CG में Gujrat फॉर्मूला: छत्तीसगढ़ में 90 सीटों पर नए उम्मीदवार उतारने की तैयारी में भाजपा, ब्रह्मानंद जैसी स्थिति से बचने परखेंगे केस स्टेटस

गुजरात में भाजपा ने सालभर पहले सीएम सहित मंत्रिमंडल में बदलाव किया। इसका फायदा मिला और अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली।

Update: 2022-12-14 06:00 GMT

रायपुर। छत्तीसगढ़ में भी गुजरात की तरह भाजपा सभी 90 सीटों पर नए उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। छत्तीसगढ़ प्रभारी ओमप्रकाश माथुर और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जम्वाल ने भी यह संकेत दे दिए थे, लेकिन अब गुजरात चुनाव का रिजल्ट आने के बाद भाजपा ने यह चर्चा तेज हो गई है। फिलहाल सभी सांसद, विधायकों और पदाधिकारियों के लिए यह स्पष्ट निर्देश है कि वे एक कार्यकर्ता की हैसियत से काम करते रहें। चुनाव के दौरान टिकट किसे देना है, या नहीं, यह पार्टी तय करेगी। 

दरअसल, भाजपा ने गुजरात में ऐन चुनाव से सालभर पहले सीएम सहित पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया। भाजपा ने जब यह फैसला किया, तब राजनीतिक धुरंधर यह कयास लगा रहे थे कि इस बार भाजपा के लिए गुजरात में जीतना आसान नहीं है। पूरे कैबिनेट में बदलाव के कारण भी यह बात आई कि भाजपा संगठन ही अंदरूनी तौर पर संतुष्ट नहीं है, इसलिए 'करो या मरो' की नीति के रूप में यह बदलाव किया है। खैर, सालभर बाद जो नतीजे आए हैं, वह राजनीतिक प्रेक्षक ही नहीं, पार्टी के रणनीतिकारों के लिए भी चौंकाने वाले हैं, क्योंकि वे इतनी बड़ी जीत के लिए आश्वस्त नहीं थे।

छत्तीसगढ़ की बात करें तो 15 साल की सरकार के बाद 2018 में भाजपा सिर्फ 15 सीटें जीत पाई। इसमें भी दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी की नक्सलियों ने हत्या कर दी और बाद में उनकी सीट भी हाथ से निकल गई तो भाजपा के पास अब सिर्फ 14 सीटें बाकी हैं। इनमें पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, वर्तमान नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, पुन्नूलाल मोहले, अजय चंद्राकर, ननकीराम कंवर, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी, शिवरतन शर्मा, सौरभ सिंह, डमरूधर पुजारी, रजनीश सिंह, रंजना साहू, विद्यारतन भसीन शामिल हैं।

भाजपा के रणनीतिकारों के साथ-साथ आरएसएस की ओर से भी 2018 में चेहरे बदलने पर जोर दिया गया था। कुछ चेहरे बदले भी गए थे, लेकिन इनकी संख्या काफी कम थी। यही वजह है कि अधिकांश मंत्री अमर अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडेय, राजेश मूणत, भैयालाल राजवाड़े, रामसेवक पैकरा, रमशीला साहू, केदार कश्यप और महेश गागड़ा आदि और विधानसभा स्पीकर गौरीशंकर अग्रवाल सहित कई बड़े चेहरे हार गए। इसके विपरीत कांग्रेस ने जिन नए नवेले चेहरों को आजमाया, उनमें से कई बड़ी और रिकॉर्ड लीड के साथ जीते।

ब्रह्मानंद नेताम जैसे हालात से बचें

भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा ने पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम को अपना उम्मीदवार बनाया। प्रत्याशी चयन की जब प्रक्रिया चल रही थी, तभी एक वरिष्ठ नेता ने नेताम के खिलाफ रांची में दर्ज केस के बारे में बताया था। इस बात को पार्टी के ही नेताओं ने नजरअंदाज कर दिया। बात आई-गई हो जाती, लेकिन कांग्रेस ने इसे मुद्दे के रूप में पेश किया। सीएम भूपेश बघेल, पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम सहित चुनाव प्रचार में लगे कांग्रेस के नेता भी इस बात पर जोर देते रहे कि भाजपा ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म के आरोपी को अपना उम्मीदवार बनाया है। 

पिछले चुनाव के मुकाबले इससे भाजपा को कुछ सौ वोटों का ही नुकसान हुआ, लेकिन सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम की मौजूदगी में भी भाजपा 21 हजार से ज्यादा वोटों से हारी। जबकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि आदिवासी समाज के वोट बंटेंगे तो कांग्रेस को नुकसान होगा। ऐसे में आने वाले समय के लिए पार्टी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ऐसे किसी भी नेता को टिकट नहीं दिया जाएगा, जिसके खिलाफ ऐसा कोई भी केस दर्ज हो जो बाद में मुद्दा बने। इसकी पहले से ही तस्दीक की जाएगी। जांच-परख के बाद पैनल में नाम शामिल किया जाएगा।

अंतिम परिस्थितियों पर होगा निर्णय

फिलहाल भाजपा के पास 14 विधायक हैं। पार्टी का ही एक वर्ग यह मानता है कि जो वर्तमान में विधायक हैं, उन्हें मौका मिलना चाहिए। सभी को बदलने से विरोधियों को बोलने का मौका मिल जाएगा। हालांकि इसे लेकर पार्टी के रणनीतिकार 100 प्रतिशत किसी निष्कर्ष पर नहीं हैं। संभव है कि कुछ चेहरों को मौका दिया जाएगा। यह तय करने से पहले सर्वे रिपोर्ट का भी सहारा लिया जाएगा। कई महत्वपूर्ण सीटों पर वर्तमान सांसदों को भी टिकट देने की तैयारी है।

अब नए साल से शुरू होगी परेड

विपक्ष में होने के बावजूद हनीमून पीरियड बिता रहे भाजपा के नेताओं की परेड अब शुरू होगी। प्रदेश प्रभारी ओमप्रकाश माथुर और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री छत्तीसगढ़ में कैम्प कर बूथ स्तर तक जाएंगे। सभी पदाधिकारियों को भी बूथ और शक्ति केंद्र स्तर तक जाने के लिए कहा जाएगा। इसकी निगरानी की जाएगी। एक दिन में बैठक खत्म कर घर लौटने वाले नेताओं को रात्रि प्रवास करना ही होगा। लॉगबुक में किलोमीटर दर्ज करने से काम नहीं चलेगा। पूर्व प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी और नितिन नबीन भी लगातार यह जोर देते रहे, लेकिन पदाधिकारी बहानेबाजी कर बचते रहे।

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