Vijay Diwas 2025: सिर्फ इतने दिनों में घुटने तक दिए थे पाकिस्तानी सेना ने, 16 दिसंबर को भारत ने कैसे रचा था इतिहास, जानिए 1971 युद्ध की पूरी कहानी
Vijay Diwas 2025: 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हराकर रचा इतिहास, 93,000 सैनिकों का सरेंडर और बांग्लादेश का गठन।
Vijay Diwas 2025: भारत में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारतीय सैन्य इतिहास के सबसे गौरवशाली अध्यायों में शामिल है। इसी दिन साल1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जीत हासिल की थी और 13 दिन तक चला युद्ध समाप्त हुआ था। इस ऐतिहासिक विजय के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान का अंत हुआ और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ। विजय दिवस सिर्फ सैन्य सफलता का प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय सेना के अदम्य साहस, रणनीतिक कौशल और सर्वोच्च बलिदान की स्मृति भी है।
1971 युद्ध की पृष्ठभूमि क्या थी
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 की जड़ें 1947 के विभाजन से जुड़ी थीं, जब पाकिस्तान दो हिस्सों- पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान- में बंटा हुआ था। पूर्वी पाकिस्तान की बहुसंख्यक आबादी बंगाली भाषी थी, लेकिन सत्ता और प्रशासन पर पश्चिमी पाकिस्तान का नियंत्रण था। भाषा, संस्कृति और राजनीतिक अधिकारों को लेकर भेदभाव लगातार बढ़ता गया। बंगाली भाषा को राष्ट्रीय मान्यता न मिलने और जन आंदोलनों पर सैन्य दमन ने हालात को विस्फोटक बना दिया। लाखों लोग हिंसा से बचने के लिए भारत में शरण लेने को मजबूर हुए। मानवीय संकट और बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में भारत ने हस्तक्षेप का फैसला लिया।
भारत की निर्णायक सैन्य कार्रवाई
4 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध औपचारिक रूप से शुरू हुआ। भारतीय सेना ने पूर्वी मोर्चे पर तेज, सटीक और समन्वित सैन्य अभियान चलाया। थलसेना, वायुसेना और नौसेना के संयुक्त प्रयासों से पाकिस्तानी सेना को लगातार पीछे हटने पर मजबूर किया गया। महज 13 दिनों के भीतर भारत ने ऐसी बढ़त बना ली कि पाकिस्तान के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
16 दिसंबर 1971: ऐतिहासिक आत्मसमर्पण
16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारतीय सेना के पूर्वी कमान प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है। इसी के साथ बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।
भारतीय सेना का बलिदान
इस युद्ध में भारत ने भारी कीमत चुकाई। करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 9,800 से अधिक घायल हुए। उस समय भारतीय सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ थे, जिनकी रणनीतिक सोच और नेतृत्व ने इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। आज भी उनका नाम 1971 की जीत का पर्याय माना जाता है।
विजय दिवस का राष्ट्रीय महत्व
विजय दिवस के अवसर पर पूरे देश में शहीदों और पूर्व सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। सैन्य स्मारकों पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है और देशभक्ति कार्यक्रमों के जरिए युवाओं को सेना और राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित किया जाता है। विजय दिवस की पूर्व संध्या पर दिल्ली में ‘विजय दिवस एट होम’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें शीर्ष नेतृत्व शामिल होता है और भारतीय सेना की आधुनिक क्षमताओं व स्वदेशी रक्षा तकनीक को प्रदर्शित किया जाता है।
विजय दिवस का संदेश
16 दिसंबर भारत की सैन्य ताकत, अनुशासन और बलिदान की अमर गाथा है। यह दिन हर भारतीय को याद दिलाता है कि देश की संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए भारतीय सैनिक हर परिस्थिति में तैयार रहते हैं।