Bilaspur High Court: लड़की का हाथ पकड़ा और I LOVE YOU कहा: तीन साल नहीं एक साल की भुगतनी होगी सजा, पढ़िए जस्टिस ने क्या फैसला सुनाया...
Bilaspur High Court: घटना के समय युवक 19 साल का था, युवक ने पीड़ित का हाथ पकड़ा और I LOVE YOU कह दिया। पुलिस ने पॉक्सो एक्ट के तहत जुर्म दर्ज किया और स्पेशल कोर्ट में मामला पेश किया। मामले की सुनवाई के बाद स्पेशल कोर्ट ने आरोपी युवक को तीन साल का कठोर कारावास और 1,000 रुपये का जुर्माना की सजा सुनाया था। जु
Bilaspur High Court: बिलासपुर। घटना के समय युवक 19 साल का था, युवक ने पीड़ित का हाथ पकड़ा और I LOVE YOU कह दिया। पुलिस ने पॉक्सो एक्ट के तहत जुर्म दर्ज किया और स्पेशल कोर्ट में मामला पेश किया। मामले की सुनवाई के बाद स्पेशल कोर्ट ने आरोपी युवक को तीन साल का कठोर कारावास और 1,000 रुपये का जुर्माना की सजा सुनाया था। जुर्माना न भरने पर तीन महीने का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतने का निर्देश दिया था। स्पेशल कोर्ट ने दोनों कारावास की सजाएं एक साथ चलाने का आदेश दिया था। स्पेशल कोर्ट के फैसले को आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता ने केवल पीड़िता का हाथ पकड़ा और I LOVE YOU कहते हुए उसे अपनी ओर खींचा। इसके अलावा उसने कोई अन्य आपत्तिजनक कृत्य नहीं किया था। घटना के समय अपीलकर्ता 19 वर्ष का युवक था। इसलिए, अपीलकर्ता को 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा को बरकरार रखने के बजाय, न्यायसंगत यही होगा कि उसकी सजा को 3 वर्ष के कठोर कारावास से घटाकर 1 वर्ष के कठोर कारावास कर दिया जाए। बता दें कि जस्टिस चंद्रवंशी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 4 नवंबर को 2025 को सुरक्षित रख लिया था। सिंगल बेंच ने 15 दिसंबर 2025 को फैसला सुनाया है। यह फैसला न्याय दृष्टांत AFR बन गया है।
याचिकाकर्ता रोहित चौहान ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से रायगढ़, जिला रायगढ़ (छत्तीसगढ़) के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट द्वारा 20 मई 2022 को पारित दोषसिद्धि के निर्णय और सजा के आदेश को चुनौती दी थी। यह निर्णय पीओसीएसओ अधिनियम संख्या 63/2019 के अंतर्गत विशेष आपराधिक मामले में पारित किया गया था, जिसके तहत अपीलकर्ता को तीन साल का कठोर कारावास और 1,000 रुपये का जुर्माना की सजा सुनाया था। जुर्माना न भरने पर तीन महीने का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतने का निर्देश दिया था। स्पेशल कोर्ट ने दोनों कारावास की सजाएं एक साथ चलाने का आदेश दिया था।
यह है मामला
पीड़िता ने भूपदेवपुर पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि 28 नवंबर.2019 को शाम लगभग 4.00 बजे, जब वह अपनी बहन और सहेली के साथ घर लौट रही थी और दातार मजार के पास पहुंची, तो अचानक आरोपी अपने दोस्त की गाड़ी से उतरा और उसकी ओर आया, उसे I LOVE YOU कहते हुए रोका। उसका हाथ पकड़कर उसे अपमानित करने के इरादे से अपनी ओर खींचा। जब उसने पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, तो उसने उसे गाली देना शुरू कर दिया। उसी समय पीड़िता की छोटी बहन और सहेली ने बीच-बचाव किया और डर के मारे वे दातार मजार के अंदर चली गईं। कुछ समय बाद पीड़िता अपनी बहन और सहेली के साथ घर लौटी और उसने अपनी मां को पूरी घटना बताई। इसके बाद, मां ने उसके पिता को फोन करके घटना के बारे में बताया। फिर पीड़िता अपने पिता के साथ पुलिस स्टेशन गई और अपीलकर्ता के खिलाफ लिखित रिपोर्ट दर्ज कराई गई। जिसके आधार पर उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 354 और 294 तथा बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण अधिनियम, 2012 (जिसे आगे 'पीओसीएसओ अधिनियम' कहा जाएगा) की धारा 8 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। गवाहों के बयान दर्ज किए गए। पीड़िता की उम्र से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए। पीड़ित के खिलाफ संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मामला दर्ज किया गया। अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया। जांच पूरी होने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 354, 294, 341 और पीओसीएसओ अधिनियम की धारा 8 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता को एफटीएससी द्वारा केवल उसकी दाखिल खारिज रजिस्टर और कक्षा 8वीं और 9वीं की मार्कशीट के आधार पर नाबालिग माना गया है, लेकिन इनमें से किसी को भी साबित नहीं किया गया है।
कानून के अनुसार, अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया है कि किस दस्तावेज़ के आधार पर उक्त जन्म तिथि यानी 15 जून 2005 को स्कूल रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था, जबकि पीड़िता के पिता ने जिरह में कहा है कि पीड़िता का जन्म वर्ष 2003 है। इसके बावजूद, एफटीएससी ने उसे नाबालिग माना है। अपीलकर्ता पर आरोप है कि उसने पीड़िता का हाथ पकड़कर और "आई लव यू" कहकर यौन उत्पीड़न किया, जबकि "आई लव यू" कहना स्वयं पीओसीएसओ अधिनियम की धारा 7 में यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं है।
राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए विधि अधिकारी ने कहा कि पीड़िता, उसकी बहन और उसकी सहेली, जो घटना स्थल पर मौजूद थीं, ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अपीलकर्ता ने न केवल पीड़िता को गंदी भाषा में अपशब्द कहे बल्कि यौन इरादे से उसका हाथ भी पकड़ा। पीड़िता और उसकी बहन ने स्पष्ट रूप से साबित किया है कि अपीलकर्ता पीड़िता से "आई लव यू" कह रहा था और इस प्रकार उसका यौन उत्पीड़न कर रहा था, इसलिए अपीलकर्ता के दोषसिद्धि का निर्णय रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उचित है, अतः अपील खारिज की जानी चाहिए।
पीड़िता घटना के वक्त नाबाालिग थी, यह सिद्ध नहीं, स्पेशल कोर्ट के फैसले को किया रद्द
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना के दिन पीड़िता नाबालिग थी। एफटीएससी ने पीड़िता को उसके दाखिल खारिज रजिस्टर (प्रदर्श पी-5-सी) और कक्षा 8वीं और 9वीं की मार्कशीट के आधार पर नाबालिग माना है, जिसमें उसकी जन्मतिथि '15 जून 2005' दर्ज है। पीड़िता ने भी अपनी जन्मतिथि '15 जून 2005' बताई है, लेकिन उसकी मां, बहन और पिता ने उसकी जन्मतिथि नहीं बताई है। बल्कि, उसकी मां और पिता के अनुसार, सितंबर/अक्टूबर 2021 में उनके बयान दर्ज कराते समय पीड़िता की उम्र 16 वर्ष थी। जांच के दौरान, पीड़िता की मार्कशीट दिखाए जाने पर, जब उसके पिता ने बताया पीड़िता का जन्म वर्ष 2003 था, जबकि उसकी मार्कशीट और स्कूल रिकॉर्ड में उसका जन्म वर्ष '2005' दर्ज है। इस प्रकार, पीड़िता के जन्म वर्ष के संबंध में उपरोक्त विरोधाभासी तथ्यों से यह संदेह से परे सिद्ध नहीं किया जा सकता कि पीड़िता के स्कूल रिकॉर्ड में दर्ज जन्म तिथि '15 जून 2005' उसकी सही जन्म तिथि है। इसके अलावा, यह भी सिद्ध नहीं हुआ है कि पीड़िता की जन्म तिथि किस दस्तावेज के आधार पर स्कूल रिकॉर्ड में दर्ज की गई है। इसलिए, घटना की तिथि पर पीड़िता को नाबालिग मानने का एफटीएससी का निर्णय मान्य नहीं है। कोर्ट ने कहा, अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि पीड़िता घटना की तिथि पर नाबालिग थी। अतः, घटना की तिथि पर पीड़िता को नाबालिग मानने का एफटीएससी का निर्णय रद्द किया जाता है। चूंकि एफटीएससी द्वारा यह निष्कर्ष कि घटना की तारीख को पीड़िता नाबालिग थी, पहले ही रद्द किया जा चुका है, इसलिए पीओसीएसओ अधिनियम की धारा 8 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा टिकाऊ नहीं है।
स्पेशल कोर्ट के फैसले पर हाई कोर्ट ने ये कहा
मामले की सुनवाई जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि पीओसीएसओ अधिनियम की धारा 8 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है, क्योंकि अभियोजन पक्ष घटना के दिन पीड़ित को नाबालिग साबित करने में विफल रहा है। लेकिन एफटीएससी ने आईपीसी की धारा 354 के तहत उसे दोषी ठहराने में कोई गलती नहीं की है। अतः इसे बरकरार रखा जाता है।
एफटीएससी ने आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता, आरोपी को 3 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई, जो मामले के तथ्यों के अनुपातहीन प्रतीत होती है, क्योंकि उसने केवल पीड़िता का हाथ पकड़ा और I LOVE YOU कहते हुए उसे अपनी ओर खींचा। इसके अलावा उसने कोई अन्य आपत्तिजनक कृत्य नहीं किया था। घटना के समय अपीलकर्ता 19 वर्ष का युवक था। इसलिए, अपीलकर्ता को 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा को बरकरार रखने के बजाय, न्यायसंगत यही होगा कि उसकी सजा को 3 वर्ष के कठोर कारावास से घटाकर 1 वर्ष के कठोर कारावास कर दिया जाए।
FTC के तीन साल के फैसले को रद्द कर सुनाया एक साल का कठोर कारावास
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, यह अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। पीओसीएसओ अधिनियम की धारा 8 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराया जाना और एफटीएससी द्वारा विवादित फैसले के तहत दी गई सजा रद्द की जाती है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 354 के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि उक्त अपराध के लिए एफटीएससी द्वारा विवादित फैसले के तहत दी गई 3 साल की कठोर कारावास की सजा में संशोधन किया जाता है और उसे एक साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई जाती है।
याचिकाकर्ता को सरेंडर करने का आदेश
कोर्ट ने कहा अपीलकर्ता जमानत पर है। उसे निर्देश दिया जाता है कि वह संबंधित न्यायालय के समक्ष तुरंत आत्मसमर्पण करे और यदि कोई शेष कारावास की सजा बाकी हो तो उसे भुगते। संबंधित एफटीएससी का रिकॉर्ड, इस फैसले की एक प्रति सहित, अनुपालन और आवश्यक कार्रवाई के लिए तुरंत वापस भेजा जाए।