Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला:आपराधिक कानून को निजी प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवाद निपटाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता, कोर्ट ने साफ कहा...

Supreme Court News: पत्नी द्वारा पति व परिवारजनों पर दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर पुलिस में दर्ज एफआईआर को हाई कोर्ट द्वारा सही ठहराया गया था। हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने फैसला में कहा कि भारतीय समाज की वास्तविकता यह है कि कई परिवारों में पुरुष वित्तीय मामलों में नियंत्रण रखते हैं, लेकिन आपराधिक कानून को निजी प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवाद निपटाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।

Update: 2025-12-21 07:43 GMT

supreme court of india (NPG file photo)

Supreme Court News: दिल्ली। पत्नी द्वारा पति व परिवारजनों पर दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर पुलिस में दर्ज एफआईआर को हाई कोर्ट द्वारा सही ठहराया गया था। हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने फैसला में कहा कि भारतीय समाज की वास्तविकता यह है कि कई परिवारों में पुरुष वित्तीय मामलों में नियंत्रण रखते हैं, लेकिन आपराधिक कानून को निजी प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवाद निपटाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता व परिजनों के खिलाफ दर्ज 498A को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि पति का माता-पिता को आर्थिक मदद देना या खर्च का हिसाब मांगना 'क्रूरता' की श्रेणी में नहीं आता है।

सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने वैवाहिक विवादों में आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता पति के खिलाफ दर्ज क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का मामला रद्द कर दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने पति की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि ऐसे आरोपों के आधार पर आपराधिक मुकदमा चलाना उचित नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, पति द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को आर्थिक रूप से मदद करना किसी भी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं ठहराया जा सकता। पत्नी से खर्चों का हिसाब रखने की अपेक्षा करना, भले ही आरोपों को सही मान लिया जाए, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत 'क्रूरता' की श्रेणी में नहीं आता।

डिवीजन बेंच ने कहा कि शिकायत में जिस 'आर्थिक और वित्तीय प्रभुत्व' का आरोप लगाया गया, वह तब तक क्रूरता नहीं माना जा सकता, जब तक उससे किसी ठोस मानसिक या शारीरिक क्षति का स्पष्ट प्रमाण न हो। बेंच ने कहा कि भारतीय समाज की वास्तविकता यह है कि कई परिवारों में पुरुष वित्तीय मामलों में नियंत्रण रखते हैं, लेकिन आपराधिक कानून को निजी प्रतिशोध या व्यक्तिगत विवाद निपटाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।

यह मामला पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई FIR से जुड़ा था। पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के पांच सदस्यों पर IPC की धारा 498A और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। पति-पत्नी सॉफ्टवेयर दोनों इंजीनियर हैं। दिसंबर 2016 में दोनों की शादी हुई थी। विवाह के बाद दोनों अमेरिका के मिशिगन में साथ रह रहे थे। अप्रैल, 2019 में बेटे का जन्म हुआ। अगस्त, 2019 में दोनों के बीच विवाद के बाद पत्नी बच्चे के साथ भारत लौट आई। जनवरी, 2022 में पति ने दांपत्य अधिकारों की बहाली के लिए कानूनी नोटिस भेजा। पति द्वारा भेजे गए नोटिस के कुछ दिनों बाद पत्नी ने पति व परिवार के सदस्यों के खिलाफ पुलिस में आपराधिक शिकायत दर्ज करा दी। पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए पति ने तेलंगाना होई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पति द्वारा अपने परिवार को पैसे भेजने, घरेलू खर्चों का हिसाब मांगने, गर्भावस्था के दौरान कथित लापरवाही या प्रसव के बाद वजन को लेकर ताने देने जैसे आरोप, भले ही सही मान लिए जाएं, धारा 498A के तहत क्रूरता की श्रेणी में नहीं आते। डिवीजन बेंच ने इन विवादों को वैवाहिक जीवन के सामान्य उतार-चढ़ाव का हिस्सा बताया।

डिवीजन बेंच ने FIR का विश्लेषण करते हुए कहा कि इसमें लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के हैं। दहेज की कथित मांग को लेकर न तो कोई ठोस विवरण दिया गया और न ही किसी विशेष घटना का उल्लेख किया गया। एक करोड़ रुपये की मांग का आरोप लगाए जाने के बावजूद शिकायतकर्ता इसे साबित करने के लिए कोई सामग्री या साक्ष्य पेश नहीं कर सकी। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि जैसा कि आरोप लगाया है, उत्पीड़न से पत्नी को कोई मानसिक या शारीरिक चोट कैसे पहुंची।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 498A के तहत क्रूरता सिद्ध करने के लिए विशिष्ट घटनाओं और ठोस तथ्यों का उल्लेख आवश्यक है। केवल सामान्य और व्यापक आरोपों के आधार पर आपराधिक कार्यवाही जारी रखना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आमतौर पर उत्पीड़न की एक श्रृंखला होती है, जिसे स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। कोर्ट ने एफआईआर को रद्द कर दिया है।

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