Supreme Court Decision: क्या पिता को संपत्ति बेचने से रोक सकता है बेटा? जानें सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Supreme Court Decision: बेंगलुरु के पास एक संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक जमीन को लेकर 31 साल तक चले विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला देते हुए साफ किया कि बंटवारे के बाद मिली जमीन उनकी निजी संपत्ति है, जिसे वे अपनी मर्जी से बेच सकते हैं।

Update: 2025-05-08 11:26 GMT

Supreme Court Decision: बेंगलुरु के पास एक संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक जमीन को लेकर 31 साल तक चले विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला देते हुए साफ किया कि बंटवारे के बाद मिली जमीन उनकी निजी संपत्ति है, जिसे वे अपनी मर्जी से बेच सकते हैं। यह फैसला हजारों पारिवारिक संपत्ति विवादों के लिए मिसाल बन सकता है।

31 साल पुराना मामला, क्या थी कहानी?

यह मामला 1994 में शुरू हुआ, जब बेंगलुरु के पास स्थित पैतृक जमीन का एक हिस्सा एक पिता ने बेच दिया। उनके चार बच्चों ने इसका विरोध करते हुए दावा किया कि यह जमीन उनके दादा की थी, और वे ‘कॉपार्सनर’ (जन्म से संपत्ति में हकदार) होने के नाते इसकी बिक्री पर सहमति के हकदार थे। पिता का तर्क था कि उन्होंने यह जमीन अपने भाई से खरीदी थी, और यह उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति थी।

मामला ट्रायल कोर्ट से शुरू होकर हाई कोर्ट तक पहुंचा। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने बच्चों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल 2025 को हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि 1986 में तीन भाइयों के बीच रजिस्टर्ड बंटवारा हो चुका था, और पिता ने 1989 में अपने भाई से जमीन खरीदी थी, जिसे 1993 में बेच दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हिंदू कानून का हवाला देते हुए कहा:

  • अगर पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो चुका है, तो हर व्यक्ति का हिस्सा उनकी निजी (स्वयं अर्जित) संपत्ति माना जाएगा।
  • ऐसी संपत्ति को मालिक अपनी मर्जी से बेचने, गिफ्ट करने या वसीयत करने के लिए स्वतंत्र है।
  • बच्चों का दावा कि पिता ने पारिवारिक फंड या दादी के पैसे से जमीन खरीदी, इसलिए यह संयुक्त संपत्ति है, को कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि पिता ने निजी लोन से जमीन खरीदी थी।
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्वयं अर्जित संपत्ति तब तक संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं बनती, जब तक मालिक स्पष्ट रूप से इसे पारिवारिक खजाने में मिलाने का इरादा न जताए।

बच्चे क्यों हारे केस?

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों की दलील को इसलिए खारिज किया क्योंकि:

  • बंटवारे के बाद जमीन पिता की निजी संपत्ति थी, और इसमें बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं था।
  • पिता ने जमीन खरीदने के लिए निजी स्रोतों (लोन) का इस्तेमाल किया, न कि पारिवारिक फंड का।
  • कोई सबूत नहीं मिला कि पिता ने इस संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति में मिलाने की मंशा जताई थी।

क्यों अहम है यह फैसला?

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पारिवारिक संपत्ति विवादों में मील का पत्थर साबित होगा। यह उन लाखों मामलों में दिशा देगा, जहां बच्चे या अन्य रिश्तेदार पैतृक संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार का दावा करते हैं। कोर्ट ने साफ किया कि बंटवारे के बाद कोई भी व्यक्ति अपने हिस्से का पूर्ण मालिक होता है, और उस पर दूसरों का कोई हक नहीं बनता।

क्या होगा असर?

यह फैसला न केवल कानूनी स्पष्टता लाएगा, बल्कि संपत्ति बिक्री और बंटवारे से जुड़े पारिवारिक विवादों को कम करने में भी मदद करेगा। खासकर हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) से जुड़े मामलों में यह फैसला महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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