गाँव, गोबर, ग्वाला…. गोधन योजना की महत्ता

Update: 2020-08-12 08:48 GMT

रायपुर 12 अगस्त 2020. आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है, ऐसे में उनके विचार, उनके बताए सद्मार्ग, उनके लीलाएं, शिक्षा और उनके न्याय पर चर्चा का दिन है…! जब न्याय की बात हो चली है तो छत्तीसगढ़ सरकार ने जो गाँव, गोबर और ग्वालो का सम्मान किया है, उन पर न्याय किया है वह देश-दुनिया में भी एक मिसाल बन गया है…! कौन सोचा था कि गोबर को भी खरीदना पड़ेगा या बेचना पड़ेगा…! गोबर सदैव, एक मुहावरा के रूप में, लोककथा में काफी प्रचलित रहा है.!
गोबर की महत्ता, भारतीय रीतिरिवाजों में बड़ा महत्व है…! आज भी गांवों में किसी धार्मिक कार्य के पहले, पूजापाठ के पूर्व, आंगन की लिपाई की जाती है, तब गोबर से लिपाई कर पूजा पाठ शुरू करने की परंपरा बना हुआ है…! इसका वैज्ञानिक कारण भी गिनाए जाते हैं कि घर मे कीड़े-मकोड़े को दूर करने में गोबर की लिपाई कारगर उपाय है…!
आज गांवो में गोबर के प्रति जो प्रेम, जो जज्बा देखने को मिल रहा है वह सिर्फ गाय की महत्ता को प्रतिपादित ही नहीं कर रही है बल्कि गाँवो व छत्तीसगढ़ के हजारों, लाखों ग्वालों के चेहरों में मुस्कान बिखेरने में गोधन महत्वपूर्ण ‘न्याय’ बन गया है…!
सांस्कृतिक राजधानी राजनांदगांव से लेकर औद्योगिक नगरी रायगढ़ तक और इब से इंद्रावती तक में पशुपालको के मन में एक नया उत्साह देखने को मिलने लगा है…!
जब भूपेश सरकार ने 2 रुपए किलो में गोबर खरीदने का निर्णय लिया तो, कई लोगों ने यह कहकर मजाक उड़ाया कि सरकार के दिमाग मे गोबर भर गया है…!! ऐसे निर्णय ने एकबारगी सत्ता, शासन, प्रशासन में बैठे लोगों के दिमाग को सोचने को मजबूर कर दिया..! मुखिया ने स्प्ष्ट किया कि गोबर खरीदी की मॉनिटरिंग कलेक्टर स्वंय करें और 8 रुपये किलो की दर से खरीदे गए गोबर को वर्मी कम्पोस्ट खाद के रूप में किसानों के बेचा जाए…!
गाँवो में, इसकी हलचल देखने को मिलने लगा, क्योंकि खरीदे गए गोबर का भुगतान हर 15 दिनों में किए जाने के निर्णय से ग्वालो, पशुपालको, किसानों, ग्रामीणो ने जो स्वागत किया, वह राज्य सरकार के लिए छक्के मारने से कम नहीं है..!
प्रदेश के मुख्यमंत्री बघेल जी कहते हैं गोबर खरीदने से अनेक लाभ हैं। पशुधन में बढोत्तरी होगी, उनके रखरखाव के प्रति जवाबदेही बढ़ेगी, पशुपालकों को समुचित लाभ मिलेगा! दूध, दही, घी आसानी से उपलब्ध होगा…! पशुओं के लिए चारा की व्यवस्था खुद करना होगा ताकि खेत मे धान कटाई के बाद पैरा जलाने पर अंकुश लगेगा…! जैविक खाद से अनाज उत्पादन होने से प्रोटीन युक्त भोजन मिलेगा..! ये तमाम लाभ सिर्फ कुछ दिनों के लिए नहीं है बल्कि आने वाले पीढी के लिए, प्रदेश के लिए एक सुनहरा भविष्य भी साबित होगा ..!
गोबर खाद का महत्व को विस्तार से बताने की आवश्यकता है, ताकि पशुपालको व इनसे जुड़े लोगों को लाभ हो सके..! आप सब लोगों को पता है कि प्राचीन युग से ही “खाद” का पौधों, फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। खाद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के खाद्य शब्द से हुई है। जल के अतिरिक्त वे सब पदार्थ जो मिट्टी में मिलाए जाने पर उसकी उर्वरता में सुधार करते हैं खाद कहलाते हैं। संतुलित पोषक तत्व उपलब्ध करना-पौधों को अधिक से अधिक एवं संतुलित मात्रा में सभी आवश्यक तत्वों की उपलब्धि कराना।
