Budget 2024: क्या होता है बजट? कैसे तैयार होता है बजट? भारत में कौन तैयार करता है बजट?

Budget 2024: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए केंद्रीय आम बजट पेश करेंगी। इसमें अगले 5 वर्षों के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट होगा।

Update: 2024-07-15 14:37 GMT

Budget 2024: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए केंद्रीय आम बजट पेश करेंगी। इसमें अगले 5 वर्षों के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट होगा। इस साल की शुरुआत में वित्त मंत्री सीतारमण ने 2024 के लोकसभा चुनावों के कारण अंतरिम बजट पेश किया था। आइए जानते हैं कि बजट तैयार कैसे होता है और इसे तैयार करने में किन बातों का ध्यान रखा जाता है।

संविधान में कहां किया गया है बजट का जिक्र?

संविधान के अनुच्छेद 112 में वार्षिक वित्तीय विवरण की चर्चा है। इसके तहत सरकार को हर साल की कमाई और व्यय का ब्यौरा देना अनिवार्य होता है। 'बजट' शब्द फ्रांस के 'बुजे' से निकला है, जिसका अर्थ होता है चमड़े का बैग। माना जाता है कि सरकार और उद्योगपति अपनी कमाई और खर्च के दस्तावेज चमड़े के बैग में रखते हैं। यही कारण है कि वित्त मंत्री भी अपने दस्तावेज एक बैग में लेकर संसद पहुंचते हैं।

भारत का पहला बजट किसने पेश किया?

भारत में पहला बजट 1860 में ब्रिटिश सांसद जेम्स विल्सन ने पेश किया था। उस बजट को अंग्रेजी में मुद्रित किया गया था। स्वतंत्र भारत का पहला बजट 26 नवंबर, 1947 को देश के पहले वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था।

क्या होता है बजट?

बजट सरकार के आय और व्यय का ब्यौरा होता है। बजट पेश करने से पहले एक सर्वे कराया जाता है, जिसमें सरकार अनुमान लगाती है कि उसे प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर, रेलवे के किराए और अलग-अलग मंत्रालय के जरिए कितनी कमाई होगी। यह भी सामने आता है कि आगामी साल में सरकार का कितना अनुमानित खर्च होगा। आसान शब्दों में बजट एक साल में होने वाले अनुमानित राजस्व (कमाई) और खर्चों (अनुमानित व्यय) का ब्यौरा होता है।

भारत में कौन तैयार करता है बजट?

बजट तैयार करने में वित्त मंत्रालय के साथ नीति आयोग और खर्च से जुड़े मंत्रालय शामिल होते हैं। अलग-अलग मंत्रालयों के अनुरोध पर खर्च का प्रस्ताव तैयार होता है। बजट बनाने का काम वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग का बजट सेक्शन करता है।

कितने चरणों में तैयार होता है बजट?

बजट 3 चरणों में तैयार होता है:

  1. पहले चरण में सभी केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, स्वायत्त संस्थानों, विभागों, सैन्य बलों से आगामी साल के लिए अनुमानित खर्च का आंकलन लिया जाता है।
  2. दूसरे चरण में आर्थिक मामलों के विभाग और राजस्व विभाग अलग-अलग हितधारकों (किसानों, व्यापारियों, अर्थशास्त्रियों, सिविल सोसाइटी संस्थानों) से चर्चा करते हैं। इस प्रक्रिया को बजट पूर्व चर्चा कहा जाता है। इसके बाद वित्त मंत्री टैक्स को लेकर अंतिम फैसला लेते हैं।
  3. तीसरे और अंतिम चरण में वित्त मंत्रालय बजट तय करने से जुड़े सभी विभागों से आमदनी और खर्च की रसीदें हासिल करता है। इससे अगले साल की अनुमानित कमाई और खर्चों की योजना तैयार होती है। इसके बाद सरकार दोबारा राज्यों, बैंकरों, अर्थशास्त्रियों आदि से चर्चा कर टैक्स में छूट और आर्थिक मदद देने जैसे मामलों पर बात करती है। अंत में वित्त मंत्रालय संशोधित बजट अनुमानों के आधार पर बजट भाषण तैयार करने का काम शुरू करता है।

क्यों आयोजित की जाती है हलवा सेरेमनी?

संसद में बजट पेश किए जाने से एक सप्ताह पहले उसकी छपाई शुरू होती है। इस दौरान पारंपरिक 'हलवा सेरेमनी' आयोजित की जाती है। इसमें बड़ी मात्रा में हलवा तैयार किया जाता है, जिसे बजट टीम में शामिल अधिकारियों और सहायक कर्मचारियों को परोसा जाता है। यह काम खुद वित्त मंत्री के हाथों से होता है। इसे आप उस प्राचीन भारतीय परंपरा का हिस्सा समझ सकते हैं, जिसमें कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले मीठा खाया जाता है।

बजट से जुड़े लोगों के घर जाने पर लगती है पाबंदी

हलवा सेरेमनी के साथ ही लॉक-इन पीरियड शुरू हो जाता है। इसका मकसद बजट की गोपनीयता को बरकरार रखना होता है। बजट से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारियों पर संसद में बजट पेश किए जाने तक घर जाने की अनुमति नहीं होती है और न ही वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात कर सकते हैं। पहले यह अवधि लंबी होती थी, लेकिन 2021 से बजट के डिजिटल होने के बाद यह अवधि बहुत कम रह गई है।

सबसे लंबा और सबसे छोटा बजट भाषण किसके नाम?

