Bilaspur High Court: गैर अनुदान प्राप्त शिक्षा संस्थानों और सरकार के बीच हाई कोर्ट ने खींची लक्ष्मण रेखा

Bilaspur High Court: गैर अनुदान प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों की याचिका पर सुनवाई करते हुये हाई कोर्ट ने मैनेजमेंट व स्टेट कोटा को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट के फैसले से संस्थानों को राहत मिली है। पढ़िए हाई कोर्ट ने राज्य शासन को क्या नहीं करने कहा है।

Update: 2024-09-26 04:04 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डीविजन बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में गैर अनुदान प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थानों के लिए बनाये गए छत्तीसगढ़ आयुष स्नातक पाठ्यक्रम प्रवेश के संबंधित नियम को अवैध ठहरा दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार अब इन संस्थानों में

मैनेजमेंट व स्टेट कोटा नही तय कर सकती

निजी गैर अनुदान प्राप्त तकनीकी शैक्षणिक संस्थानों की याचिका पर सुनवाई करते हुए डीविजन बेंच ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने गैर अनुदान प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं में स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए मैनेजमेंट और राज्य सरकार के बीच कोटा निर्धारित करने के नियम को अवैध ठहरा दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने छत्तीसगढ़ आयुष स्नातक पाठ्यक्रम प्रवेश नियम के उप-नियम (1) के खंड (घ) के उप-खंड (i) को नियमविरुद्ध ठहराया है।

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पीएम इनामदार और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट द्वारा डॉ. अदिति जैन के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए संबंधित नियम को अल्ट्रा वायरस घोषित किया है। साथ ही गैर अनुदान प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में BAMS पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नए नियम निर्धारित करने के निर्देश दिए हैं।

गौर अनुदान प्राप्त है संस्थान

महावीर कॉलेज ऑफ आयुर्वेदिक साइंस, राजनांदगांव समेत अन्य शैक्षणिक संस्थानों अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से बीते साल छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर की थी। हालांकि सभी याचिकाओं पर हाई कोर्ट में एकसाथ सुनवाई हो रही है।

याचिकाकर्ता संस्थानों ने अपनी याचिका ने बताया है कि वर्ष 2017 में संस्था की स्थापन की गई है। यह गैर सहायता प्राप्तअल्पसंख्यक संस्थान है। कॉलेज में बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी की पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने सीजी आयुष स्नातक पाठ्यक्रम प्रवेश नियम 2023 के नियम 4 (1) (डी) (आई) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों में कोटा तय किया है।

सुप्रीम कोर्ट जे फैसले का दिया हवाला

याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने डीविजन बेंच में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न मामलों में दिए गए निर्णय के खिलाफ है इसलिए राज्य सरकार तय नहीं कर सकती कोटा। याचिका के अनुसार इससे पहले राज्य में सीजी आयुष स्नातक पाठ्यक्रम प्रवेश नियम 2019 लागू था। जिसमें अल्पसंख्यक संस्थानों को ऐसे कोटे से बाहर रखा गया था। इस दौरान नीट- यूजी के नतीजों के आधार पर अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश दिए जाते थे। याचिका के अनुसार डेंटल या मेडिकल कॉलेजों में ऐसा कोटा तय नहीं किया गया है। केवल आयुष पाठ्यक्रम में शिक्षा देने वाली अल्पसंख्यक संस्थानों में ऐसा कोटा तय किया गया है। इसके अलावा, राज्य सरकार को बच्चों के निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों में कोटा तय करने का अधिकार नहीं है।

60 सीटों नियमों में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी

याचिकाकर्ता संस्थानों ने हाई कोर्ट को बताया है कि कॉलेज में 60 सीटें हैं। जिनमें से 15 फीसद सीटें, यानी 9 सीटें अखिल भारतीय कोटे के लिए हैं। शेष 51 सीटों में से 50 फीसद सीटें जैन अल्पसंख्यक के लिए हैं। शेष 50 प्रतिशत सीटें अन्य पात्र उम्मीदवारों के लिए हैं।

85 फीसद सीटों में से 50 फीसद में राज्य के छात्रों को देना था प्रवेश

केंद्र सरकार की प्रवेश नियम, 2023 के नियम 4(1) (ए) के अनुसार कुल सीटों का 85 प्रतिशत कोटा तय है। प्रवेश नियम, 2023 के नियम 4(1) (डी) (आई) के अनुसार इस कोटे की 85 प्रतिशत में से 50 फीसद सीटें स्थानीय अल्पसंख्यक छात्रों, यानी छत्तीसगढ़ के जैन समुदाय से भरी जानी हैं। बाकी 50 फीसद सीटें छत्तीसगढ़ राज्य के लिए तैयार की गई सामान्य मेरिट सूची से भरी जानी हैं।

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