SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, FIR दर्ज होते ही होगी गिरफ्तारी पर मिल सकती है अग्रिम जमानत….केंद्र सरकार को राहत

Update: 2020-02-10 08:50 GMT

नईदिल्ली 10 फरवरी 2020। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को सोमवार को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि कोई अदालत सिर्फ ऐसे ही मामलों पर अग्रिम जमानत दे सकती है जहां प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता हो। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं है और इसके लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का SC/ST एक्ट के संशोधन को मंजूरी

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं है और इसके लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं है। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने सहमति वाले एक निर्णय में कहा कि प्रत्येक नागरिक को सह-नागरिकों के साथ समान बर्ताव करना होगा और बंधुत्व की अवधारणा को प्रोत्साहित करना होगा। न्यायमूर्ति भट ने कहा कि यदि प्रथमदृष्टया एससी/एसटी अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता तो कोई अदालत प्राथमिकी को रद्द कर सकती है।

क्या है मामला

बता दें कि दरअसल 20 मार्च 2018 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरूपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके बाद संसद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। इसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब पहले के मुताबिक ही एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति जरूरी नहीं होगी।

बता दें कि एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नही है। न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकते हैं।

SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ था देशभर में प्रदर्शन

एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से साल 2018 में दिए गए फैसले के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था। इस बंद का कई राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन भी किया था और इस दौरान कई राज्यों में भारी हिंसा हुई थी और चौदह लोगों की मौत हो गई थी। इस प्रदर्शन का सबसे ज्यादा असर एमपी, बिहार, यूपी और राजस्थान में हुआ था।

भारी विरोध के बाद केन्द्र लेकर आई एससी/एसटी संशोधन बिल

देशभर में एससी/एसटी एक्ट पर भारी विरोध और प्रदर्शनों को देखते हुए 2 अप्रैल के भारत बंद के बाद केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका दाखिल की। सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी-एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया। अगस्त 2018 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया।

संशोधित कानून के जरिए एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई। इस धारा के मुताबिक, इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। केन्द्र की तरफ से लाए गए इस बिल के बाद सवर्णों की ओर से भारत बंद का ऐलान किया गया था। इसके बाद केन्द्र की मोदी सरकार सवर्णों को नौकरी में दस फीसदी आरक्षण का कानून संसद में लेकर आई थी।

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