Chhattisgarh News: हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा-परिसीमन का आधार क्या है, जानिये.. सरकार की तरफ से कोर्ट क्या दी गई जानकारी
Chhattisgarh News: नगर निगम वार्ड परिसीमन के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को दूसरे दिन भी हुई सुनवाई। एक सप्ताह बाद सभी आधा दर्जन याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
Chhattisgarh News: बिलासपुर। नगर निगम बिलासपुर के वार्डों के परिसीमन के विरोध में दायर याचिका पर जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। कोर्ट ने राज्य शासन के अधिवक्ता से पूछा कि निकाय चुनाव के लिए वार्डों का परिसीमन किस आधार पर किया जा रहा है। मूल आधार क्या है। राज्य शासन के अधिवक्ता ने बताया जनगणना के आधार पर ही परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बिलासपुर नगर निगम के अफसरों पर आरोप लगाते हुए कि निगम के अफसर विस्थापन को आधार बना रहे हैं। वार्ड परिसीमन के विरोध में दायर आधा दर्जन याचिकाओं की अब इसी याचिका के साथ सुनवाई होगी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य शासन द्वारा परिसीमन के लिए विस्थापन को आधार बनाया जा रहा है। परिसीमन का आधार जनगणना होती है। निगम अफसरों का तर्क समझ से परे है। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि परिसीमन होने से वार्डवासियों की दिक्कतें बढ़ेंगी। डाक का पता बदल जाएगा। आधार व पेन कार्ड से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस व राशन कार्ड में नए सिरे से पता दर्ज कराना पड़ेगा।
याचिकाकर्ता पूर्व विधायक शैलेष पांडेय व ब्लाक अध्यक्षों की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने संवैधानिक पहलुओं की ओर कोर्ट का ध्यान खींचते हुए कहा कि जनगणना के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। राज्य सरकार ने प्रदेशभर के निकायों के वार्ड परिसीमन के लिए जो आदेश जारी किया है उसमें वर्ष 2011 के जनगणना को आधार माना है। परिसीमन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार अंतिम जनगणना को आधार माना गया है।
राज्य सरकार ने अपने सरकुलर में भी परिसीमन के लिए अंतिम जनगणना को आधार माना है। वर्ष 2014 व 2019 में वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया है। जब आधार एक ही है तो इस बार क्यों परिसीमन का कार्य किया जा रहा है। याचिका के अनुसार वर्ष 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है। पूर्व में किए गए जनगणना को आधार मानकर तीसरी मर्तबे परिसीमन कराने की जरुरत क्यों पड़ रही है। परिसीमन के बाद कलेक्टर ने शहरवासियों से दावा आपत्ति मंगाई थी। उसका निराकरण नहीं किया गया है।
आवेदन पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दी गई है। ऐसा लगता है कि कलेक्टर ने कानूनी अड़चनों से बचने और औपचारिकता निभाने के लिए शहरवासियों से दावा आपत्ति मंगाई गई थी। सक्षम प्राधिकारी के पास आपत्ति दर्ज कराई गई है तो उनका दायित्व बनता है निराकरण किया जाए। पर ऐसा नहीं हो रहा है। शासन द्वारा तय मापदंड व प्रक्रिया का पालन कहीं नहीं किया जा रहा है।
न्यायालय पर है पूरा भरोसा
शैलेष पांडेय ने कहा कि वार्डपरिसीमन के लिए जिला प्रशासन व बिलासपुर नगर निगम द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया के विरोध में हमने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। जनहित में याचना करना हमारा कर्त्तव्य है। न्यायालय पर हमको पूरा भरोसा है। छोटे से व्यवस्थापन को बताकर बड़ी जनसंख्या समूह को प्रभावित किया जा रहा है।इसी बात को लेकर हम न्यायालय की शरण में गए हैं।