Bilaspur High Court: नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति नहीं...हाई कोर्ट ने कहा- भ्रूण हत्या स्वीकार नहीं, बच्चे को देना होगा जन्म

Bilaspur High Court:

Update: 2024-08-29 04:10 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर। रेप पीडिता नाबालिग और माता पिता की ओर से एबॉर्शन कराने की मांग को लेकर दायर याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि भ्रूणहत्या नैतिक और ना ही कानूनी रूप से स्वीकार्य है। अभिभावकों और रेप पीड़िता को छूट दी है कि बच्चे के जन्म के बाद चाहे तो झूला घर या किसी को गोद दे सकते हैं।

हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देशित किया है कि पीड़िता की सुरक्षित डिलीवरी कराने अस्पताल में भर्ती कराने और राशि शासन के खजाने से वहन करें। एबॉर्शन की मांग को लेकर पीड़ित और परिजनों की याचिका पर कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से जांच के बाद रिपोर्ट पेश करने कहा था। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि, टर्मिनेशन की स्थिति में जोखिम कितना रहेगा। क्या यह सुरक्षित होगा। कोर्ट के आदेश के बाद मेडिकल बोर्ड ने पीड़िता के स्वास्थ्य परीक्षण और गर्भ में पल रहे शिशु की स्थिति की पूरी मेडिकल रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। रिपोर्ट में बताया है कि भ्रूण समय से पहले जीवन के अनुकूल है और इसमें कोई जन्मजात विसंगति नहीं है। इस समय एबॉर्शन कराना पीड़िता के लिए जोखिम भरा होगा।

मेडिकल बोर्ड ने गर्भावस्था जारी रखने और बच्चे को जन्म देने की सलाह दी है।

रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने नाबालिग पीड़ित द्वारा अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने पेश की गई याचिका खारिज कर दी है।

कोर्ट की सामने आई संवेदनशीलता

कोर्ट ने यह भी कहा कि, बलात्कार की नाबालिग पीड़िता को एक बच्चे को जन्म देना है। राज्य सरकार को सभी आवश्यक व्यवस्था करने और पीड़िता के प्रसव के दौरान अस्पताल में भर्ती कराने और अभिभावकों के माध्यम से सभी खर्चों को वहन करने का निर्देश स्वास्थ्य विभाग को दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा यदि नाबालिग पीड़िता और उसके माता-पिता प्रसव के बाद बच्चे को गोद देना चाहते हैं, तो राज्य सरकार इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने कानून के प्रावधानों के अनुसार सभी आवश्यक कदम उठाएगी।

क्या है मामला

राजनांदगांव जिले के थाने डोंगरगढ़ में दर्ज अपराध के अनुसार आरोपी ने नाबालिग के साथ रेप किया जिससे वह गर्भवती हुई । इसी प्रेगनेंसी को ही टर्मिनेट करने के लिए याचिका दाखिल की गई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता को मेडिकल परीक्षण के लिए सरकारी अस्पताल भेजा गया, जांच करने पर, डॉक्टर ने गर्भावस्था का पता लगाया और 6. जुलाई 2024 को औसत गर्भकालीन आयु 28 सप्ताह और पांच दिन थी। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच में हुई।

मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट.. Highly risk

मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की उम्र लगभग 32 सप्ताह है। गर्भावस्था को समाप्त करने से सहज प्रसव की तुलना में अधिक जोखिम होगा और गर्भावस्था को समाप्त करना जोखिम भरा रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला

जस्टिस साहू ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है। अपने फैसले में लिखा है कि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि गर्भावस्था जो 24 सप्ताह से अधिक अवधि की है, केवल तभी समाप्त किया जा सकेगा जब एमटीपी अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रदान की गई आवश्यकताएं पूरी होती हैं। एबॉर्शन का निर्णय गर्भवती पीड़िता के जीवन को बचाने के लिए किया गया हो। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दी है।

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