Jheeramkand Naxalite attack: झीरमकांड पर सियासत तेज: कांग्रेस ने घेरा, साव बोले- अब तो सबूत जेब से निकालें

Jheeramkand Naxalite attack: झीरमकांड को लेकर आज आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और प्रदेश की तत्‍कालीन भाजपा सरकार को घेरा है। प्रेसवार्ता लेकर कांग्रेस नेताओं ने पूछा, किसे और क्‍यों बचाना चाहते हैं भाजपा के नेता। इस पर भाजपा की तरफ से प्रदेश अध्‍यक्ष अरुण साव ने पलटवार किया है।

Update: 2023-11-21 13:13 GMT

Jheeramkand Naxalite attack: रायपुर। 25 मई 2013 को बस्‍तर की झीरमघाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हुए नक्‍सली हमले पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। इस मामले में राज्य पुलिस की जांच पर रोक लगाने की मांग वाली केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। राज्‍य सरकार के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए कांग्रेस ने फिर एक बार भाजपा नेताओं पर जमकर निशाना साधा है।

इस मामले में आज पार्टी के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने राजीव भवन में प्रेसवार्ता को संबोधित किया। वर्मा ने कहा कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, 25 मई, 2013 छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर कथित नक्सली हमला हुआ था। इस हमले में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित कुल 32 लोग शहीद हुए थे।

वर्मा ने कहा कि यह लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक हत्याकांड था। इस हत्याकांड की जांच कर रही एजेंसी एनआईए ने इस घटना की जांच की थी, लेकिन एजेंसी ने यह जांच नहीं की थी कि इस हत्याकांड का षड्यंत्र किसने रचा था। यह सिर्फ़ नक्सली हमला था या इसके पीछे राजनीतिक षड्यंत्र भी था? छत्तीसगढ़ की पुलिस ने आपराधिक षडयंत्र की जांच शुरु की तो एनआईए ने अदालती अडंगा अटका दिया। पहले वे ट्रायल कोर्ट में गए, वहां उनकी याचिका खारिज हुई फिर हाईकोर्ट में खारिज हुई।

उन्‍होंने बताया कि इसके बाद एनआईए सुप्रीम कोर्ट में गई जहां आज सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी है। कांग्रेस पार्टी सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत करती है। हम मानते हैं कि इस फ़ैसले से शहीदों को और उनके परिजनों को न्याय मिलने का रास्ता खुला है। इस फ़ैसले के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस 26 मई, 2020 को दर्ज दूसरे एफ़आईआर के आधार पर यह जांच कर पाएगी कि किसके कहने पर, किसे बचाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी एनआईए जांच का रास्ता रोक रही थी? वर्मा ने कहा कि हमारा सवाल है कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने आपराधिक षड्यंत्र की जांच क्यों नहीं करवाई? आयोग बनाया तो उसके दायरे में षड्यंत्र क्यों नहीं रखा?

भाजपा की सरकार और उनके नेताओं पर खड़े हैं सवालिया निशान Jheeramkand Naxalite attack:

वर्मा ने बताया कि 2014 में एनआईए ने पहला चालान प्रस्तुत किया। फिर 2015 में दूसरा चालान पेश किया गया। इन दोनों चालान में नक्सली संगठन के प्रमुख कर्ताधर्ता गणपति और रमन्ना के नाम नहीं डाले गए। तथ्य यह है इससे पहले जांच के दौरान एनआईए ने इन दोनों नेताओं को भगोड़ा भी घोषित किया था और संपत्ति कुर्क करने की नोटिस भी निकाली थी। एनआईए ने अपने चालान में कह दिया कि झीरम का षडयंत्र दंडकारण्य ज़ोनल कमेटी ने रचा था।

उन्‍होंने कहा कि जो थोड़ा बहुत भी नक्सली संगठन और उसके ढांचे को समझते हैं वो बता सकते हैं कि इतना बड़ा षडयंत्र शीर्ष नेतृत्व के बिना नहीं रचा जा सकता। कांग्रेस पार्टी ने जब विधानसभा में यह सवाल उठाया और हंगामा हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह जी ने झीरम हत्याकांड की सीबीआई जांच करवाने की घोषणा की। रमन सिंह जी की सरकार ने सीबीआई जांच को नोटिफ़ाई कर दिया और केंद्र को पत्र भेज दिया गया। पर दिसंबर, 2016 में केंद्र की सरकार ने राज्य ने सीबीआई जांच के अनुरोध को ठुकरा दिया और कह दिया कि एनआईए जांच ही पर्याप्त है। चकित करने वाली बात है कि रमन सिंह जी ने दिसंबर, 2018 तक छत्तीसगढ़ की जनता से यह बात छिपाए रखी।

