बस्तर दशहरा 2025 : तिरिया पंचायत ने लकड़ी देने से किया मना, अब कैसे बनेगा रथ... सांसद महेश कश्यप ने क्या कहा जानिये
Bastar Dussehra 2025 : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा इस बार लगातर विवादों से घिर रहा है। 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की 600 साल पुरानी परंपरा अधर में लटकी हुई है. इस पर्व में मुख्य आकर्षण का केंद्र लकड़ियों से बनी विशालकाय 8 चक्कों का रथ होता है, इस रथ के निर्माण के लिए सबसे जरूरी लड़कियों की कटाई पर बस्तर जिले के तिरिया ग्राम पंचायत ने रोक लगा दी है.
जंगल से हर साल बेतहाशा लड़कियों की कटाई
इस पंचायत के ग्रामीणों का कहना है कि दशहरा के लिये रथ निर्माण के नाम पर जंगल से हर साल बेतहाशा लड़कियों की कटाई की जा रही है ,जिससे लगातार जंगल घट रहे है. इसलिए तिरिया पंचायत ने ग्राम सभा आयोजित कर यह निर्णय लिया है कि दशहरा रथ निर्माण के लिए तिरिया पंचायत से वनों की कटाई करने नहीं दी जाएगी. ग्राम पंचायत ने बकायदा इसकी जानकारी दशहरा समिति अध्यक्ष व बस्तर के सांसद महेश कश्यप के साथ बस्तर कलेक्टर और विधायक किरण देव को दी है.
दशहरा समिति के द्वारा 8 चक्कों के विशालकाय रथ निर्माण के लिए ढाई से तीन मीटर मोटीई वाले 80 से 100 साल तक पुराने 70 से 80 वृक्ष कटवाए जाते हैं, जंगल से 100 -130 घन मीटर लकड़ी काटकर जंगल से लाकर शहर के सिरहासार चौक में रथ का निर्माण शुरू किया जाता है ,तिरिया पंचायत के ग्रामीणों का विरोध इस बात पर है कि दशहरा के नाम पर अनावश्यक वनों की कटाई हो रही है और नये जंगल के विकास के लिए प्रशासन के पास कोई योजना नहीं है इसकी वजह से जंगल लगातार सिमटता जा रहा है.
महेश कश्यप का कहना - सिर्फ रथ निर्माण के लिए वृक्षों की कटाई से जंगल खत्म हो जाएगा ऐसा नहीं है
बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष और सांसद महेश कश्यप का कहना है कि यह अच्छी बात है कि ग्रामीण वनों की कटाई के लिए और अपने जल जंगल जमीन के प्रति काफी जागरूक है ,लेकिन सिर्फ रथ निर्माण के लिए वृक्षों की कटाई से जंगल खत्म हो जाएगा ऐसा नहीं है, बस्तर की यह पुरानी परंपरा है, इस मामले में जरूर तिरिया पंचायत के ग्रामीणों से बातचीत की जाएगी, वहीं सांसद ने कहा कि पिछले 2 सालों से दशहरा वन का चयन भी किया गया है, जहां समिति के द्वारा पौधारोपण भी किया जाता है, आने वाले समय में जरूर इसका फायदा भी मिलेगा, फिलहाल तिरिया पंचायत के ग्रामीणों से बातचीत की जाएगी और 600 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन जरूर किया जाएगा.