Chhattisgarh Tarkash 2024: अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय दीक्षित का निरंतर 15 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2024-09-15 00:15 GMT

तरकश, 15 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

अमीर छत्तीसगढ़, गरीब मध्यप्रदेश!

काम-धाम, वर्क कल्चर और तरक्की के मामले में मध्यप्रदेश भले ही छत्तीसगढ़ से आगे हो मगर करप्शन के रेट में काफी पीछे है। शुक्रवार की की ही बात है...मउगंज के अपर कलेक्टर पांच हजार रिश्वत लेते पकड़े गए। जमीन बंटवारे के केस में फैसला देने के लिए उन्होंने 20 हजार मांगा और पांच हजार लेते ट्रेप हो गए। जबकि, उससे एक दिन पहले छत्तीसगढ़ की एसीबी ने बाबू को एक लाख रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ा था। अब आप समझ सकते हैं...छत्तीसगढ़ का बाबू एक लाख और एमपी में एडिशनल कलेक्टर पांच हजार...। दरअसल, सूबे में करप्शन का लेवल इतना बढ़ गया है कि बिना पैसे के आप वाजिब काम की भी कल्पना नही ंकर सकते। मुलाजिमों को छोड़िये...ठेका, सप्लाई में कई मंत्री 35 परसेंट के रेट से नीचे जाने तैयार नहीं। रमन और भूपेश सरकार में दो-एक मंत्रियों ने अपने खर्चे को देखते रेट 35 से 40 फीसदी तक बढ़ा दिया था, इस समय भी कुछ मंत्री पुराने रेट को कम करने तैयार नहीं।

जेलों में जगह नहीं

एमपी में 5 हजार रुपए के चक्कर में मउगंज के अपर कलेक्टर के निबट जाने की खबर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोगों ने खूब मौज ली। एक ने लिखा, छत्तीसगढ़ में अगर पांच हजार रिश्वत वालों को पकड़ना शुरू कर दिया जाए तो जेलों में जगह कम पड़ जाएगी...वैसे भी छत्तीसगढ़ की जेलों में क्षमता से दोगुने, तीगुने कैदी हैं। किसी ने लिखा...सरकार को नए जेल बनवाने पड़ेंगे। देर रात एसीबी के एक अफसर ने भी चुटकी ली...पांच हजार रुपए वालों को हमलोग चाय-पानी का खर्चा मान छोड़ देते हैं, ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करते। जाहिर है, विष्णुदेव से फ्री हैंड मिलने के बाद छत्तीसगढ़ की एसीबी इस समय फुल मोड में है। छह महीने में 35 अधिकारियों, कर्मचारियों को जेल भेज चुकी है। इनमें एसडीएम से लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और टीआई, एसआई तक शामिल हैं।

मंत्रियों को मर्यादा की पाठ

कई मंत्रियों की कारगुजारियों से छत्तीसगढ़ सरकार की छबि को लेकर अच्छे संदेश नहीं जा रहे हैं। लिहाजा, संगठन मंत्री पवन साय को मंत्रियों को मर्यादा को याद दिलाना चाहिए। क्योंकि, ये आवश्यक नहीं कि जो मुख्यमंत्री करें, वो मंत्री भी करने लगें। मुख्यमंत्री निवास में तीजा महोत्सव मना तो एक मंत्रीजी ने भी अपने सरकारी बंगले में धूमधाम से तीज उत्सव का आयोजन कर डाले। मुख्यमंत्री किसी मंत्री के इलाके में जाए और वहां के मंत्री उस कार्यक्रम से गोल रहे तो ये सीधे-सीधे प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। ये तो हुई अदब और प्रोटोकॉल की बात। करप्शन में दो-तीन मंत्री पिछली सरकारों के अपने भाइयों को पीछे छोड़ दिए हैं। ट्रांसफर में मुलाजिमों के पास मंत्रियों के करिंदों के फोन जा रहे...कुर्सी पर टिके रहना है तो इतना पेटी पहुंचा दो। अगर पैसे देने में इधर-उधर किए तो फिर तबादला। सीधे तौर पर कहें तो पोस्टिंग की बोली लग रही है। रेट भी बेहद हाई। सरकार की सेहत के लिए ये ठीक नहीं। मुख्यमंत्री गुड गवर्नेंस के लिए दो दिन सर्किट हाउस में कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों की क्लास लेते रहे मगर मंत्रियों को इससे कोई वास्ता नहीं। उन्हें चाहिए सिर्फ पेटी। पवन साय जी को थोड़ा कड़क होना पड़ेगा, जरूरी हुआ तो डंडे भी चलाएं...क्योंकि मोदी की गारंटी और विष्णु के सुशासन के लिए इस टाईप के मंत्रियों को टाईट करने रखना होगा।

