Bilaspur High Court: 19 एकड़ जमीन राजसात: निगम की कार्रवाई पर हाई कोर्ट ने लगाई राेक, राज्य सरकार को पक्षकार बनाने जारी किया निर्देश
Bilaspur High Court: नगर निगम ने रायपुर रोड स्थित तिफरा सेक्टर डी के पास 19 एकड़ की पॉश कॉलोनी को राजसात करने की कार्रवाई करते हुए नामांतरण के लिए एसडीएम को पत्र लिखा था। हाई कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की और पूर्व में जारी स्थगन आदेश को यथावत रखा है। हाई कोर्ट ने राज्य शासन को पक्षकार बनाने का निर्देश याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को दिया है। मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने एक सप्ताह बाद की तिथि तय कर दी है।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। नगर निगम द्वारा रायपुर रोड स्थित तिफरा सेक्टर डी के पास 19 एकड़ की पॉश कॉलोनी को राजसात कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस पर सुनवाई की और स्टे को जारी रखा है। इसके साथ ही राज्य शासन को भी इसमें पक्षकार बनाने कहा गया है। अब मामले की सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि 2003 में ले आउट पास कराया गया था और 2008 तक जमीनों की खरीदी बिक्री हुई। कालोनी अधिनियम सरकार ने 2012 में लागू किया इसलिए यह प्रावधान लागू नहीं होता। इसके साथ ही 2008 के बाद से उस जमीन पर कोई भी काम नहीं किया गया। इसलिए कालोनी अधिनियम 292-च और 292-छ लागू ही नहीं होता। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि उनकी यह जमीन 50 साल पुरानी है और निगम इसे जबरन हथियाना चाह रहा है।
यह मामला 19 एकड़ की बेशकीमती जमीन से जुड़ा है। नगर निगम ने गुरुवार सुबह कॉलोनी को राजसात करने का आदेश जारी किया था। इसके तहत राजस्व रिकॉर्ड में कॉलोनी को निगम के नाम दर्ज करने के लिए एसडीएम को भी आदेश की कॉपी भेजी गई थी। हालांकि, गुरुवार को ही हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए स्थगन आदेश जारी कर दिया। जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की सिंगल बेंच ने याचिकाएं लंबित होने के बावजूद निगम की ओर से की गई कार्रवाई पर नाराजगी जताई और तत्काल रोक लगा दी। दरअसल निगम ने कॉलोनी को राजसात करने से पहले तीन नोटिस जारी किए थे और दावा-आपत्ति मंगाई थी। दूसरी ओर कॉलोनाइजर सुरेंद्र जायसवाल ने इन तीनों नोटिसों को अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जो अभी भी लंबित हैं।
कोर्ट में प्रकरण लंबित रहने की जानकारी के बाद निगम ने की कार्रवाई
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से बताया गया कि 4 नवंबर को सुनवाई के दौरान निगम ने जवाब देने के लिए समय मांगा था। 12 नवंबर को जवाब पेश किया गया। यानी निगम को यह जानकारी थी कि मामला कोर्ट में लंबित है और 13 नवंबर को सुनवाई तय है। इसके बावजूद सुनवाई से पहले ही जमीन को राजसात करने का आदेश जारी कर दिया गया। गौरतलब है कि सेक्टर डी स्थित 19 एकड़ जमीन पर बनी कॉलोनी और प्लाटिंग को निगम ने अवैध बताया था। इसकी जांच के लिए कलेक्टर ने दस सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था। कलेक्टर गठित समिति ने छग नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 292-ग के अन्तर्गत प्राधिकृत अधिकारी प्राथमिकी दर्ज किए जाने, नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 292-च (अवैध कॉलोनी निर्माण की भूमि का प्रबंधन आयुक्त अधिग्रहित किया जाना) और 292-छ (अवैध कॉलोनी निर्माण वाली भूमि का समपहरण) के अन्तर्गत कार्रवाई प्रस्तावित करने की अनुशंसा की थी।
इन जमीनों को निगम ने किया राजसात
दावा–आपत्तियों की सुनवाई और उनका निराकरण करने के बाद, मामले के गुण-दोष को देखते हुए ग्राम तिफरा की खसरा नंबर: 1367/9, 1369/2, 1370/2, 1357, 1369/3, 1355/7, 1371, 1372/2, 1356/1, 1356/2, 1366/1, 1355/4, 1355/6, 1388, 1369/5, 1370/5, 1367/10, 1368/2, 1355/8, 1367/11, 1368/3, 1367/13, 1368/5, 1075/1ख, 1075/1ग, 1355/10, 1355/5, 1367/12, 1368/4, 1369/4, 1370/4, 1372/1कुल 19.35 एकड़ को अवैध कॉलोनी निर्माण के प्रकरण में दोषी पाते हुए कार्रवाई के लिए चुना गया। इस पूरी भूमि को छत्तीसगढ़ नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 292-च (अवैध कॉलोनी की भूमि का प्रबंधन आयुक्त को सौंपना) और धारा 292-छ (अवैध कॉलोनी की भूमि का समपहरण) के तहत निगम के प्रबंधन-अधिग्रहण में लेने के आदेश जारी किए गए।