Supreme Court News: प्रापर्टी और कुर्की की कार्रवाई को लेकर SC का महत्वपूर्ण फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट का फैसला...

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने प्रापर्टी और कुर्की को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है, किसी विवाद के बाद कुर्की की कार्रवाई को लेकर मुकदमा दायर किया जाता है तो मुकदमा दायर होने से पहले बेची गई संपत्ति पर कुर्की की कार्रवाई नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए फैसला सुनाया है।

Update: 2025-12-01 10:20 GMT

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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने प्रापर्टी और कुर्की को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है, किसी विवाद के बाद कुर्की की कार्रवाई को लेकर मुकदमा दायर किया जाता है तो मुकदमा दायर होने से पहले बेची गई संपत्ति पर कुर्की की कार्रवाई नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए फैसला सुनाया है।

मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना एवं जस्टिस आर महादेवन की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने कहा कि यदि किसी संपत्ति का रजिस्टर्ड सेल डीड के माध्यम से हस्तांतरण कर दिया गया है, और उसके बाद संपत्ति विवाद के चलते कुर्की की कार्रवाई के लिए याचिका दायर की जाती है तो ऐसी संपत्ति को सिविल प्रक्रिया संहिता CPCके आदेश 38 नियम 5 के तहत निर्णय से पहले कुर्क नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता में दिए गए प्रावधान के तहत कुर्की केवल उसी संपत्ति पर लगाई जा सकती है, जो मुकदमा दायर होने की तिथि पर पक्षकार के स्वामित्व वाली हो।

सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसल में मुकदमा दायर होने से पहले बिक चुकी संपत्ति पर भी कुर्की को वैध माना था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आदेश 38 नियम 5 एक असाधारण और सुरक्षात्मक उपाय है, लेकिन इसका दायरा उस संपत्ति तक सीमित है, जो मुकदमे की तारीख पर प्रतिवादी की हो। जो संपत्ति पहले ही असली खरीदार को हस्तांतरित हो चुकी हो उस पर इस प्रावधान के तहत कुर्की नहीं हो सकती।

याचिकाकर्ता और ऋणी के बीच वर्ष 2002 में संपत्ति बिक्री का समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार जून 2004 में रजिस्टर्ड सेल डीड निष्पादित कर संपत्ति का कानूनी हस्तांतरण कर दिया था। इसके बाद खरीदार ने संपत्ति पर कब्जा लेकर गेस्टहाउस चलाना शुरू किया। कई महीनों बाद दिसंबर, 2004 में लेनदार ने ऋणी के खिलाफ धन वसूली का मुकदमा दायर किया और फरवरी, 2005 में उसी संपत्ति पर निर्णय से पहले कुर्की का आदेश प्राप्त कर लिया।

कुर्की आदेश को चुनौती देते हुए खरीदार ने अदालत में दावा याचिका दायर की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बिक्री धोखाधड़ीपूर्ण थी और यह लेनदारों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से की गई। हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए खरीदार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब रजिस्टर्ड सेल डीड 28 जून 2004 को निष्पादित हो चुका था और मुकदमा बाद में दायर हुआ तो मुकदमे की तारीख पर वह संपत्ति प्रतिवादी की नहीं रह गई। ऐसी स्थिति में आदेश 38 नियम 5 के लिए आवश्यक शर्त पूरी नहीं होती। डिवीजन बेंच ने कहा कि यदि किसी पक्ष को यह आरोप लगाना है कि बिक्री लेनदारों को धोखा देने के उद्देश्य से की गई तो उसका उचित उपाय संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 53 के तहत है न कि कुर्की का आदेश दिलवाना। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

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