टी ब्रेक केंसिल

कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएम विष्णुदेव साय ने एक चीज स्पष्ट कर दिया कि काम नहीं करोगे तो उसके जिम्मेदार आप होगे...गड़बड़ी करने वालों को आप जेल नहीं भेजोगे तो हम कार्रवाई करेंगे। जाहिर है, सीएम ने कलेक्टर-एसपी को बड़ा टास्क दे दिया है। डीएम-एसपी के पद को सिर्फ पैसा कमाने का जरिया समझने वालों को इससे मायूसी हुई होगी। बता दें, दो दिन के कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस को सीएम ने इतना इम्पॉर्टेंस दिया कि दो दिन वे वहां से हिले नहीं। प्रोग्राम में दोनों दिन टी ब्रेक था, सीएम ने उसे रोकवा दिया। बोले, चाय की जरूरत नहीं। लिहाजा, अफसरों को भी चाय का ब्रेक नहीं मिल पाया। सीएम ने दोनों दिन सर्किट हाउस में ही खाना खाया। जबकि, चार कदम पर सीएम हाउस है। सबसे अहम बात कलेक्टर-एसपी से आई कंटेक्ट। किसी भी अफसर के प्रेजेंटेशन को उन्होंने अनसूना नहीं किया। पूरे समय उन्होंने रिस्पांस दिया और प्रेजेंटेशन देने वाले अफसर को सुनते रहे। कलेक्टर्स, एसपी को अब डर सता रहा कि सीएम साब ने इतना ध्यान से उनके प्रेजेंटेशन को सुना है तो अगली बार अगर कोई चूक हुई तो फिर क्या होगा?

अधिकारियों, कर्मचारियों का डेटा

नगरीय प्रशासन विभाग ने इस हफ्ते एक ऐसे कार्यपालन अभियंता का ट्रांसफर कर दिया, जिसका फरवरी में रिटायरमेंट है। उसे कोरबा से बिलासपुर ट्रांसफर किया गया। आमतौर पर ट्रांसफर से छह महीने पहले ट्रांसफर नहीं किया जाता। फिर नगर निगमों के मुलाजिम मूल पदास्थापना से ही रिटायर होते हैं। ईई का मूल पोस्टिंग कोरबा है। और इसी आधार पर ट्रांसफर के तीसरे दिन ही बिलासपुर हाई कोर्ट से उन्हें स्टे मिल गया। छत्तीसगढ़ सरकार को गुड गवर्नेंस के प्रयासों के बीच कर्मचारियों और अधिकारियों का एक डेटा तैयार कराना चाहिए। ताकि, मालूम रहे कि किसका कब रिटायरमेंट है, उसकी मूल पोस्टिंग कहां है। वरना, इस तरह तबादले से विभागों के साथ ही सरकार की छबि धूमिल होती है।

