सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अब वकीलों को आसानी से नोटिस नहीं भेज सकेंगी जांच एजेंसिया; उससे पूर्व करना होगा ये..

Update: 2025-10-31 10:58 GMT

SUPREME COURT NEWS

नई दिल्ली। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने जाँच एजेंसियों द्वारा वकीलों को समन भेजे जाने पर बड़ा आदेश दिया है। अब जाँच एजेंसियाँ मनमाने ढंग से वकीलों को समन जारी नहीं कर सकेंगी। मुवक्किलों की गोपनीय जानकारी के लिए वकीलों से पूछताछ पर रोक लगा दी गई है। डिजिटल उपकरणों की जब्ती और जाँच के लिए भी विशेष सुरक्षा उपाय तय किए गए हैं।

कोर्ट ने यह आदेश देते हुए कहा है कि, अपने मुवक्किल को कानूनी सेवा दे रहे वकील को बहुत सीमित मामलों में ही जाँच एजेंसी पूछताछ का समन भेज सकती है। यह समन उन्हीं मामलों में भेजा जा सकता है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अपवादों में आते हैं।

इस फैसले की शुरुआत

जानकारी के अनुसार, यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दो बड़े वकीलों, अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को एक मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूछताछ के लिए बुला लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर खुद ही संज्ञान लिया और ED के समन को रद्द करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि, ये सभी नियम इसलिए बनाये गए है, ताकि वकील बिना किसी डर या दबाव के अपना काम कर सके और हमारी न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता बनी रहे।

वकील को समन जारी करने पर नियम

कोर्ट ने कहा कि, पुलिस या कोई भी जाँच एजेंसी किसी वकील को उसके क्लाइंट (मुवक्किल) के बारे में जानकारी लेने के लिए आसानी से समन नहीं भेज सकती है। यह क्लाइंट और वकील के बीच की गोपनीय बातों की सुरक्षा के लिए है। वकील को सिर्फ तभी बुलाया जा सकता है जब यह शक हो कि क्लाइंट और वकील की बातचीत किसी गैर-कानूनी काम को आगे बढ़ाने के लिए हुई थी, या फिर वकील ने कोई अपराध या धोखा होते हुए देखा गया हो। अगर समन भेजना बहुत ही ज़रूरी हो, तो भी यह काम SP (पुलिस अधीक्षक) रैंक से कम के किसी बड़े अधिकारी की लिखित मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता और समन में साफ-साफ वजह बतानी होगी कि, वकील को क्यों बुलाया जा रहा है।

गोपनीयता और मौलिक अधिकार

कोर्ट ने कहा कि, क्लाइंट और वकील के बीच हुई बातचीत पूरी तरह से गुप्त रहेगी, क्योंकि यह क्लाइंट का मौलिक अधिकार है। अगर जाँच एजेंसियाँ वकील को बार-बार बुलाती हैं, तो इससे क्लाइंट के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है और वह खुलकर अपने वकील से बात नहीं कर पाएगा। इसलिए, इस गोपनीयता का सम्मान करना बहुत ज़रूरी है।

डिजिटल उपकरणों की जब्ती पर नियम

जाँच एजेंसियाँ वकीलों के डिजिटल सामान (जैसे लैपटॉप या मोबाइल फोन) को अपनी मर्ज़ी से उठाकर ज़ब्त नहीं कर सकती हैं। अगर इन्हें ज़ब्त करना भी हो, तो यह काम सिर्फ उस कोर्ट के सामने ही किया जाएगा, जिसके अधिकार क्षेत्र में यह मामला है। इसके अलावा, जब भी इन उपकरणों को खोलकर या जाँच करके देखा जाएगा, तब वकील और उस मामले से जुड़े बाकी लोग भी वहाँ मौजूद रहेंगे। वकील अपनी पसंद के किसी तकनीकी विशेषज्ञ को भी वहाँ बुला सकते हैं।

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