मकान मालिक) छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण, रायपुर द्वारा 28-4-2023 को पारित आदेश को चुनौती दिया था। ट्रिब्यूनल ने दशोदा बाई धीवर (किरायेदार) की अपील को स्वीकार करते हुए किराया नियंत्रण प्राधिकरण /अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) द्वारा 12-12-2022 को पारित आदेश को खारिज कर दिया था। प्राधिकरण ने किराएदार दशोदा बाई धीवर को याचिकाकर्ता का मकान खाली करने और बकाया किराए की राशि 28,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ताओं कृष्ण कुमार कहार व शोभा कुमारी ने छत्तीसगढ़ किराया नियंत्रण अधिनियम, 2011 के तहत प्राधिकरण/एसडीएम चांपा के समक्ष दशोदा बाई धीवर व राम प्रसाद को बेदखल करने के लिए एक आवेदन पेश किया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह तर्क दिया गया कि विवादित भूमि खसरा नंबर 1507/29 क्षेत्रफल 0.10 दशमलव जिसमें एक घर है, याचिकाकर्ताओं ने राम प्रसाद से खरीदा था। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने उक्त घर को दशोदा बाई धीवर को 4,000/- रुपये मासिक किराए पर किराए पर दिया था, हालांकि दशोदा बाई धीवर शुरू से ही किराया चुकाने में विफल रहा और याचिकाकर्ता द्वारा बार-बार अनुरोध के बावजूद उसे घर खाली करने से मना कर दिया गया। उक्त तथ्यों के आधार पर, प्राधिकरण ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया। नोटिस प्राप्त होने के बाद,दशोदा बाई उपस्थित हुआ और उसने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क को अस्वीकार कर दिया तथा कहा कि किसी समझौते के अभाव में याचिकाकर्ता का आवेदन स्वीकार्य नहीं है।

0 किराया नियंत्रण प्राधिकरण ने सुनाया ऐसा फैसला

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, प्राधिकरण/एसडीएम राजस्व ने 12-12-2022 को एक आदेश जारी कर दशोदा बाई धीवर व राम प्रसाद को मकान खाली करने व बकाया किराया के एवज में 28,000/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। प्राधिकरण के आदेश को चुनौती देते हुए दशोदा बाई ने न्यायाधिकरण के समक्ष अधिनियम, 2011 की धारा 13 के तहत अपील दायर की। मामले की सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल ने किराया नियंत्रण प्राधिकरण के फैसल को रद्द कर दिया। अपने फैसले में टिब्यूनल ने लिखा है कि एसडएम द्वारा अधिनियम, 2011 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और अधिनियम, 2011 के प्रावधानों के उल्लंघन में कार्यवाही की गई।

0 ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट में दी थी चुनौती

ट्रिब्यूनल के फैसले काे चुनौती देते हुए कृष्ण कुमार व शोभा कुमारी ने अपने अधिवक्ता के माध्मय से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि ट्रिब्यूनल ने सही ढंग से यह टिप्पणी की है कि यद्यपि दो गवाहों के हलफनामे प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन आदेश पत्र में यह प्रविष्टि नहीं है कि उन्हें किस तिथि को रिकॉर्ड पर लिया गया है। यहां तक ​​कि प्राधिकरण भी मुद्दे तय करने में विफल रहा और प्राधिकरण द्वारा तय किए गए मुद्दे को साबित करने के लिए पक्षों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने में भी विफल रहा। जबकि मुद्दे तय करना और पक्षों को उक्त मुद्दे को साबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करना अधिनियम, 2011 के तहत निर्णय के लिए आवश्यक है। रिकॉर्ड से यह भी स्पष्ट है कि प्राधिकरण ने अधिनियम, 2011 की धारा 10 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है और इसलिए न्यायाधिकरण ने सही ढंग से माना है कि प्राधिकरण प्रदान की गई प्रक्रिया का पालन करने में विफल रहा है। ट्रिब्यूनल को याचिकाकर्ता, जो एक मकान मालिक है, द्वारा दायर आवेदन पर नए सिरे से निर्णय के लिए मामले को प्राधिकरण/एसडीएम (राजस्व) को वापस भेजना चाहिए था।

0 डिवीजन बेंच ने मामले को किराया नियंत्रण प्राधिकरण के पास भेजा वापस

डिवीजन बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों पर कानून के सुस्थापित सिद्धांतों को लागू करते हुए, रिट याचिका का निराकरण इस निर्देश के साथ किया जाता है कि याचिकाकर्ता किराया नियंत्रण प्राधिकरण के समक्ष अधिनियम, 2011 के अंतर्गत एक नया आवेदन दायर करेगा। किराया नियंत्रण प्राधिकरण कानून के अनुसार तथा उसके गुण-दोष के आधार पर विचार कर निर्णय लेगा। डिवीजन बेंच ने प्राधिकरण को निर्देशित करते हुए अपने फैसले में लिखा है कि यह स्पष्ट किया जाता है कि डिवीजन बेंच ने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और किराया नियंत्रण प्राधिकरण इस आदेश में की गई किसी भी टिप्पणी को मामले के गुण-दोष पर राय के रूप में न मानते हुए, उस पर निर्णय लेगा।

0 डिवीजन बेंच की महत्वपूर्ण टिप्पणी

0 किसी पक्ष को केवल किसी गलती, लापरवाही, असावधानी या प्रक्रिया के नियमों के उल्लंघन के कारण न्यायोचित राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

0 प्रक्रिया को कभी भी न्याय से वंचित करने या किसी दमनकारी या दंडात्मक उपयोग द्वारा अन्याय को कायम रखने का साधन नहीं बनाया जाना चाहिए।

0 यह सामान्य कानून है कि प्रक्रियागत दोष अनियमितता के दायरे में आ सकता है और उसे ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसे उचित अवसर दिए बिना वादी को प्राप्त मूल अधिकार को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

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