Bilaspur High Court: NIT को हाई कोर्ट से झटका: पढ़िये रजिस्ट्रार की नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट क्या कहा
Bilaspur High Court: हाई कोर्ट ने एनआइटी के आदेश को किया खारिज, याचिकाकर्ता डा खान को मिली राहत. एनआइटी रायपुर द्वारा रजिस्ट्रार के पद से हटाए जाने के खिलाफ डा आरिफ खान ने हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका.
NIT Raipur: बिलासपुर। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान एनआइटी के उस आदेश को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने रजिस्ट्रार के पद से डॉ आरिफ खान की सेवा समाप्त कर दी थी। हाई कोर्ट ने एनआइटी के आदेश को रद्द करने के साथ ही यााचिकाकर्ता को छूट दी है कि वे अपनी सेवा के लिए संस्थान का चुनाव कर सकते हैं। वर्तमान में डा खान कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय, भारत सरकार में वित्त अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।
याचिकाकर्ता ने डा आरिफ खान ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), रायपुर के निदेशक द्वारा 23 फरवरी 2023 को पारित आदेश को चुनौती दी है, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता को संस्थान के रजिस्ट्रार पद पर बनाए रखने का निर्णय नहीं लिया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि विवादित आदेश मनमाने, सनकी और अनुचित तरीके से, बिना किसी कानूनी अधिकार के पारित किया गया है। इसलिए यह अवैध, शून्य और निरस्त किए जाने योग्य है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि उक्त कार्रवाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम, 2007 और रजिस्ट्रार की नियुक्ति और पद पर बने रहने से संबंधित वैधानिक नियमों के प्रावधानों के साथ-साथ इस क्षेत्र में लागू कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है। विवादित आदेश संस्थान के प्रभारी निदेशक की 21 फरवरी 2023 को हुई बैठक के अनुसरण में जारी किया गया है, जिसमें याचिकाकर्ता को न तो बुलाया गया और न ही उसे सुनवाई का कोई अवसर दिया गया। यह निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पूर्णतः उल्लंघन करते हुए लिया गया है। याचिकाकर्ता ने विवादित आदेश को रद्द कररने की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रायपुर के रजिस्ट्रार ने 24 जनवरी 2020 को रजिस्ट्रार के एक रिक्त पद के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए एक विज्ञापन जारी किया। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण भर्ती प्रक्रिया में विलंब हुआ; हालांकि, एक विधिवत गठित चयन, भर्ती समिति का गठन किया गया, जिसमें एनआइटी रायपुर के निदेशक, एनआइटी जमशेदपुर के एक प्रोफेसर, एनआइटी जालंधर के रजिस्ट्रार, रायपुर के एक सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता शामिल थे।
विज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि भर्ती, भर्ती नियम, 2019 के अनुसार होगी, जो इसके साथ संलग्न थे। उक्त चयन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता को 22.फरवरी 2021 के आदेश द्वारा एनआइटी रायपुर के रजिस्ट्रार पद पर नियुक्त किया गया और उन्होंने 24 फरवरी .2021 को कार्यभार ग्रहण किया। यह नियुक्ति भर्ती नियम, 2019 के अनुसार की गई थी। जिसमें यह प्रावधान है कि रजिस्ट्रार का पद निर्धारित शर्तों के अधीन पांच वर्ष की निश्चित अवधि के लिए भरा जाना है। याचिकाकर्ता ने पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया और उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा।
25. फरवरी 2022 को आयोजित बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की 52वीं बैठक में इस मामले की समीक्षा की गई। याचिकाकर्ता, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी होने के नाते, बैठक में केवल अनुमत सीमा तक ही उपस्थित रहे और उसके बाद जब उनके प्रदर्शन पर विचार किया गया तो उन्होंने स्वयं को बैठक से अलग कर लिया। उक्त बैठक में, एजेंडा में याचिकाकर्ता के प्रदर्शन की समीक्षा करना और उनके कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से पांच वर्ष की अवधि के लिए उनकी नियुक्ति की पुष्टि करना शामिल था।