उन्‍होंने बताया कि मार्च, 2017 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष भूपेश बघेल जी ने रमन सिंह जी को सीबीआई जांच के संबंध में एक पत्र लिखा उसका भी कोई जवाब नहीं आया। जब राज्य में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार बनी तब कहीं जाकर पता चला कि सीबीआई जांच से तो केंद्र की सरकार ने इंकार कर दिया है। तब जाकर छत्तीसगढ़ पुलिस ने नई एफ़आईआर दर्ज की लेकिन एनआईए इस मामले को अदालत तक ले गई।

Jheeramkand Naxalite attack: आयोग पर भी अड़ंगा

सीएम के सलाहकार वर्मा ने बताया कि रमन सिंह सरकार ने एक जांच आयोग बनाया था। कांग्रेस की सरकार ने महसूस किया कि आयोग की जांच का दायरा पर्याप्त नहीं है। तब जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग के कार्यकाल और जांच के दायरे को आगे बढ़ाया। चूंकि जस्टिस मिश्रा तब तक उपलब्ध नहीं थे इसलिए नई नियुक्ति की गई लेकिन तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता धरम लाल कौशिक ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और राज्य सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती दे दी। अभी यह मामला अदालत में लंबित है।

Jheeramkand Naxalite attack: कई सवाल हैं

कांग्रेस नेता ने कहा कि 013 में 6-7 मई को बस्तर ज़िले में रमन सिंह जी की विकास यात्रा निकली। उसके लिए 1781 सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए थे।

उसी बस्तर ज़िले में 24-25 मई को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकली तो मात्र 138 सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए। सुरक्षा के पर्याप्त क़दम भी नहीं उठाए गए।

महेंद्र कर्मा जी ने जनवरी, 2013 में अपनी सुरक्षा बढ़ाने का पत्र लिखा था लेकिन उस पर रमन सिंह सरकार ने ध्यान नहीं दिया।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार क्यों नहीं चाहती कि व्यापक राजनीतिक षडयंत्र की जांच हो? क्यों रमन सिंह सरकार ने यह जांच नहीं करवाई? क्यों उन्होंने सीबीआई जांच की बात छिपाए रखी? क्यों भाजपा नेता धरम लाल कौशिक कोर्ट गए?

पत्रकार वार्ता में वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेन्द्र तिवारी, वरिष्ठ प्रवक्ता आरपी सिंह, धनंजय सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र वर्मा, आयुष पांडेय, प्रवक्ता अजय गंगवानी, सत्यप्रकाश सिंह उपस्थित थे।

अब तो झीरम के सबूत जेब से निकालें- अरुण साव

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सांसद अरुण साव ने झीरम घाटी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अब तो झीरम मामले में राजनीति छोड़कर अपनी जेब से वे सबूत निकालकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए को सौंप दें, जिन्हें वे मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे कार्यकाल में अपनी जेब में छिपाए रहे। एक मुख्यमंत्री को इतना सामान्य ज्ञान तो होना ही चाहिए कि किसी अपराध के साक्ष्य छुपाना गंभीर अपराध होता है। भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री रहते हुए यह अपराध किया है। प्राकृतिक न्याय की अपेक्षा यही हो सकती है कि झीरम के सबूत छिपाने का अपराध करने वाले को भी जांच और पूछताछ के दायरे में होना चाहिए।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद अरुण साव ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भूपेश बघेल ने स्वयं यह कबूल किया है कि झीरम के सबूत उनके कुर्ते की जेब में हैं। तब 5 साल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने यह सबूत जांच एजेंसी के सुपुर्द क्यों नहीं किए? भाजपा आरंभ से स्पष्ट तौर पर यह मत प्रकट करती रही है कि झीरम मामले में कांग्रेस का चरित्र संदिग्ध है। कांग्रेस झीरम पर राजनीति कर रही है। भूपेश बघेल को जनता को यह भी बताना चाहिए कि झीरम हमले के चश्मदीद उनके कैबिनेट मंत्री ने क्यों इस मामले में न तो न्यायिक जांच आयोग के सम्मुख गवाही दी और न ही जांच एजेंसी को कोई सहयोग दिया। आखिर कांग्रेस और उसकी सरकार ने झीरम का सच सामने क्यों नहीं आने दिया, इसका जवाब छत्तीसगढ़ की जनता मांग रही है।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने कहा कि झीरम कांड के तथ्यों के मामले में कांग्रेस की रहस्यमयी चुप्पी और राजनीतिक बयानबाजी में तत्परता इसका प्रमाण है कि कांग्रेस ही इस मामले में संदिग्ध है। कांग्रेस ने झीरम मामले का राजनीतिकरण किया। सरकार चलाते हुए 5 साल तक साक्ष्य छुपाए और अंत में झीरम के दो शहीदों की विधवाओं को विधायक रहते हुए टिकट से वंचित किया। कांग्रेस कभी झीरम के शहीदों के परिवार को न्याय नहीं मिलने देना चाहती।

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