Bilaspur High Court: कर्मचारी की मृत्यु के लंबे समय बाद नहीं दी जा सकती अनुकंपा नियुक्ति: हाई कोर्ट ने कहा- मृतक कर्मचारी परिवार को तत्काल वित्तीय राहत पहुंचाना है इसका उद्देश्य...

Bilaspur High Court: अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच का महत्वपूर्ण फैसला आया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय राहत प्रदान करना होता है। लंबे समय बाद नियुक्ति के लिए दावा करना इसके उद्देश्य को विफल करता है। कर्मचारी की मृत्यु के लंबे समय बाद अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

Update: 2025-11-14 13:32 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच का महत्वपूर्ण फैसला आया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय राहत प्रदान करना होता है। लंबे समय बाद नियुक्ति के लिए दावा करना इसके उद्देश्य को विफल करता है। कर्मचारी की मृत्यु के लंबे समय बाद अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

याचिकाकर्ता स्मृति वर्मा ने अनुकंपा नियुक्ति की मांग को लेकर दायर याचिका में बताया कि उसकी मां विकासखंड शिक्षा अधिकारी, गरियाबंद के अधीन सहायक शिक्षिका के पद पर कार्यरत थीं। 09 दिसंबर 2000 को सेवाकाल के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उस समय वह नाबालिग थी। याचिकाकर्ता ने बताया कि वर्ष 2015 में वयस्क हो गई। 05 अगस्त 2015 को उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। विभाग ने 29 अगस्त 2017 के आदेश द्वारा इस आवेदन अस्वीकार कर दिया।

शिक्षा विभाग के इस आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने शिक्षा विभाग के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा, अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य आकस्मिक संकट से निपटने के लिए तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 15 वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद यह उद्देश्य समाप्त हो गया। सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए स्मृति वर्मा ने डिवीजन बेंच में यााचिका दायर की। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए कहा, प्राधिकारियों ने 2003 की अनुकंपा नियुक्ति नीति को गलत तरीके से लागू किया। वर्ष 2000 में उसकी मां की मृत्यु के समय लागू नीति 1994 की नीति थी।

क्या है 1994 की नीति

1994 की नीति आश्रित को वयस्क होने पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने की अनुमति देती थी। इसलिए 2015 में उसका आवेदन समय पर था। यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता और उसके भाई-बहनों को उनकी मां की मृत्यु के तुरंत बाद उनके पिता ने छोड़ दिया था। उन्हें अपनी वृद्ध नानी के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे परिवार आर्थिक संकट में पड़ गया।

मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का उद्देश्य सेवाकाल के दौरान मृत्यु को प्राप्त होने वाले सरकारी कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। यह उन्हें आकस्मिक संकट से उबरने में सक्षम बनाता है। यह मानवीय दृष्टि से प्रदान किया जाता है। न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता की मां का निधन 09 दिसंबर 2000 को हुआ था और अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन काफी समय बीत जाने के बाद 05 अगस्त 2015 को प्रस्तुत किया गया था। न्यायालय ने यह माना कि इस तरह की अत्यधिक देरी तत्काल कठिनाई को दूर करने के उद्देश्य को ही विफल कर देती है।

इसलिए दी जाती है अनुकंपा नियुक्ति

डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए लिखा है कि अनुकंपा नियुक्ति रोजगार के सामान्य नियम का अपवाद है। इसका उद्देश्य केवल उस सरकारी कर्मचारी के परिवार की सहायता करना है, जिसकी सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है और जो आर्थिक संकट में फंस जाता है। इसका उद्देश्य तत्काल राहत प्रदान करना और परिवार को अचानक आए संकट से उबरने में मदद करना है, न कि मृतक के समकक्ष नौकरी प्रदान करना।

इसलिए नहीं माना जा सकता आश्रित

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा, दावेदार को कई वर्षों के बाद मृतक कर्मचारी का आश्रित नहीं माना जा सकता है। इतनी लंबी अवधि के बाद नियुक्ति प्रदान करना नीति के उद्देश्य और प्रयोजन के विपरीत है। डिवीजन बेंच ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक की मृत्यु की तिथि से कुछ वर्षों के बाद भर्ती का स्रोत बनना नहीं है।

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