भारत का सबसे लंबा बजट भाषण 1 फरवरी, 2020 को वित्त मंत्री सीतारमण ने दिया था। इसकी अवधि 2 घंटे 40 मिनट की थी। हालांकि, शब्दों की संख्या के हिसाब से सबसे लंबा बजट भाषण 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का था, जिनके बजट भाषण में 18,650 शब्द थे। सबसे छोटा बजट भाषण 1977 में पूर्व वित्त मंत्री हीरूभाई मुल्जीभाई पटेल का अंतरिम बजट भाषण था, जो केवल 800 शब्दों का था।

संसद में किसके नाम है सर्वाधिक बजट पेश करने का रिकॉर्ड?

वर्तमान में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नाम संसद के इतिहास में सबसे अधिक 10 बजट पेश करने का रिकॉर्ड है। उनके बाद पी चिदंबरम (9) और प्रणब मुखर्जी (8) हैं। देसाई ने अपने कार्यकाल में 6 पूर्ण और 4 अंतरिम बजट पेश किए थे। जब वित्त मंत्री सीतारमण 23 जुलाई को बजट पेश करेंगी तो यह उनका 7वां पूर्ण बजट होगा और वह सबसे ज्यादा पूर्ण बजट पेश करने वाली वित्त मंत्री बन जाएंगी।

वन नेशन, वन रेट पॉलिसी क्या है?

‘वन नेशन, वन रेट पॉलिसी’ भारत सरकार की ओर से प्रस्तावित एक योजना है, जिसका मकसद पूरे देश में सोने की कीमतें समान करना है। इस योजना के तहत सरकार एक नेशनल बुलियन एक्सचेंज बनाएगी, जो पूरे देश में सोने के दाम तय करेगा। यह प्रक्रिया शेयर मार्केट की तरह होगी, जहां किसी कंपनी के शेयर के दाम पूरे देश में एक समान होते हैं। मौजूदा समय में सोने-चांदी की खरीद-बिक्री MCX पर होती है, लेकिन इस पॉलिसी के तहत सर्राफा बाजार के लिए भी एक एक्सचेंज बन जाएगा।

कैसे मिलेगा फायदा?

राष्ट्रीय स्तर पर बनी बुलियन एक्स्चेंज ही सोने की कीमतों को तय करेगा और देशभर के ज्वैलर्स को उसी कीमत पर सोना बेचना होगा। इससे इंडस्ट्री में पारदर्शिता बढ़ेगी और आम जनता को भी सोना पूरे देश में एक ही दाम पर मिलेगा। मान लीजिए आप लखनऊ में रहते हैं और वहां सोना महंगा है। ऐसे में आपको सस्ता सोना खरीदने के लिए दूसरे शहर जाने की जरूरत नहीं होगी। इस पॉलिसी के लागू होने के बाद यह समस्या खत्म हो जाएगी।

कैसे तय होती है कीमत?

वर्तमान समय में सोने की कीमतें सर्राफा बाजार के एसोसिएशन द्वारा तय की जाती हैं, जो हर शहर के लिए अलग-अलग होती हैं। आमतौर पर हर सर्राफा बाजार अपनी-अपनी शहर की कीमत शाम के समय जारी करता है। पेट्रोल-डीजल की तरह ही सोने-चांदी की कीमतें भी हर रोज तय की जाती हैं। सोने-चांदी की कीमतों में ग्लोबल सेंटिमेंट्स का भी अहम रोल होता है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों की कीमतों का असर घरेलू बाजार पर भी होता है।

क्या कम हो जाएंगी कीमतें?

इस पॉलिसी के आने से इंडस्ट्री में पारदर्शिता बढ़ेगी, जिसका फायदा आम आदमी को मिलेगा। कीमतों का अंतर खत्म होने से सोने की कीमतों में भी कमी आ सकती है। इसके अलावा, ज्वैलर्स की मनमानी पर लगाम लग सकेगी और कारोबारियों में कंपिटिशन बढ़ेगा, जिससे यह पॉलिसी कारोबार के लिहाज से मील का पत्थर साबित हो सकती है। इस पॉलिसी को लागू करने के लिए ज्वैलर्स की संस्था GJC ने देशभर के ज्वैलर्स से राय ली है, जिसमें ज्वैलर्स ने इसे लागू करने की सहमति जताई है।

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