नया ट्रांसफर मॉडल

पिछले महीने पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने सरकारी खजाने को डेढ़ करोड़ का चूना लगाने के मामले में तीन रजिस्ट्री अधिकारियों को सस्पेंड किया था। इस कार्रवाई के खिलाफ पंजीयन अधिकारियों ने प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत हड़ताल पर उतरने की तैयारी कर लिया था। मगर इस बार कोई मौका नहीं मिला। तीन दिन की छुट्टी शुरू होने के दिन पंजीयन विभाग ने 60 अधिकारियों, कर्मचारियों को एक झटके में बदल दिया। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग के सारे स्टाफ हटा दिए गए। इससे पहले हाई कोर्ट में केवियेट दायर हो चुका था। ट्रांसफर के कुछ घंटे के भीतर उसी दिन सभी को रिलीव कर दिया गया। ठीक ही कहा गया है...सरकार, सरकार होती है।

7 दिन का टाईम क्यों?

मध्यप्रदेश बड़ा राज्य था। ग्वालियर से लेकर दंतेवाड़ा और जशपुर तक। इसलिए वहां अधिकारियों, कर्मचारियों के ट्रांसफर में कार्यभार ग्रहण करने के लिए सात दिन का टाईम दिया जाता था। छत्तीसगढ़ में भोपालपटनम से बलरामपुर भी सुबह निकलकर शाम तक पहुंचा जा सकता है। नई ज्वाईनिंग के लिए सात दिवस का समय दिए जाने से होता ये है कि अधिकांश तबादलों पर स्टे मिल जा रहा। ट्रांसफर आदेश निकलते ही लोग बिलासपुर में अपने परिचित वकील को फोन लगाते हैं और अगली सुबह पहुंचकर वहां अर्जी दाखिल हो जाती है। एमपी के समय जबलपुर हाई कोर्ट था। तब रोड कनेक्टिविटी भी पुअर रहा। इसलिए, वहां जाने के पहले सोचना पड़ता था। बहरहाल, जानकारों का कहना है कि छोटे राज्य में ज्वाईनिंग के लिए तीन दिन का टाईम काफी है। मगर यह भी सही है कि ट्रांसफर के पीछे किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।

देर आए दुरुस्त आए

रायपुर कलेक्टर रहे डॉ0 सर्वेश भूरे को सरकार ने जलग्रहण मिशन का सीईओ बनाया है। सर्वेश के पास नौ महीने से अल्पज्ञात विभाग था...राज्य निर्वाचन आयुक्त के सचिव का। चलिये, देरी से हुआ मगर सरकार ने उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। करीब 25 हजार करोड़ के जलग्रहण मिशन के तहत घर-घर को नलजल से जोड़ने की योजना है। सरकार का बेहद फोकस वाला यह मिशन है।

बड़ा फैसला

हाल में आईएएस अफसरों के फेरबदल में सरकार ने एसीएस ऋचा शर्मा को खाद्य विभाग की कमान सौंपी है। उनके पास फॉरेस्ट भी रहेगा। ऋचा पहले भी खाद्य विभाग संभाल चुकी है। छत्तीसगढ़ में राईस माफियाओं पर अंकुश लगाने में उनका अहम योगदान रहा है। कई बड़े-बड़े नाम वाले फूड सिकरेट्री जो नही ंकर पाए, उसे ऋचा ने किया था। वैसे भी, देखा गया है कि कई मामलों में लेडी अफसर माफिया तंत्र पर भारी पड़ जाती है। सामने अगर तेज महिला अफसर है तो बड़े रसूखदार लोग भी पांव पीछे खींच लेते हैं। अब सरकार ने दूसरी बार ऋचा को फूड की कमान सौंपी है तो कुछ तो बात होगी। हो सकता है कि पिछली सरकार में मिलिंग चार्ज तीगुना किया गया था, उसे कम किया जाए। मिलिंग चार्ज का करोड़ों रुपए राईस मिलरों की जेब में जा रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री के जोरु का भाई ट्रांसफर का खाता-बही लेकर काउंटर खोल दिया है?

2. वास्तव में अभी लाल बत्ती दी जाएगी या फिर अफवाहें फैलाई जा रही?

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