Bilaspur High Court: जूनियर वकीलों ने हाई कोर्ट से कहा- एमपी, आंध्र प्रदेश व पांडिचेरी में है इस तरह की व्यवस्था, तो यहां क्यों नहीं
Bilaspur High Court: जूनियर वकीलों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले जूनियर वकीलों को मासिक स्टायफंड की मांग की है। पीआईएल में मध्यप्रदेश,आंध्र प्रदेश और पांडिचेरी का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता जूनियर वकीलों ने कहा कि जब वहां इस तरह की व्यवस्था हो सकती है तो छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं। राज्य शासन ने जवाब पेश करने के लिए डिवीजन बेंच ने एक सप्ताह की मोहलत मांग ली है।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। हाई कोर्ट में जूनियर वकीलों को मासिक स्टायफंड दिए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को छत्तीसगढ़ स्टेट बार कोंसिल ने डिवीजन बेंच के सामने अपना जवाब पेश कर दिया। शासन को जवाब देने एक सप्ताह का समय मिला है। कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई दो सप्ताह बाद करने की व्यवस्था दी है।
सना मेमन और सिद्धांत दास ने अधिवक्ता प्रवीण दास , अभिषेक गुप्ता और आयुषी अग्रवाल के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। दायर याचिका में कहा है कि हाई कोर्ट में वकालत करने आने वाले जूनियर वकीलों के लिए मासिक स्टायफंड का निर्धारंण किया जाना चाहिए। देश के मप्र ,आंध्र प्रदेश , पांडिचेरी सहित अनेक राज्यों में भी इस प्रकार की व्यवस्था है कि माह में नए वकीलों को अलग से पारिश्रमिक दिया जाता है। याचिका में बताया गया कि प्रारंभिक दिनों में नए वकीलों को अपना मासिक व्यय निकालने में बेहद मुश्किल होती है। इसे देखते हुए सभी स्टेट बार कौंसिल के अंतर्गत यह परंपरा शुरू की गई है। .इसमें माह में स्टायफंड दिया जाता है। ताकि वकील अपने आने जाने और अन्य प्राथमिक खर्चे निकाल सकें।
पूर्व अध्यक्ष ने बीसीआई को पत्र लिखकर की थी मांग
इसी मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल वहाब ने भी छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल सहित बार कौंसिल आफ इंडिया से भी इस पर ठोस कदम उठाने की अपील की थी। पहले हुई सुनवाई के बाद डीविजन बेंच ने छत्तीसगढ़ स्टेट बार कोंसिल और बार कोंसिल आफ़ इंडिया को नोटिस जारी कर जवाब मांगा थ। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में स्टेट बार कौंसिल ने अपना जवाब पेश कर दिया है। कौंसिल ने कहा है कि नए अधिवक्ताओं के लिए मासिक स्टायफंड के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। यह व्यवस्था होनी चाहिए। राज्य शासन ने जवाब पेश करने के लिए समय मांगा है। कोर्ट ने राज्य शासन को एक सप्ताह का समय दियाहै। दो सप्ताह बाद सुनवाई की तिथि तय कर दी है।