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने उचित विचार-विमर्श के बाद याचिकाकर्ता के प्रदर्शन को संतोषजनक पाया और अध्यक्ष द्वारा दी गई स्वीकृति का अनुमोदन करते हुए उनकी नियुक्ति की पुष्टि करने का संकल्प लिया। यद्यपि बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के उपरोक्त निर्णय की सूचना याचिकाकर्ता को 10 मार्च 2022 के पत्र द्वारा दी गई थी, फिर भी राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रायपुर द्वारा याचिकाकर्ता की पांच वर्ष की निश्चित अवधि के लिए नियुक्ति की पुष्टि या विस्तार करने का कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं किया गया, जबकि भर्ती नियम, 2019 और एनआइटी नियमों के खंड 21(1) के तहत स्पष्ट रूप से यह प्रावधान है कि रजिस्ट्रार की नियुक्ति प्रतिनियुक्ति या संविदा आधार पर अधिकतम पांच वर्ष की निश्चित अवधि के लिए की जाएगी। औपचारिक नियुक्ति आदेश जारी न होने से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने 11. मार्च 2022 को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। याचिकाकर्ता का कहना है कि देश भर के विभिन्न राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में, जिनमें एनआईटी श्रीनगर और एनआईटी सूरत शामिल हैं, रजिस्ट्रारों की नियुक्ति वैधानिक प्रावधानों के अनुसार पांच वर्ष की निश्चित अवधि के लिए की गई है, जो दर्शाता है कि एक अलग और भेदभावपूर्ण मापदंड अपनाया गया है।
याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान, एनआईटी रायपुर के कुछ व्यक्तियों द्वारा उनकी नियुक्ति के संबंध में कुछ शिकायतें की गईं; हालांकि, भर्ती समिति के अध्यक्ष और संस्थान ने इन शिकायतों की विधिवत जांच की गई और उनका जवाब दिया गया, और यह कभी नहीं पाया गया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति अनियमित या अवैध थी। याचिकाकर्ता की सेवाएं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम, 2007, वर्ष 2009 में इसके अंतर्गत निर्मित नियमों और भर्ती नियमों, 2019 द्वारा शासित हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से रजिस्ट्रार की नियुक्ति पांच वर्ष की निश्चित अवधि के लिए की जाती है और संस्थान के भीतर उसके कर्तव्यों, शक्तियों और स्थिति को परिभाषित किया गया है। इस स्पष्ट वैधानिक ढांचे के बावजूद, याचिकाकर्ता को मनमाने और भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार हुए।
मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। सिंगल बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि बाद की नियुक्ति को देखते हुए, इस न्यायालय का यह सुविचारित मत है कि याचिकाकर्ता को एनआइटी रायपुर के रजिस्ट्रार पद पर पुनः नियुक्त करने या पद पर बने रहने के लिए परमादेश जारी करने से अब कोई लाभ नहीं होगा। साथ ही, विवादित आदेश की वैधता पर विचार करना आवश्यक है ताकि याचिकाकर्ता को कोई परेशानी न हो और इस मामले का विधिवत निपटारा हो सके। लिहाजा 23 फरवरी.2023 के विवादित आदेश के संबंध में निर्देश और टिप्पणियों के साथ रिट याचिका का निपटारा किया जाता है। आदेश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन और प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर रद्द किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि, यह स्वीकार किया गया है कि याचिकाकर्ता को पहले ही कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय, भारत सरकार में वित्त अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जा चुका है और वह इस पद पर कार्यरत हैं, इसलिए एनआइटी रायपुर के रजिस्ट्रार पद पर उनकी बहाली या निरंतरता के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जाता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिकाकर्ता को अपनी सेवा देने के लिए स्वतंत्र स्थान होगा। यदि याचिकाकर्ता अपने वर्तमान पद पर बने रहने का विकल्प चुनते हैं, तो इस निर्णय को उन्हें एनआइटी रायपुर में पुनः शामिल होने के लिए बाध्य करने के रूप में नहीं माना जाएगा। इसके विपरीत, यदि याचिकाकर्ता कानून के अनुसार किसी भी परिणामी लाभ का लाभ उठाना चाहते हैं, तो सक्षम प्राधिकारी द्वारा लागू नियमों और वैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही उस पर विचार किया जाएगा। इस आदेश के साथ ही याचिका को निराकृत कर दिया है।