फसलों से अधिक लाभ प्राप्त करना- भूमि में बार-बार फसलोत्पादन से मिट्टी व गमलों में उपस्थिति मिट्टी के पोषक तत्व, पौधों व फसलों के रूप में काट दिये जाते हैं। अतः धीरे-धीरे गमलों व भूमि में अधिक उपज देने वाली फसलों की जातियाँ उगाने से मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश मिट्टी में मिलाएं जाते हैं। अब हम गोबर खाद के बारे में व इसकी रासायनिक रचना एवं संघटन के बारे में भी जिक्र कर लें..! पशुओं के ताजे गोबर की रासायनिक रचना जानने के लिए, गोबर को ठोस व द्रव को दो भागो में बांटते हैं। बहार के ठोस भाग 75% तक पाया जाता है। सारा फास्फोरस ठोस भाग में ही होता है तथा नाइट्रोजन व पोटाश, ठोस द्रव भाग में आधे-आधे पाए जाते हैं। गोबर खाद की रचना अस्थिर होती है। किन्तु इसमें आवश्यक तत्वों का मिश्रण निम्न प्रकार से किया जाता है। नाइट्रोजन 0.5 से 0.6 % फास्फोरस 0.25 से 0.3% पोटाश 0.5 से 1.0% गोबर की खाद में उपस्थित 50%नाइट्रोजन, 20% फास्फोरस व पोटेशियम पौधों को शीघ्र प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त गोबर की खाद में सभी तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैंगनीज, तांबा व जस्ता आदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं।
गोबर खाद को गमलों व खेत में किस विधि से डालें, कितने मात्रा में डालें यह मिट्टी की किस्म, खाद की प्रकृति, फसल के प्रकार पर निर्भर करता है। गोबर की सड़ी हुई खाद को ही सदैव फसल बोने अथवा पौधों को लगाने के लिए ही प्रयोग करना चाहिए। बुआई से पूर्व खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर पौधे रोपने से एक सप्ताह पूर्व करने की आवश्यकता होती है।
भारी चिकनी मिट्टी में ताजा गोबर की खाद बुआई से काफी समय पूर्व प्रयोग करना अच्छा होता है क्योंकि विच्छेदित खाद से मिट्टी में वायु संचार बढ़ जाता है। जलधारण क्षमता भी सुधरती है। हल्की रेतीली मिट्टी एवं पर्वतीय मिट्टी में वर्षाकाल के समय में छोड़कर करना चाहिए। गोबर खाद खेत में मोटी परत की अपेक्षा पतली डालना सदैव अच्छा रहता है। लंबे समय की फसल में समय-समय पर खाद की थोड़ी मात्रा देना, एक बार अधिक खाद देने की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। सभी फसलों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर एक-एक में 10 टन, गोबर की खाद खेत में दी जाती है। सब्जियों के खेत में 50-100 टन प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है।
वैसे भी गोबर से खाद बनाने के अलावा गोबर गैस जो ईधन के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा गोबर से आज अगरबत्ती से लेकर दीया सहित अनेक घरेलू उपयोग की चीजें प्रदेश की महिला स्व सहायता समूह, महिला समितियों द्वारा तैयार की जा रही है।
गोबर अब खाद के अलावा अन्य उपयोगी कार्यो में शामिल हो गया है।
निश्चय ही गोधन न्याय योजना से गाँव, गाय और ग्वालो को ज्यादा लाभ मिलेगा तो वहीं यह योजना सेहतमंद पीढ़ी, स्वस्थ, समृद्ध व नवा छत्तीसगढ़ गढ़ने में अहम भूमिका निभायेगा।विजय मानिकपुरी
(लेखक जनसंपर्क विभाग में कार्यरत हैं) रायपुर

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